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________________ १०४६ उ. गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुव्वकोडिपुहुत्तममहियाई।' जलयरीए जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहुत्त। चउप्पय थलयर तिरिक्खजोणित्थी जहा ओहिया तिरिक्खजोणित्थी। उरपरिसप्पी-भुयपरिसप्पित्थीणं जहा जलयरीणं, खहयरित्थी णं जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुवकोडिपुत्तमब्भहियं। प. मणुस्सित्थी णं भंते ! मणुस्सिस्थि त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुव्वकोडिपुहुत्तमब्महियाई।२ धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। एवं कम्मभूमिया वि, भरहेरवया वि, णवर-खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसूणपुव्वकोडिमब्भहियाई। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। प. पुव्वविदेह-अवरविदेहित्थी. णं भंते ! पुव्वविदेह अवरविदेहित्यि त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहुत्तं। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। प. अकम्मभूमिग-मणुस्सित्थी णं भंते ! अकम्मभूमिग मणुस्सित्थि त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाईं। संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियाई। प. हेमवय-हेरण्णवय-अकम्मभूमियमणुस्सित्थी णं भंते ! हेमवय-हेरण्णवय अकम्मभूमिय मणुस्सिस्थि त्ति कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमं। १. (क) पण्ण. प.१८, सु. १२६२ (ख) जीवा. पडि.६, सु २२५ (ग) जीवा. पडि. ९, सु. २५५ द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकती है। जलचरी जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व तक रह सकती है। चतुष्पद स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक स्त्री के सम्बन्ध में औधिक तिर्यञ्चयोनिक स्त्री की तरह जानना चाहिए । उरपरिसर्पस्त्री और भुजपरिसर्पस्त्री के सम्बन्ध में जलचरी के समान जानना चाहिए। खेचरस्त्री जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक रह सकती है। प्र. भंते ! मनुष्य स्त्री मनुष्य स्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है? उ. गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकती है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटी तक रह सकती है। कर्मभूमिक और भरत-ऐरवत क्षेत्र की स्त्रियों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष- क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम तक रह सकती है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि तक रह सकती है। प्र. भंते ! पूर्वविदेह अपरविदेह की मनुष्य स्त्री पूर्वविदेह, अपरविदेह मनुष्य स्त्री के रूप में कितने काल तक रहती है? उ. गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व तक रह सकती है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि तक रह सकती है। प्र. भंते ! अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्री अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है? उ. गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग न्यून देशोन एक पल्योपम और उत्कृष्ट तीन पल्योपम तक रह सकती है। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम तक रह सकती है। प्र. भंते ! हैमवत-हैरण्यवत-अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्री हैमवत हैरण्यवत-अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है? उ. गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग न्यून देशोन एक पल्योपम और उत्कृष्ट एक पल्योपम तक रह सकती है। २. (क) पण्ण. प. १८, सु. १२६३ (ख) जीवा. पडि. ९, सु. २५५
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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