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________________ कर्म अध्ययन १०८१) ३१. कम्मऽज्झयणं ३१. कर्म अध्ययन मृत्र १. कम्मज्झयणस्स उक्खेवो अट्ठ कम्माइं वोच्छामि, आणुपुव्विं जहक्कम । जेहिं बद्धो अयं जीवो, संसारे परिवत्तई ॥ -उत्त.अ.३३,गा.१, २. अज्झयणस्स अत्याहिगारा १. कति पगडी, २. कह बंधति, ३. कतिहि व ठाणेहिं बंधए जीवो। ४. कति वेदेइ य पगडी, ५. अणुभावो कतिविहो कस्स॥१ -पण्ण.प.२३, उ.१,सु.१६६४ ३. कम्माणं पगारा दुविहे कम्मे पण्णत्ते,तं जहा१. पदेसकम्मे चेव, २. अणुभावकम्मे चेव। -ठाणं. अ.२, उ.३, सु.७९(२२) चउबिहे कम्मे पण्णत्ते,तं जहा१. पगडीकम्मे, २. ठिईकम्मे, ३. अणुभावकम्मे, ४. पदेसकम्मे। -ठाणं अ.४,उ.४,सु.३६२ सुहासुह कम्मविवाग चउभंगीचउव्विहे कम्मे पण्णत्ते,तं जहा१. सुभे नाममेगे सुभे, १. कर्म अध्ययन की उत्थानिका मैं आनुपूर्वी और यथाक्रम से उन आठ प्रकार के कर्मों को कहूँगा, जिन कर्मों से बंधा हुआ यह जीव इस संसार में परावर्तन (परिभ्रमण) करता रहता है। २. अध्ययन के अर्थाधिकार १. (कर्म की) प्रकृतियां कितनी है? २. किस प्रकार बंधती है? ३. जीव कितने स्थानों से (कर्म) बांधता है? ४. कितनी (कर्म) प्रकृतियों का वेदन करता है? ५. किस (कर्म) का अनुभाव (अनुभाग) कितने प्रकार का __ होता है? ३. कमों के प्रकार कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. प्रदेश कर्म, २. अनुभावकर्म। २. सुभे नाममेगे असुभे, ३. असुभे नाममेगे सुभे, ४. असुभे नाममेगे असुभे। कर्म चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. प्रकृति कर्म-कर्म पुद्गलों का स्वभाव, २. स्थिति-कर्म-कर्म पुद्गलों की काल-मर्यादा, ३. अनुभाव कर्म-कर्म पुद्गलों का सामर्थ्य, ४. प्रदेश कर्म-कर्म पुद्गलों का संचय। ४. शुभाशुभ कर्म विपाक चौभंगी कर्म चार प्रकार का गया है, यथा१. कुछ कर्म शुभ (पुण्य प्रकृति वाले) होते हैं और उनका अनुबन्ध भी शुभ होता है, २. कुछ कर्म शुभ होते है पर उनका अनुबन्ध अशुभ होता है, ३. कुछ कर्म अशुभ होते हैं पर उनका अनुबन्ध शुभ होता है, ४. कुछ कर्म अशुभ होते हैं और उनका अनुबन्ध भी अशुभ होता है। कर्म चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. कुछ कर्म शुभ होते हैं और उनका विपाक भी शुभ होता है, २. कुछ कर्म शुभ होते हैं, पर उनका विपाक अशुभ होता है, ३. कुछ कर्म अशुभ होते हैं, पर उनका विपाक शुभ होता है, ४. कुछ कर्म अशुभ होते हैं और उनका विपाक भी अशुभ होता है। ५. कर्मों का अगुरुलघुत्व प्ररूपण प्र. भंते ! कर्म क्या गुरु है, लघु है, गुरुलघु है या अगुरुलघु है? चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते,तं जहा१. सुभे नाममेगे सुभविवागे, २. सुभे नाममेगे असुभविवागे, ३. असुभे नाममेगे सुभविवागे, ४. असुभे नाममेगे असुभविवागे, -ठाणं अ.४,उ.४,सु.३६२ ५. कम्माणं अगुरुयलहुयत्त परूवणं प. कम्माणि णं भंते ! किं गुरुयाई, लहुयाई, गुरुयलहुयाई, ___ अगुरुयलहुयाई? १. विया.स.१,उ.४,सु.१. २. सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति-उव.सु.५६
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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