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________________ ११८२ २. दंसणावरण-पयडीओप. (क) निद्दापंचयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि य सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं . उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. (ख) दंसणचउक्कस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। ३. वेयणीय-पयडीओप. सायावेयणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! इरियावहियबंधगं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समया। संपराइयबंधगं पडुच्च जहण्णेणं बारस मुहुत्ता, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। द्रव्यानुयोग-(२) २. दर्शनावरण की प्रकृतियाँप्र. (क) भंते ! निद्रापंचक (दर्शनावरणीय) कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग न्यून सागरोपम के सात भागों में से तीन (३/७) भाग की है, उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ख) भंते ! दर्शनचतुष्क (दर्शनावरणीय) कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। ३. वेदनीय की प्रकृतियांप्र. भंते ! सातावेदनीयकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! ईर्यापथिक बन्धक की अपेक्षा अजघन्य-अनुत्कृष्ट दो समय की है, साम्परायिक बन्धक की अपेक्षा जघन्य बारह मुहूर्त की है, उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ख) भंते ! असातावेदनीय कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग (३/७) की है। उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में कर्म निषेक होता है। ४. मोहनीय की प्रकृतियांप्र. १. (क) भंते ! सम्यक्त्व वेदनीय (मोहवेदनीय) की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम की है। प्र. (ख) भंते ! मिथ्यात्व वेदनीय (मोहवेदनीय) कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम की है। उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है। प. (ख) असायावेयणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई कम्मणिसेगो। ४. मोहणीय पयडीओप. १.(क) सम्मत्तवेयणिज्जस्स (मोहणिज्जस्स) णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई साइरेगाई। प. (ख) मिच्छत्तवेयणिज्जस्स मोहणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमै पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं। उक्कोसेणं सत्तरं सागरोवमकोडाकोडीओ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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