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________________ आश्रव अध्ययन कवोतपरिणामा, सउणि-पोस-पिठेतरोरूपरिणया, पउमुप्पल-सरिस-गंधुस्सास सुरभिवयणा, अणुलोमवाउवेगा, अवदायनिद्ध-काला अमयरस-फलाहारा, तिगाउयसमुसिया, ति-पलिओवमट्टितीया, तिन्नि य पलिओवमाई परमाउं पालयित्ता तेवि उवणमंति मरणधम्म अवितित्ता कामाणं। पमया वि य तेसिं होति सोम्मा सुजायसव्वंग सुंदरीओ पहाण महिलागुणेहिं जुत्ता, अइकंत-विसप्पमाणा-मउय-सुकुमाल-कुम्म-संठिय-सिलिट्ठचलणा उज्जुमउय-पीवर-सुसाहयंगुलीओ अब्भुन्नय-रइय-तलिण तंब-सुइनिद्धनखा १०३१ प्रशस्त होती है। वे निरोग होते हैं और कंक नामक पक्षी के समान अल्प आहार करते हैं तथा आहार को परिणत करने-पचाने की शक्ति कबूतर जैसी होती है, मल-द्वार पक्षी जैसा होने के कारण मल-त्याग के पश्चात् भी वह मल-लिप्त नहीं होता है, पीठ, पार्श्वभाग और जंघाएं सुन्दर सुपरिमित होती हैं पद्म-कमल और उत्पल-नील कमल की सुगन्ध के सदश मनोहर गन्ध से उनका श्वास एवं मुख सुगन्धित रहता है। सिर पर चिकने और काले बाल होते हैं। उनका उदर शरीर के अनुरूप उन्नत होता है। वे अमृत के' समान रस वाले फलों का आहार करते हैं। शरीर की ऊँचाई तीन गव्यूति की और आयु तीन पल्योपम की होती है। किन्तु तीन पल्योपम की आयु को भोग कर भी वे अकर्मभूमि भोगभूमि के मनुष्य-अन्त तक कामभोगों से अतृप्त रहकर ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उन युगलिकों की स्त्रियां भी सौम्य अर्थात् शान्त एवं सात्विक स्वभाव वाली होती हैं। प्रशस्त जन्म वाली और सर्वांग सुन्दर होती हैं। महिलाओं के सब श्रेष्ठ गुणों से युक्त होती हैं। चरण-पैर अत्यन्त रमणीय शरीर के अनुपात में उचित प्रमाण वाले, कोमल सुकुमाल कछुवे की पीठ के समान उन्नत स्निग्ध और मनोज्ञ होते हैं। पैर की अंगुलियां-सीधी, कोमल, पुष्ट और निश्छिद्र-एक दूसरे से सटी हुई होती हैं। नाखून-उन्नत, प्रसन्नताजनक, पतले, निर्मल और चमकदार होते हैं। दोनों पिंडलियां-रोमों से रहित, गोलाकार, श्रेष्ठ मांगलिक लक्षणों से सम्पन्न और रमणीय होती हैं। जानु-घुटने-सुन्दर रूप से निर्मित तथा मांसयुक्त होने के कारण निगूढ होते हैं। सन्धियां-मांसल प्रशस्त तथा नसों से सुबद्ध होती हैं। उरू-ऊपरी जंघाएं-सांथल कदली-स्तम्भ से भी अधिक सुन्दर आकार की, घाव आदि से रहित, सुकुमार, कोमल, अन्तररहित, समान प्रमाण वाली, सुन्दर लक्षणों से युक्त, सुजात, गोलाकार और पुष्ट होती हैं। श्रोणि-नितम्ब-अष्टापद जुआ खेलने के पट्ट के समान लहरदार आकार वाली, श्रेष्ठ और विस्तीर्ण होती हैं। नितम्ब भाग-मुख की लम्बाई के प्रमाण से अर्थात् बारह अंगुल से दुगुने चौबीस अंगुल जितना विशाल, मांसल पुष्ट होता है। उदर-वज्र के समान-मध्य में पतला शोभायमान, शुभ लक्षणों से सम्पन्न एवं कृश होता है। शरीर का मध्यभाग-त्रिवलि-तीन रेखाओं से युक्त, कृश और नमित-झुका होता है। रोमराजि-सीधी एक-सी, परस्पर मिली हुई, स्वाभाविक बारीक, काली, मुलायम, प्रशस्त, ललित, सुकुमार, कोमल और सुविभक्तयथास्थानवर्ती होती है। नाभि-गंगा नदी के भंवरों के समान दक्षिणावर्त चक्कर वाली तरंगमाला जैसी, सूर्य की किरणों से ताजा खिले हुए और नहीं कुम्हलाए हुए कमल के समान गंभीर एवं विशाल होती है। रोमरहिय-वट्ट-संठिय-अजहन्न-पसत्थ-लक्खण-अकोप्प-जंघजुयला, सुणिम्मिय-सुनिगूढ-जाणू मंसल-पसत्थ-सुबद्ध संधी कयलीखंभातिरेक-संठिय-निव्वण-सुकुमाल-मउय-कोमलअविरल-समसहित-सुजाय-वट्ट पीवर-निरंतरोरू, अट्ठावय-वीइपट्ठ-संठिय-पसत्थ-विच्छिन्न-पिहुलसोणी, जघण वयणायामप्पमाण-दुगुणिय-विसाल-मंसल-सुबद्ध वरधारिणीओ वज्ज-विराइय-पसत्थ-लक्खण-निरोदरीओ तिवलि-वलिय-सणु-नमिय-मज्झियाओ उज्जुय-समसहिय-च जच्च-तणु कसिण निद्ध आदेज्ज लउह-सुकुमाल-मउय-सुविभत्त रोमराजीओ, गंगावत्तग-पदाहिणावत्त-तरंगभंग-रविकिरण तरुणबोहियआकोसायंत-पउमगंभीर-विगडनाभी,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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