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________________ वेद अध्ययन १०४५ । २. एक मान्यता से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट साधिक पूर्वकोटिपृथक्त्व अठारह पल्योपम तक रहता है। २. एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडि पुहुत्तमभइयाइं ३. एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं __चोद्दस पलिओवमाई पुव्वकोडिपुत्तमब्भइयाई ४. एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भइयां ५. एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्त पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भइयं प. पुरिसवेए णं भंते ! पुरिसवेए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरो वमसयपुहत्तं साइरेगं। प. नपुंसगवेए णं भंते ! नपुंसगवेए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं वणफ़इकालो। प. अवेयएणं भंते ! अवेयए त्ति कालओ केवचिरं होइ? ३. एक मान्यता से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट साधिक पूर्वकोटिपृथक्त्व चौदह पल्योपम तक रहता है। ४. एक मान्यता से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट साधिक पूर्वकोटिपृथक्त्व सौ पल्योपम तक रहता है। ५. एक मान्यता से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व साधिक पल्योपमपृथक्त्व तक स्त्रीवेदक के रूप में रहता है। प्र. भंते ! पुरुषवेद वाला जीव पुरुषवेदक के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व तक पुरुषवेदक के रूप में रहता है। प्र. भंते ! नपुंसकवेदक वाला जीव नपुंसकवेदक के रूप में कितने . काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल पर्यन्त नपुंसक वेदक के रूप में रहता है। प्र. भंते ! अवेदक वाला जीव अवेदक के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! अवेदक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. सादि-अपर्यवसित, २. सादि-सपर्यवसित इनमें से जो सादि सपर्यवसित हैं, वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त अवेदक के रूप में रहते हैं। उ. गोयमा ! अवेयए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. साईए वा अपज्जवसिए,२. साईए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं -पण्ण. प.१८,सु. १३२६-१३३० ८. इत्थी-पुरिस नपुंसगाणं कायट्ठिई परूवणं प. इत्थीणं भंते ! इत्थित्ति कालओ केवचिरं होइ? । उ. गोयमा ! १. एक्केणादेसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं। २. एक्केणादेसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाई पुव्वकोडिपुत्तममहियं। ३. एक्केणादेसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं चउदस पलिओवमाई पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं । ८. स्त्री-पुरुष-नपुंसकों की काय स्थिति का प्ररूपण प्र. भंते ! स्त्री, स्त्री के रूप में कितने समय तक रह सकती है? उ. गौतम ! १. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक रह सकती है। २. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक रह सकती है। ३. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक रह सकती है। ४. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिप्रथक्त्व अधिक एक सौ पल्योपम तक रह सकती है। ५. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक रह सकती है। प्र. भंते ! तिर्यञ्चयोनिक स्त्री तिर्यञ्चयोनिक स्त्री के रूप में कितने समय तक रह सकती है? ४. एक्केणादेसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं । ५. एक्केणादेसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्तं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं। प. तिरिक्खजोणित्थी णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थित्ति कालओ केवचिरं होइ? १. (क) जीवा. पडि.९, सु. २३२ (ख) जीवा. पडि.९, सु. २४५
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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