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________________ वेद अध्ययन - १०६३ ) १०६३ ३. अत्थेगइया देवा अदेवीया अपरियारा, ४. णो चेवणं देवा सदेवीया अपरियारा। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा तं चेव जाव णो चेवणं देवा सदेवीया अपरियारा?" उ. गोयमा ! भवणवइ - वाणमंतर - जोइस - सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा सदेवीया सपरियारा, ३. कुछ देव देवियों वाले भी नहीं हैं और मैथुन प्रवृत्ति वाले भी नहीं हैं। ४. ऐसे कोई देव नहीं हैं जो देवियों वाले हैं किन्तु मैथुन प्रवृत्ति वाले नहीं हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि "कुछ देव देवियों वाले भी हैं और मैथुन प्रवृत्ति वाले भी हैं यावत् ऐसे कोई देव नहीं हैं जो देवियों वाले हैं किन्तु मैथुन प्रवृत्ति वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ईशानकल्प के देव देवियों वाले भी है और मैथुन प्रवृत्ति वाले भी हैं। सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में देव, देवियों वाले नहीं हैं किन्तु मैथुन प्रवृत्ति वाले हैं। नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तरोपपातिक देव देवियों वाले भी नहीं हैं और मैथुन प्रवृत्ति वाले भी नहीं हैं। ऐसा कभी नहीं होता है कि कोई देव देवियों वाले हों किन्तु मैथुन प्रवृत्ति वाले नहीं हों। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कुछ देव देवियों वाले भी हैं और मैथुन प्रवृत्ति वाले भी हैं यावत् ऐसे कोई देव नहीं हैं जो देवियों वाले हैं किन्तु मैथुन प्रवृत्ति वाले नहीं हैं।" सणंकुमार - माहिंद - बंभलोग - लंतग - महासुक्क - सहस्सार - आणय - पाणय - आरण - अच्चुएसु कप्पेसु देवा अदेवीया सपरियारा, गेवेज्जऽणुत्तरोववाइयदेवा अदेवीया अपरियारा, णो चेवणं देवा सदेवीया अपरियारा, से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा तं चेव जाव णो चेवणं देवा सदेवीया अपरियारा।" प. कइविहाणं भंते ! परियारणा पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! परिचारणा (मैथुन प्रवृत्ति) कितने प्रकार की कही गई उ. गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा १. कायपरियारणा, २. फासपरियारणा, ३. रूवपरियारणा, ४. सद्दपरियारणा, ५. मणपरियारणा प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ "पंचविहा परियारणा पण्णत्ता,तं जहा १.कायपरियारणा जाव ५. मणपरियारणा?" उ. गोयमा ! भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा, सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा, बंभलोय-लंतगेसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा, महासुक्क-सहस्सारेसु देवा सद्दपरियारगा, आणय - पाणय - आरण - अच्चुएसु कप्पेसु देवा मणपरियारगारे, गेवेज्जऽअणुत्तरोववाइया देवा अपरियारगा। उ. गौतम ! परिचारणा पाँच प्रकार की कही गई है, यथा १. कायपरिचारणा, २. स्पर्शपरिचारणा, ३. रूपपरिचारणा, ४. शब्दपरिचारणा, ५. मनःपरिचारणा। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'परिचारणा पांच प्रकार की है, यथा १. कायपरिचारणा यावत् ५.मनःपरिचारणा? उ. गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म ईशान कल्प के देव कायपरिचारक होते हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देव स्पर्शपरिचारक होते हैं। ब्रह्मलोक और लान्तककल्प के देव रूपपरिचारक होते हैं। महाशुक्र और सहस्रारकल्प के देव शब्द-परिचारक होते हैं। आनत, प्राणत, आरण और अच्युतकल्पों के देव मनःपरिचारक होते हैं। नौ ग्रैवेयक और पांच अनुत्तरोपपातिक देव अपरिचारक होते हैं। १. ठाणं. अ. ५, उ.१, सु. ४०२ २. ठाणं. अ. २, उ. ४, सु. १२४/३-७
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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