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________________ कर्म अध्ययन ११२७ उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. साईयवीससाबंधे य, २. अणाईयवीससाबंधे य। प. पयोगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. सिढिलबंधणबंधे य, २. घणियबंधणबंधे य। प. भावबंधेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. मूलपगडिबंधे य,२.उत्तरपगडिबंधे य। -विया. स. १८, उ.३, सु. १०-१४ ६४. चउवीसदंडएसु भावबंधपरूवणं प. दं.१ नेरइयाणं भंते ! कइविहे भावबंधे पण्णत्ते? उ. माकन्दिकपुत्र ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सादि विनसाबन्ध, २. अनादि विनसाबन्ध। प्र. भंते ! प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. शिथिल-बन्धन बन्ध , २. सघन (गाढ) बन्धन-बन्ध। प्र. भंते ! भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. मूलप्रकृतिबन्ध, २. उत्तरप्रकृतिबन्ध। उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पण्णत्ते,तं जहा १. मूलपगडिबंधे य, २.उत्तरपगडिबंधे य। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणियाणं! -विया. स. १८, उ.३, सु.१५-१६ ६५. जीव-चउवीसदंडएसुकम्मट्ठगाणं भावबंध परूवणंप. नाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स कइविहे भावबंधे पण्णत्ते? उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे भवबंधे पण्णत्ते, तं जहा १. मूलपगडिबंधे य, २. उत्तरपगडिबंधे य। प. दं.१ नेरइयाणं भंते ! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कइविहे भाव बंधे पण्णत्ते? उ. मांगदियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पण्णत्ते, तं जहा ६४. चौबीसदंडकों में भावबन्ध का प्ररूपणप्र. द. १. भंते ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार का भावबन्ध कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. मूलप्रकृतिबन्ध, २. उत्तरप्रकृतिबन्ध। दं. २-२४ इसी प्रकार वैमानिकों तक के भावबन्ध के विषय में कहना चाहिए। ६५. जीव-चौबीसदंडकों में अष्टकर्मों का भाव बंध प्ररूपणप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! वह भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. मूलप्रकृतिबन्ध, २. उत्तरप्रकृतिबन्ध। प्र. दं.१ भंते ! नैरयिक जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! उनका भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. मूल-प्रकृति-बन्ध, २. उत्तर-प्रकृति-बन्ध। दं. २-२४ इसी प्रकार वैमानिकों तक के ज्ञानावरणीयकर्मजनित भावबन्ध के विषय में कहना चाहिए। जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म सम्बन्धी दण्डक कहा गया है, उसी प्रकार अन्तरायकर्म तक (दण्डक) कहना चाहिए। ६६. त्रिविध बंध भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भंते ! बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! बन्ध तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १.जीवप्रयोगबन्ध, २. अनन्तरबन्ध, ३. परम्परबन्ध। प्र. दं. १ भंते ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार का बंध कहा गया है? उ. गौतम ! पूर्ववत् (तीनों प्रकार का) है। दं. २-२४ इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए। १. मूलपगडिबंधे य, २. उत्तरपगडिबंधे य। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणियाणं। जहा नाणावरणिज्जेणं दंडओ भणिओ एवं जाव अतंराइएणं भाणियव्यो। -विया. स. १८, उ.३, सु. १७-२० ६६. तिविहबंधभेया चउवीसदंडएसुय परूवणं प. कइविहे णं भंते ! बंधे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा १.जीवप्पयोगबंधे,२.अणंतरबंधे, ३.परंपरबंधे। प. दं.१. नेरइयाणं भंते ! कइविहे बंधे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! एवं चेव। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणियाणं। -विया.स.२०, उ.७,१-३
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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