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________________ वेद अध्ययन १०४९ एवं-कम्मभूमग-भरहेरवय-पुव्वविदेह-अवरविदेहेस वि भाणियव्वं। प. अकम्मभूमगमणुस्सनपुंसए णं भंते ! अकम्मभूमगमणुस्सनपुंसएत्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं मुहुत्तपुहूत्तं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी, एवं सव्वेसिं जाव अन्तरदीवगाणं। ___ -जीवा. पडि.२, सु.५९(२) ९. सवेयग-अवेयग जीवाणं अंतरकाल परूवणं प. सवेयगस्सणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, साईयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं अंतीमुहुत्तं। -जीवा. पुडि.९,सु. २३२ प. इत्थीणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? ' उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-वणस्सइकालो। एवं सव्वासिं तिरिक्खित्थीणं। मणुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं अणतंकालं जाव अवड्ढपोग्गलपरियट्ट देसूणं। एवं जाव पुव्वविदेह-अवरविदेहियाओ। कर्मभूमिक भरत-ऐरवत, पूर्वविदेह-अपरविदेह के (मनुष्य नपुंसकों के सम्बन्ध में) भी इसी प्रकार कहना चाहिए। प्र. भंते ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक-अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक के रूप में कितने काल तक रह सकता है? उ. गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट मुहूर्त पृथक्त्व तक रह सकता है। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रह सकता है। इसी प्रकार अन्तर्वीपज मनुष्य नपुंसकों पर्यंत का काल कहना चाहिए। ९. सवेदक-अवेदक जीवों के अंतरकाल का परूपण प्र. भंते ! सवेदक का अंतर काल कितना है? उ. गौतम ! अनादि-अपर्यवसित (सवेदक) का अन्तर नहीं है। अनादि-सपर्यवसित (सवेदक) का भी अन्तर नहीं है। किन्तु सादि-सेपर्यवसित का अंतर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त का होता है। प्र. भंते ! स्त्री का (पुनः स्त्री होने में) कितने काल का अंतर है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार सभी तिर्यञ्च स्त्रियों का अंतर है। मनुष्य स्त्रियों का अंतर काल क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्धपुद्गल परावर्तन है। इसी प्रकार यावत् पूर्वविदेह-अपरविदेह की मनुष्य स्त्रियों का अन्तर काल जानना चाहिए। प्र. भंते ! अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्रियों का अन्तर काल कितना है? प. अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ? उ. गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई,उक्कोसेणं वणस्सइकालो। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं जाव अंतरदीवियाओ। देवित्थियाणं सव्वासिं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। -जीवा. पडि.२, सु.४९ प. पुरिसस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल साधिक अन्तर्मुहूर्त दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अन्तर काल वनस्पतिकाल है। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर काल वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार अन्तर्वीप पर्यन्त की स्त्रियों का अन्तर काल है। सभी देवस्त्रियों का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। प्र. भंते ! पुरुष का (पुनः पुरुष होने में) कितने काल का अन्तर है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अंतरकाल वनस्पतिकाल है। तिर्यग्योनिक पुरुषों का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अंतरकाल वनस्पतिकाल है। उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। तिरिक्खजोणियपुरिसाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। १. (क) जीवा. पडि. २, सु. ६३ (ख) जीवा. पडि. ९, सु. २४५ २. (क) जीवा. पडि. २, सु. ६३ (ख) जीवा पडि.९, सु. २४५
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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