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________________ कर्म अध्ययन सत्त य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठिई, कम्मणिसेगो। प. (ग) सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जस्स (मोहणिज्जस्स) णं भंते !कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. २-१२. कसायबारसगस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ। चत्तालीसं वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई,कम्मणिसेगो। - ११८३ ) इसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्मनिषेक होता है। प्र. (ग) भंते ! सम्यग्-मिथ्यात्व वेदनीय (मोहनीय) कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है, प्र. २-१२. भंते ! कषाय-द्वादशक की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग न्यून सागरोपम के सात भागों में से चार भाग (४/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल चार हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. १३. भंते ! संज्वलन क्रोध की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति दो मास की है, उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल चार हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्मनिषेक होता है, प्र. १४. भंते ! संज्वलन मान की स्थिति कितने काल की कही प. १३. कोहसंजलणस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता, उ. गोयमा !जहण्णेणं दो मासा, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, चत्तालीसं वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। उ. गौतम ! जघन्य स्थिति एक मास की है, उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के समान है। प्र. १५. भंते ! संज्वलन माया की स्थिति कितने काल की कही उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अर्धमास की है, ___ उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के समान है। प्र. १६. भंते ! संज्वलन लोभ की स्थिति कितने काल की कही प. १४. माणसंजलणस्सणं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं मासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। प. १५. मायासंजलणस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अद्धमासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। प. १६. लोभसंलणस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। प. १. इत्थिवेयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं। उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के समान है, प्र. १.भंते ! स्त्रीवेद की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से डेढ भाग (१॥/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। १. जीवा. पडि.२,सु.५१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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