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________________ १११६ ४४. अणंतरोगाढ चउवीसदंडएसु पावकम्माइणं बंधभंगाप. अणंतरोगाढए णं भंते !णेरइए पावं कम्म किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! पढम-बिइया भंगा, एवं जहेव अणंतरोववण्णएहिं णवदंडगसहिओ उदेसो भणिओ तहेव अणंतरोगाढएहिं वि अहीणमइरित्तो भाणियव्यो णेरइयाईए १-२४ जाव वेमाणिए। __-विया. स. २६, उ. ४, सु.१, ४५. परम्परोगाढ चउवीसदंडएसु पावकम्माइणं बंधभंगाप. परंपरोगाढएणं भंते !णेरइए पावं कम्म किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! जहेव परम्परोववण्णएहिं उद्देसो सो चेव _णिरवसेसं। -विया.स.२६, उ.५, सु.१, द्रव्यानुयोग-(२) ४४. अनन्तरावगाढ चौबीस दंडकों में पापकर्मादि के बंधभंगप्र. भंते ! क्या अनन्तरावगाढ नैरयिक ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। जिस प्रकार अनन्तरोपपन्नक के नौ दण्डकों सहित (द्वितीय) उद्देशक कहा है, उसी प्रकार अनन्तरावगाढ नैरयिक से लेकर वैमानिकों तक अन्यूनाधिकरूप से कहना चाहिए। ४६. अणंतराहारगचउवीसदंडएसु पावकम्माइणं बंधभंगाप. अणंतराहारए णं भंते !णेरइए पावं कम्म कि बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! एवं जहेव अणंतरोववण्णएहिं उदेसो तहेव णिरवसेसं। -विया.स.२६, उ.६.सु.१ ४७. परंपराहारग चउवीसदंडएसु पावकम्माइणं बंधभंगाप. परंपराहारए णं भंते !णेरइए पावं कम्म किं बंधी,बंधइ,बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववण्णएहिं उद्देसो तहेव णिरवसेसं। -विया. स.२६, उ.७,सु.१ ४५. परम्परावगाढ चौबीस दंडकों में पापकर्मादि के बंध भंगप्र. भंते ! क्या परम्परावगाढ नैरयिक ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! जिस प्रकार परम्परोपपन्नक के विषय में (तृतीय उद्देशक) कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी समग्र उद्देशक अन्यूनाधिकरूप से कहना चाहिए। ४६. अनन्तराहारक चौबीस दंडकों में पापकर्मादि के बंध भंगप्र. भंते ! क्या अनन्तराहारक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! जिस प्रकार अनन्तरोपपन्नक (द्वितीय) उद्देशक कहा है, उसी प्रकार यह सम्पूर्ण (अनन्तराहारक) उद्देशक भी कहना चाहिए। ४७. परम्पराहारक चौबीसदंडकों में पापकर्मादि के बंध भंगप्र. भंते ! क्या परम्पराहारक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! जिस प्रकार परम्परोपपन्नक नैरयिक सम्बन्धी तृतीय उद्देशक कहा है, उसी प्रकार यह सारा उद्देशक भी कहना चाहिए। ४८. अनन्तरपर्याप्तक चौबीस दंडकों में पापकर्मादि के बंधभंगप्र. भंते ! क्या अनन्तरपर्याप्तक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! जिस प्रकार अनन्तरोपपन्नक (द्वितीय) उद्देशक कहा है उसी प्रकार यह सारा उद्देशक कहना चाहिए। ४९. परम्पर पर्याप्तक चौबीस दंडकों में पापकर्मादि के बंधभंगप्र. भंते ! क्या परम्पर पर्याप्तक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! जिस प्रकार परम्परोपपन्नक (तृतीय) उद्देशक कहा, उसी प्रकार यहाँ भी सम्पूर्ण उद्देशक कहना चाहिए। ४८. अणंतरपज्जत्तग चउवीसदंडएसु पावकम्माइणं बंधभंगाप. अणंतरपज्जत्तए णं भंते ! णेरइए पावं कम्म किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! एवं जहेव अणंतरोववण्णएहिं उददेसो तहेव णिरवसेसं। -विया.स.२६, उ.८, सु.१ ४९. परम्परपज्जत्तगचउवीसदंडएस पावकम्माइणं बंधभंगाप. परम्परपज्जत्तएणं भंते !णेरइए पावं कम्म किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! एवं जहेव परम्परोववण्णएहिं उद्देसो तहेव णिरवसेसं। -विया. स. २६, उ.९, सु.१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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