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________________ १०७० २. दिट्ठतेहिं कसायसरूव पखवणं(क) चत्तारि राईओ पण्णत्ताओ,तं जहा १. पव्वयराई, २. पुढविराई, ३. वालुयराई, ४. उदगराई। एवामेव चउव्विहे कोहे पण्णत्ते,तं जहा१. पव्वयराइसमाणे, २. पुढविराइसमाणे, ३. वालुयराइसमाणे, ४. उदगराइसमाणे। १. पव्वयराइसमाणे कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ नेरइएसु उववज्जइ। २. पुढविराइसमाणे कोहमणुपविठे जीवे कालं करेइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ। ३. वालुयराइसमाणे कोहमणुपविढे जीवे कालं करेइ मणुस्सेसु उववज्जइ। ४. उदगराइसमाणे कोहमणुपविठे जीवे कालं करेइ देवेसु उववज्जइ। -ठाणं अ.४, उ.२, सु.३११ (ख) चत्तारि थंभा पण्णत्ता,तं जहा १. सेलथंभे, २. अट्ठिथंभे, ३. दारूथंभे, ४. तिणिसलाताथंभे। एवामेव चउव्विहे माणे पण्णत्ते,तं जहा१. सेलथंभसमाणे जाव ४. तिणिसलता थंभसमाणे। १. सेलथंभसमाणे माणमणुपविठे जीवे कालं करेइ नेरइएसु उववज्जइ, २. अट्ठिथंभ समाणे माणमणुपविढे जीवे कालं करेइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ, ३. दारूथंभ समाणे माणमणुपविढे कालं करेइ मणुस्सेसु उववज्जइ, ४. तिणिसलता थंभसमाणे माणमणुपविठे जीवे कालं करेइ देवेसु उववज्जइ। (ग) चत्तारि केतणा पण्णत्ता,तं जहा १. वंसीमूलकेतणए, २. मेंढविसाणकेतणए, ३. गोमुत्तिकेतणए द्रव्यानुयोग-(२) २. दृष्टांतों द्वारा कषायों के स्वरूप का प्ररूपण(क) राजि (रेखा) चार प्रकार की कही गई हैं, यथा १. पर्वतराजि, २. पृथ्वीराजि, ३. वालुकाराजि, ४. उदक (जल) राजि। इसी प्रकार क्रोध चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पर्वतराजि के समान, २. पृथ्वीराजि के समान, ३. वालुकाराजि के समान, ४. उदकराजि के समान, १. पर्वतराजि-समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है। २. पृथ्वीराजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है। ३. वालुकाराजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। ४. उदकराजि समान क्रोध में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो देवों में उत्पन्न होता है। (ख) चार प्रकार के स्तम्भ (खंभे) कहे गये हैं, यथा १. शैलस्तम्भ, २. अस्थिस्तम्भ, ३. दारू (काष्ट) स्तम्भ, ४. तिनिसलता स्तम्भ। इसी प्रकार मान भी चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. शैलस्तम्भ समान यावत् ४. तिनिसलतास्तम्भ समान। १. शैलस्तम्भ-समान मान में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है। २. अस्थिस्तम्भ-समान मान में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है। ३. दारू स्तम्भ-समान मान में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। ४. तिनिसलता स्तम्भ मान में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो देवों में उत्पन्न होता है। (ग) केतन (वक्र पदार्थ) चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. वंशीमूलकेतनक (बांस की जड़ का वक्रपन) २. मेंढविषाणकेतनक (मेंढे के सींग का वक्रपन) ३. गोमूत्रिका केतनक (चलते बैल की मूत्र धारा के समान वक्र पन) ४. अवलेखनिका केतनक (बांस की छाल का वक्रपन) इसी प्रकार माया भी चार प्रकार की कही गई है, यथा१. वंशीमूल केतन समान यावत् ४. अवलेखनिका केतन समान। १. वंशीमूल केतन के समान माया में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है। २. मेंढविषाण केतन के समान माया में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है। ३. गोमूत्रिका केतन के समान माया में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। ४. अवलेहणिय केतणए। एवामेव चउव्विहा माया पण्णत्ता,तं जहा१. वंसीमूलकेतणासमाणा जाव ४. अवलेहणिय केतणासमाणा। १. वंसीमूलकेतणासमाणं मायमणुपविढे जीवे कालं करेइ नेरइएसु उववज्जइ, २. मेंढविसाणकेतणासमाणं मायमणुपविढे जीवे कालं करेइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ, ३. गोमुत्ति केतणासमाणं मायमणुपविढे जीवे कालं करेइ मणुस्सेसु उववज्जइ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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