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________________ कर्म अध्ययन ११४३ उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, २. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगे य, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य, ४-५ अबंधगेण वि समंदो भंगा भाणियव्वा। ६-९ अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, एगविहबंधगा य,छव्विहबंधगे य, अबंधगे य चउभंगो। एवं एए णव भंगा। दं. १२-१६. एगिंदियाणं अभंगयं। दं.१-२०.णारगादीणं तियभंगो एवं जाव वेमाणियाणं। प. दं. २१. मणूसाणं भंते ! वेयणिज्जं कम वेएमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति? उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य जाव, २७. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य,अट्ठविहबंधगा य,अबंधगा य। एवं एए सत्तावीसं भंगा भाणियव्या जहा किरियासु पाणाइवायविरयस्स। एवं जहा वेयणिज्जंतहा आउयं णाम गोयं च भाणियव्वं। उ. गौतम ! १. सभी जीव सात के, आठ के और एक के बन्धक होते हैं, २. अथवा अनेक जीव सात, आठ और एक के बन्धक होते हैं तथा एक छह का बन्धक होता है, ३. अथवा अनेक जीव सात, आठ, एक या छह के बन्धक होते हैं, ४-५ अबन्धक के साथ भी (एक और अनेक की अपेक्षा) दो भंग कहने चाहिए, ६-९ अथवा अनेक जीव सात के, आठ के, एक के बन्धक होते हैं तथा कोई एक छह का बन्धक होता है और कोई एक अबन्धक भी होता है, इस प्रकार चार भंग होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर नौ भंग हुए। दं. १२-१६. एकेन्द्रिय जीवों को अभंगक जानना चाहिए। दं.१-२०.नारक आदि वैमानिकों पर्यंत इसी प्रकार तीन भंग कहने चाहिए। प्र. दं.२१. भंते ! मनुष्य वेदनीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते हैं ? उ. गौतम !१. सभी (अनेक) मनुष्य सात या एक के बन्धक होते हैं, यावत् , २७. अथवा अनेक मनुष्य सात के, एक के, छह के, आठ के बंधक होते हैं और अबन्धक भी होते हैं। जिस प्रकार क्रियाओं में प्राणातिपातविरत के लिए सत्ताईस भंग कहे हैं उसी प्रकार यहां भी भंग कहने चाहिए। जिस प्रकार वेदनीयकर्म के वेदन के साथ कर्मप्रकृतियों के बन्ध का कथन किया गया है, उसी प्रकार आयु, नाम और गोत्रकर्म के विषय में भी कहना चाहिए। जिस प्रकार ज्ञानावरणीय के बन्ध का कथन किया है, उसी प्रकार यहां मोहनीयकर्म के वेदन के साथ बन्ध का कथन करना चाहिए। ८२. मोहनीय कर्म के वेदक जीव के कर्म बंध का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या जीव मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ मोहनीय कर्म का बंध करता है या वेदनीय कर्म का बंध करता है? उ. गौतम ! वह मोहनीय कर्म का भी बंध करता है और वेदनीय कर्म का भी बंध करता है। विशेष-(सूक्ष्मसंपराय नामक दशम गुणस्थान में) मोहनीय कर्म के चरम दलिकों का वेदन करता हुआ जीव वेदनीय कर्म का ही बंध करता है मोहनीय कर्म का बंध नहीं करता। ८३. जीव चौबीसदंडकों में अष्टकर्मप्रकृतियों के बंध स्थानों का प्ररूपणप्र. भंते ! जीव कितने स्थानों (कारणों) से ज्ञानावरणीयकर्म का बंध करता है ? उ. गौतम ! वह दो कारणों से ज्ञानावरणीय-कर्म का बन्ध करता है, यथा मोहणिज्जं वेएमाणे जहा बंधे णाणावरणिज्जं तहा भाणियव्वं। -पण्ण.प.२६, सु. १७७६-१७८६ ८२. मोहणिज्जकम्मस्स वेएमाणस्स जीवस्स कम्मबंध परूवणंप. जीवे णं भंते ! मोहणिज्ज कम्मं वेदेमाणे किं मोहणिज्ज कम्मं बंधइ,वेयणिज्ज कम्मं बंधइ? उ. गोयमा ! मोहणिज्ज पि कम्मं बंधइ, वेयणिज्जं पि कम्म बंधइ. णवर-णण्णत्थ चरित्तमोहणिज्जं कम वेदेमाणे वेअणिज्जं कम्मं बंधइ,णो मोहणिज्ज कम्मं बंधइ। -उव.सु.६६ ८३. जीव चउवीसदंडएसु अट्ठकम्मपयडीणं बंधट्ठाण परूवणं- प. जीवे णं भंते ! नाणावरणिज्ज कम्मं कइहिं ठाणेहिं बंधइ ? उ. गोयमा ! दोहिं ठाणेहिं नाणावरणिज्ज कम्मं बंधइ, तं जहा १. पण्ण. प. २२, सु. १६४३
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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