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________________ १०३० ओय-वियसिय-सिलप्पवाल-बिंबफल-संनिभाधंरोट्ठा, पंडुर-ससि-सकल-विमल-संख-गोखीर-फेण-कुंद-दगरयमुणालिया-धवल-दंतसेढी, अखंड-दंता, अप्फुडिय-दंता, अविरल-दंता, सुणिद्ध-दंता, सुजाय-दंता, एगदंत-सेढिव्व अणेग दंता, हुयवह-निद्धत-धोय-तत्त तवणिज्ज, रत्ततला-तालुजीहा, गरुलायत-उज्जुतंगनासा, अवदालिय-पोंडरिय-नयणा, कोकासिय-धवल-पत्तलच्छा, आणामिय-चाव-रुइल-किण्हब्भराजि-संठिय-संगयाययसुजाय-भुमगा, अल्लीण पमाणुजुत्त-सवणा सुसवणा, पीण-मंसल-कवोल-देसभागा, अचिरुग्गय-बालचंद-संठिय महानिलाडा, द्रव्यानुयोग-(२)) अधरोष्ठ-संशुद्ध मुंगे और विम्बफल के सदृश लालिमायुक्त होते हैं। दांतों की पंक्ति-चन्द्रमा के टुकड़े, निर्मल शंख, गाय के दूध के फेन, कुन्दपुष्प, जलकण तथा कमल की नाल के समान धवल-श्वेत होती है। दांत-अखण्ड अविरल-एक दूसरे से सटे हुए अतीव स्निग्ध चिकने सुजात-सुरचित तथा वे अनेक दांत (बत्तीस दति) एक दंत पंक्ति जैसे दिखते हैं। तालु और जिला-अग्नि में तपाकर धोये हुए स्वच्छ स्वर्ण के सदृश लाल तल वाली होती है। नासिका-गरुड़ के समान लम्बी सीधी और ऊँची होती है। नेत्र-विकसित पुण्डरीक-श्वेत कमल के समान विकसित एवं धवल होते हैं। भ्रू-भौंहें-किंचित् नीचे झुकाए धनुष के समान मनोरम, कृष्ण अभ्रराजि-मेघों की रेखा के समान-काली, उचित मात्रा में लम्बी एवं सुन्दर होती हैं। कान-अलीन-किंचित् शरीर से चिपके हुए से और उचित प्रमाण वाले सुन्दर या सुनने की शक्ति से युक्त होते हैं। कपोलभाग-गाल तथा उनके आसपास के भाग परिपुष्ट तथा मांसल होते हैं। ललाट-अचिर उद्गत-जिसे उगे अधिक समय नहीं हुआ है, ऐसे बाल-चन्द्रमा के आकार जैसा तथा विशाल होता है। मुखमण्डल-पूर्ण चन्द्र के सदृश सौम्य होता है। मस्तक-छत्र के आकार का उभरा हुआ होता है। सिर का अग्रभाग-मुद्गर के समान सुदृढ़ नसों से आबद्ध प्रशस्त लक्षणों-चिह्नों से सुशोभित-उभरा हुआ शिखरयुक्त भवन के समान गोलाकार पिण्ड जैसा होता है। मस्तक की चमड़ी-टाट-अग्नि में तपाकर धोये हुए सोने के समान लालिमायुक्त एवं केशों वाली होती है। मस्तक के केश-शाल्मली-सेमल वृक्ष के फल के समान सघन, घिसे हुए, बारीक, सुस्पष्ट मांगलिक, स्निग्ध, उत्तम लक्षणों से युक्त, सुवासित, सुन्दर, भुजमोचक रल, नीलमणि और काजल तथा हर्षित भ्रमरों के झुंड की तरह काली कान्ति वाले, स्निग्ध, गुच्छ रूप, किंचित् धुंघराले दक्षिणावर्त्त-(दाहिनी ओर मुड़े हुए) होते हैं। अंग-सुडौल, सुविभक्त-यथास्थान और सुन्दर होते हैं। वे यौगलिक उत्तम लक्षणों, तिल आदि व्यंजनों तथा गुणों और व्यंजनों के गुणों से सम्पन्न होते हैं। प्रशस्त-शुभ-मागंलिक बत्तीस लक्षणों के धारक होते हैं, हंस क्रोंच पक्षी, दुन्दुभि एवं सिंह के समान स्वर-आवाज वाले होते हैं। उनका स्वर ओघ होता है-अविच्छिन्न और अत्रुटित होता है। उनकी ध्वनि मेघ की गर्जना जैसी होती है, अतएव कानों को प्रिय लगती है। उनका स्वर और निर्घोष दोनों ही सुन्दर होते हैं। वे वजऋषभनाराचसहनन और समचतुरनसंस्थान के धारक होते हैं। अंग प्रत्यंग कान्ति से दैदीप्यमान रहते हैं। शरीर की त्वचा उडुवइरिव-पडिपुण्ण सोमवयणा, छत्तागारुत्तमंगदेसा, घण - निचिय - सुबद्ध लक्खणुन्नय - कूडागार - निभपिंडियग्गसिरा, हुयवह-निद्धत-धोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्त-केसंत-केसभूमी, सामलीपोंड-घण-निचिय छोडिय-मिउविसय-पसत्थ-सुहमलक्खण-सुगंधि-सुंदर-भुयमोयग-भिंग-नील-कज्जल-पहट्ठभमरगण-निद्ध-निगुरूंब-निचिय-कुंचियपयाहिवत्तमुद्धसिरया, सुजाय सुविभत्त संगयंगा, लक्खण-वंजण-गुणोववेया, पसत्थ-बत्तीसलक्खणधरा, हंसस्सरा कुंचस्सरा दुंदुभिस्सरा, सीहस्सरा, ओघस्सरा, मेघस्सरा, सुस्सरा, सुस्सरनिग्घोसा, वज्जरिसहनाराय-संघयणा, समचउरंससंठाण-संठिया, छाया-उज्जोवियंगमंगा,पसत्थच्छवी निरांतका कंकग्गहणी
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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