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________________ कर्म अध्ययन दं. १-२४ एवं 'काति' एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं। दं. १-२४ एवं 'करेस्संति' एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं १. चिणे, २ चिणिंसु, ३. चिणंति, ४. चिणिस्संति। १. उवचिणे, २. उवचिणिंसु, ३. उवचिणंति, ४. उवचिणिस्संति। १. उदीरेंसु, २.उदीरेंति, ३. उदीरिस्संति। १. वेदिसु, २. वेदेति, ३. वेदिस्संति। १. निज्जरेंसु, २.निज्जरेंति, ३. निज्जरिस्संति।' -विया. स. १, उ.३, सु. १-३ (१-३) १०२. कंखामोहणिज्ज कम्मस्स उदीरण-उवसमणं प. से गुणं भंते ! (कंखामोहणिज्ज कम्म) अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चेव गरहइ,अप्पणा चेव संवरेइ ? उ. हंता, गोयमा ! अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव संवरेइ। प. जंणं भंते ! अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव संवरेइ तं किं१.उदिण्णं उदीरेइ, २. अणुदिण्णं उदीरेइ, ११५५ द.१-२४ इसी प्रकार करते हैं यहाँ भी (इस अभिलाप से) वैमानिक पर्यंत दण्डक कहने चाहिए। द. १-२४ इसी प्रकार करेंगे' यहां भी (इस अभिलाप से) वैमानिकपर्यन्त दण्डक कहने चाहिए। इसी प्रकार (कृत की तरह)। १. चित, २. चय किया, ३. चय करते हैं और. ४. चय करेंगे, १. उपचित है, २. उपचय किया, ३. उपचय करते हैं, और ४. उपचय करेंगे, १. उदीरणा की, २. उदीरणा करते हैं,३. उदीरणा करेंगे, १. वेदन किया, २. वेदन करते हैं, ३.वेदन करेंगे, १. निर्जरा की, २. निर्जरा करते हैं,३.निर्जरा करेंगे। (इन पदों का चौबीस दण्डकों में पूर्ववत् कथन करना चाहिए।) १०२. कांक्षामोहनीय कर्म का उदीरण और उपशमन प्र. भंते ! क्या निश्चय ही जीव स्वयं (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है,स्वयं ही उसकी गर्दा करता है और स्वयं ही उसका संवर करता है? उ. हां, गौतम ! जीव स्वयं ही उसकी उदीरणा करता है, स्वयं ही गर्दा करता है और स्वयं ही संवर करता है। प्र. भंते ! यदि वह स्वयं ही उसकी उदीरणा करता है, गर्दा करता है और संवर करता है तो क्या१. उदीर्ण (उदय में आए हुए) की उदीरणा करता है, २. अनुदीर्ण (उदय में नहीं आए हुए) की उदीरणा करता है, ३. अनुदीर्ण उदीरणाभविक (उदय में नहीं आये हुए, किन्तु उदीरणा के योग्य) कर्म की उदीरणा करता है? ४. उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की उदीरणा करता है? प्र. गौतम ! १. उदीर्ण की उदीरणा नहीं करता है, २. अनुदीर्ण की उदीरणा नहीं करता है, ३. अनुदीर्ण-उदीरणाभविक (योग्य) कर्म की उदीरणा करता है, ४. उदयानन्तर पश्चात् कृत कर्म की भी उदीरणा नहीं करता है। प्र. भंते ! यदि जीव अनुदीर्ण-उदीरणाभविक कर्म की उदीरणा करता है, तो क्या उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य से और पुरुषकार-पराक्रम से अनुदीर्ण उदीरणा भविक कर्म की उदीरणा करता है? अथवा अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और अपुरुषकार-पराक्रम से अनुदीर्ण उदीरणा भविक कर्म की उदीरणा करता है? ३. अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ, ४. उदयाणंतरंपच्छाकडं कम्म उदीरेइ? उ. गोयमा !१.नो उदिण्णं उदीरेइ, २. नो अणुदिण्णं उदीरेइ, ३. अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्म उदीरेइ, ४. णो उदयाणंतरं पच्छाकडं कम्मं उदीरेइ। प. जं तं भंते ! अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्म उदीरेइ तं किं उठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कम्मेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्म उदीरेइ? उदाहु तं अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं, अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ? १. गाहा-कड,चित, उवचित, उदीरिया, वेदिया य,निज्जिण्णा। आदितिए चउभेदा, पच्छिमा तिण्णि॥
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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