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________________ कर्म अध्ययन (ग) एवं मणूसाउयस्स वि। (घ) देवाउयस्स जहाणेरइयाउयस्स ठिई त्ति। ६. णाम-पयडीओप. १. (क) णिरयगइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीसं य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। - ११८५ ) (ग) इसी प्रकार मनुष्यायु की स्थिति है। (घ) देवायु की स्थिति नरकायु की स्थिति के समान जाननी चाहिए। ६. नाम की प्रकृतियांप्र. १.(क) भंते ! नरकगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहन सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है, इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है, (ख) तिर्यञ्चगति-नामकर्म की स्थिति आदि नपुंसकवेद की स्थिति के समान है। प्र. (ग) भंते ! मनुष्यगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से डेढ़ भाग (१॥/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (घ) भंते ! देवगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही (ख) तिरियगइणामस्स जहा णपुंसगवेयस्स। प. (ग) मणुयगइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागारोवमस्स दिवढे सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. देवगइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एक्कं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं जहा पुरिसवेयस्स। प. २ (क) एगिदियजाइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं उणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्रसागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति आदि पुरुषवेद की स्थिति के समान है। प्र. २. (क) भंते ! एकेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में कर्म निषेक होता है। प्र. (ख) भंते ! द्वीन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के पैंतीस भागों में से नव भाग (९/३५) की है। उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्म-निषेक होता है। (ग) त्रीन्द्रिय जाति नाम कर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। प. (ख) बेइंदियजाइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स णवपणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं अट्ठारससागरोवमकोडाकोडीओ, अट्ठारस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। (ग) तेइंदियजाइणामए विएवं चेव।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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