SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म अध्ययन - ११०५ ) हां भंते ! जाते हुए भी कम्पन में भिन्नता है यावत् उस उस रूप में परिणत होते हुए में भी भिन्नता है। इसीलिए हे माकन्दिकपुत्र ! ऐसा कहा जाता है कि"जाते हुए भी कम्पन में भिन्नता है यावत् उस उस भाव में परिणत होते हुए में भी भिन्नता है।" प्र. दं.१ भंते ! नैरयिकों ने जो पापकर्म किया है, करते हैं और करेंगे क्या उनमें भिन्नता है? उ. हां, माकन्दिकपुत्र ! उनमें भिन्नता है। (वह उसी प्रकार है) द.२-२४ इसी प्रकार वैमानिकों पर्यंत जान लेना चाहिए। "हंता, भगवं ! एयति वि णाणतं जाव तं तं भावं परिणमइ विणाणत्तं।" से तेणद्वेणं मागंदियपुत्ता ! एवं वुच्चइ"एयति वि णाणत्तं जाव तं तं भावं परिणमइ वि णाणत्तं।" प. दं. १ नेरइयाणं भंते ! पावकम्मे जे य कडे जे य कज्जिस्सइ अत्थियाई तस्स केयि णाणते? उ. मागंदियपुत्ता ! एवं चेव। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणियाणं। -विया स. १८, उ.३, सु.२१-२३ ३५. चउवीसदंडएसु कडाणकम्माणं कया दुहसुहरूवत्तंप. दं.१ नेरइयाणं भंते ! पावकम्मे जे य कडे,जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ, सव्वे से दुक्खे? जे निज्जिण्णे से णं सुहे? उ. हंता, गोयमा ! नेरइयाणं पावकम्मे जे य कडे जे य कज्जइ,जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे,जे निज्जिण्णे से णं सुहे। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणियाणं। -विया. स.७,उ.८, सु.३-४ ३६. जीवेसु एक्कारसठाणेहिं पावकम्मं बंध भंगा गाहा-१.जीवा य,२.लेस,३.पक्खिय, ४.दिट्ठी, ५.अन्नाण,६.नाण,७.सण्णाओ। ८.वेय,९. कसाए,१०.उवयोग, ११.योग एक्कारस वि ठाणा ॥ -विया स.२६, उ.१, सु. २, गा.१ १. जीवं पडुच्चप. जीवेणं भंते !१. पावकम्मं किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ, ३५. चौबीस दंडकों में कृत कर्मों की सुख-दुखरूपताप्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों ने जो पापकर्म किया है, करते हैं और करेंगे, क्या वह सब दुःख रूप है? और जिनकी निर्जरा की है, क्या वह सब सुख रूप है? उ. हां, गौतम ! नैरयिकों ने जो पापकर्म किया है, करते हैं और करेंगे वह सब दुःख रूप है और जिनकी निर्जरा की गई है, वह सब सुखरूप है। दं.२-२४ इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त चौबीस दण्डकों में जान लेना चाहिए। ३६. जीवों में ग्यारह स्थानों द्वारा पापकर्म बंध के भंग गाथार्थ-१. जीव, २. लेश्या, ३. पाक्षिक (शुक्लपाक्षिक और कृष्णपाक्षिक),४. दृष्टि, ५. अज्ञान, ६.ज्ञान,७.संज्ञा, ८. वेद, ९. कषाय, १०. उपयोग,११.योग, ये ग्यारह स्थान (विषय) है, जिनको लेकर बन्ध का कथन किया जाएगा। १. जीव की अपेक्षाप्र. भंते ! १. क्या जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? २. क्या जीव ने पापकर्म बांधा था, बाँधता है और नहीं बांधेगा? ३. क्या जीव ने पापकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा? ४. क्या जीव ने पापकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! १. किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, बाँधता है और बाँधेगा। २. किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। ३. किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा। ४. किसी जीव ने पापकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। २. सलेश्य अलेश्य की अपेक्षाप्र. भंते ! सलेश्य जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बाँधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? २. बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ, ३. बंधी,न बंधइ, बंधिस्सइ, ४. बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा !१.अत्थेगइए बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ, २. अत्थेगइए बंधी,बंधइ, न बंधिस्सइ, ३. अत्थेगइए बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ, ४. अत्थेगइए बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ। २. सलेस्स अलेस्सं पडुच्चप. सलेस्से णं भंते ! जीवे पावकम्म, किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy