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________________ १०१६ एया अन्ना य एवमाइओ वेयणाओ पावा पावेंति। -पण्ह.आ.३.सु.७१-७२ ३८. तक्कराणं दंडविही अदंतिदिया वसट्टा, बहुमोहमोहिया परधणंमि लुद्धा, फासिंदिय-विसयतिव्वगिद्धा, इत्थिगय-रूव-सद्द-रस-गंधइट्ठ-रइ-महिय-भोगतण्हाइया य धणतोसगा गहिया य जे नरगणा पुणरवि ते कम्मदुव्वियद्धा उवणीया रायकिंकराणं तेसिं वहसत्थगपाढयाणं विलउलीकारगाणं लंचसय-गेण्हकाणं, कूड - कवड - माया - नियडि - आयरण - पणिहि - वंचणविसारयाणं, बहुविह अलियसयजपकाणं, परलोकपरंमुहाणं, निरयगइगामियाणं। तेहिय आणत्तजियदंडा तुरियं उग्धाडिया पुरवरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह महापह पहेसु। द्रव्यानुयोग-(१) ) ये और इसी प्रकार की अन्यान्य वेदनाएं, वे चोरी करने वाले पापी लोग भोगते हैं। ३८. तस्करों की दण्डविधि इनके अलावा जिन्होंने अपनी इन्द्रियों का दमन नहीं किया है, इन्द्रिय विषयों के वशीभूत हो रहे हैं, तीव्र आसक्ति के कारण हिताहित के विवेक से रहित बन गए हैं, परकीय धन में लुब्ध हैं, स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में तीव्र रूप से गृद्ध आसक्त हैं, स्त्रियों के रूप, शब्द, रस और गंध में मनोनुकूल रति तथा भोग की तृष्णा से व्याकुल बने हुए हैं तथा केवल धन की प्राप्ति में ही सन्तोष मानने वाले हैं, ऐसे मनुष्यगण-चोर राजकीय पुरुषों द्वारा पकड़ लिए जाते हैं और फिर पाप कर्म के परिणाम को नहीं जानने वाले, वध की विधियों को गहराई से समझने वाले, अन्याययुक्त कर्म करने वाले या चोरों को गिरफ्तार करने में चतुर, चोर अथवा लम्पट को तत्काल पहचानने वाले, सैकड़ों बार लांच-रिश्वत लेने वाले, झूठ, कपट, माया, निकृति वेष परिवर्तन आदि करके चोर को पकड़ने तथा उससे अपराध स्वीकार कराने में अत्यन्त कुशल नरकगतिगामी, परलोक से विमुख एवं अनेक प्रकार से सैकड़ों असत्य भाषण करने वाले राज किंकरों-सरकारी कर्मचारियों के समक्ष उपस्थित कर दिये जाते हैं। उन राजकीय पुरुषों द्वारा जिनको प्राणदण्ड की सजा दी गई है, उन चोरों को नगर में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ और पथ आदि स्थानों में जनसाधारण के सामने-प्रकट रूप में लाया जाता है। तत्पश्चात् बेतों से, डंडों से, लाठियों से, लकड़ियों से, ढेलों से, पत्थरों से, लम्बे लट्ठों से, पणोल्लि-एक विशेष प्रकार की लाठी से, मुक्कों से, लताओं से,लातों से, घुटनों से, कोहनियों से मार-मार कर उनके अंग-भंग कर दिए जाते हैं और उनके शरीर को मथ दिया जाता है। अठारह प्रकार के चोरों एवं चोरी के प्रकारों के कारण उनके अंग-भंग पीड़ित कर दिये जाते हैं, उनकी दशा अत्यन्त करुणाजनक होती है। उनके ओष्ठ, कण्ठ, गला, तालु और जीभ सूख जाती है,जीवन की आशा नष्ट हो जाती है। वे बेचारे प्यास से पीड़ित होकर पानी मांगते हैं तो वह भी उन्हें नहीं मिलता, वहां कारागार में वध के लिए नियुक्त पुरुष उन्हें धकेल कर या घसीट कर ले जाते हैं। अत्यन्त कर्कश पटह-ढोल बजाते हुए, राजकर्मचारियों द्वारा धकियाए जाते हुए तथा तीव्र क्रोध से भरे हुए राजपुरुषों के द्वारा फांसी या शूली पर चढ़ाने के लिए दृढ़तापूर्वक पकड़े हुए वे अत्यन्त ही अपमानित होते हैं, उन्हें प्राणदण्डप्राप्त मनुष्य के योग्य दो वस्त्र पहनाए जाते हैं, वध्यदूत सी प्रतीत होने वाली, शीघ्र ही मृत्यु दंड की सूचना देने वाली, गहरी लाल कनेर की माला उनके गले में पहनाई जाती है। मरण की भीति के कारण उनके शरीर से पसीना छूटता है, उस पसीने की चिकनाई से उनके अंग भीग जाते हैं, कोयले आदि के दुर्वर्ण चूर्ण से उनका शरीर पोत दिया जाता है। हवा से उड़कर चिपटी हुई धूलि से उनके केश रूखे एवं धूलभरे हो जाते हैं. उनके मस्तक के केशों को लाल रंग से रंग दिया जाता है, उनके जीने की आशा नष्ट हो जाती है, अतीव भयभीत होने के कारण वे डगमगाते हुए चलते हैं। वेत्त-दंड-लउड-कट्ठ-ले?-पत्थर-पणालि-पणोल्लि-मुट्ठिलया-पादपण्हि-जाणु कोप्पर-पहार-संभग्गं- महियगत्ता। अट्ठारस-कम्म-कारणा जाइयंगमंगा कलुणा, सुक्कोट्ठकंठ-गलक-तालु जीहा जायंता पाणीयं विगयजीवियासा तण्हाइया, वरागा तं पियण लभंति वज्झपुरिसेहिं घाडियंता। तत्थ य खर-फरुस-पडह-घट्टिय-कूडग्गह-गाढ-रुट्ठनिसट्ठ-परामुट्ठा, वज्झकरकुडिजुयनिवसिया, सुरत्तकणवीर-गहिय-विमुकुल-कंठेगुण-वज्झदूय-आविद्धमल्लदामा, मरणभयुप्पण्ण-सेद-आयत्तणे, उत्तुपिय-किलिन्नगत्ता, चुण्ण गुंडिय-सरीर रयरेणु भरियकेसा कुसुंभ-गोकिन्नमुद्धया, छिन्न जीवियासा घुन्नता वज्झपाणिप्पाया।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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