SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११०२ द्रव्यानुयोग-(२) प. एगविहबंधगस्स णं भंते ! सजोगिभवत्थकेवलिस्स कइ परीसहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेइ। सेसं जहा छव्विहबंधगस्स। प. अबंधगस्स णं भंते ! अजोगिभवत्थकेवलिस्स कइ परीसहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेइ। जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ, नो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ। जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, नो तं समयं सीयपरीसह वेदेइ। जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ, नो तं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ। जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ, नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। -विया. स. ८, उ.८, सु.३०-३४ ३१. जीवेहिं दुट्ठाणाइ णिव्वत्तिय पुग्गलाणं पावकम्मत्ताए चिणाइ परूवणं१. जीवाणं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसुवा, चिणंति वा, चिणिस्संति वा,तं जहा१. तसकायनिव्वत्तिए चेव, २. थावरकायनिव्वत्तिए चेव। एवं उवचिणिंसुवा, उवचिणंति वा, उवचिणिस्संति वा। ३. बंधिंसुवा, बंधति वा, बंधिस्संति वा, ४. उदीरिसुवा, उदीरेंति वा, उदीरिस्संति वा, ५. वेदेंसुवा, वेदेति वा, वेदिस्संति वा, ६. णिज्जरिंसुवा,णिज्जरंति वा,णिज्जरिस्संति वा। -ठाणं. अ.२, उ.४, सु. १२५ जीवाणं तिट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा, चिणति वा, चिणिस्संति वा,तं जहा१. इत्थिणिव्वत्तिए, २. पुरिसणिव्वत्तिए, ३. णपुंसगणिव्वत्तिए। एवं उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जराचेव। -ठाणं. अ.३, उ.४, सु.२३३ जीवाणं चउट्ठाणनिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसुवा, चिणंति वा, चिणिस्संति वा,तं जहा१. नेरइयनिव्वत्तिए, २. तिरिक्खजोणियनिव्वत्तिए, ३. मणुस्सनिव्वत्तिए, ४. देवनिव्वत्तिए। एवं उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३८७ जीवाणं पंचट्ठाणनिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसुवा,चिणंति वा, चिणिस्संति वा,तं जहा प्र. भंते ! एकविधबन्धक सयोगी-भवस्थ केवली के कितने परीषह कहे गए हैं? उ. गौतम ! ग्यारह परीषह कहे गए हैं, किन्तु वह नौ परीषहों का वेदन करता है। शेष समग्र कथन षड्विधबन्धक के समान समझ लेना चाहिए। प्र. भंते ! अबन्धक अयोगी-भवस्थ केवली के कितने परीषह कहे गए हैं? उ. गौतम ! ग्यारह परीषह कहे गए हैं। किन्तु वह नौ परीषहों का वेदन करता है। जिस समय शीत परीषह का वेदन करता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्या परीषह का वेदन करता है, उस समय शय्या परीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय शय्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्या परीषह का वेदन नहीं करता। ३१. जीवों द्वारा विस्थानिकादि निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म के रूप में चयादि का प्ररूपण१. जीवों ने द्वि-स्थान निर्वर्तित पुद्गलों का पाप-कर्म के रूप में चय किया है, करते हैं और करेंगे, यथा१. त्रसकाय निर्वर्तित, २. स्थावरकाय निर्वर्तित इसी प्रकार-उपचय किया है, करते हैं और करेंगे। ३. बन्धन किया है, करते हैं और करेंगे। ४. उदीरण किया है, करते हैं और करेंगे। ५. वेदन किया है, करते हैं और करेंगे। ६. निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे। जीवों ने त्रिस्थान-निवर्तित पुद्गलों का पापकर्म के रूप में चय किया है, करते हैं और करेंगे, यथा१. स्त्री-निर्वर्तित, २. पुरुष-निर्वर्तित, ३. नपुंसक निर्वर्तित, इसी प्रकार उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन तथा निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे कहना चाहिये। जीवों ने चार स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पाप कर्म के रूप में चय किया है, करते हैं और करेंगे, यथा१. नैरयिक निर्वर्तित, २. तिर्यक्योनिक निर्वर्तित, ३. मनुष्य निर्वर्तित, ४. देव निर्वर्तित। इसी प्रकार उपचय, बंध, उदीरण, वेदन तथा निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे कहना चाहिए। जीवों ने पांच स्थानों से निवर्तित पुद्गलों का पापकर्म के रूप में चय किया है, करते हैं और करेंगे, यथा
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy