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________________ ९९० मंगुस खाडहिल चाउप्पाइया घिरोलिया सिरीसिवगणे एवमादी | य - पण्ह. १, सु. ८ ९. खयहर जीववग्गो कादंबक-बक-बलाका-सारस- आडा सेतीय-कुलल-वंजुलपारिप्पय- कोरसउण-दीविय हंस धत्तरिट्ठग-भासकुलीकोस- कोंच-दगतुंड ढेणियालग-सूयीमुह-कविलपिंगलक्खग - कारंडग-चक्कवाग- उक्कोस-गरुल- पिंगुल-सुयवरहिण-मयणसालनंदीमुह-नंदमाणग-कोंरंग भिंगारगकोणाला जीवजीवग- तित्तिर- वट्टग लावग कपिंजलककवोतक पारेवयग-चडग ढिंक-कुक्कुड-मसर-मयूरग-चउरग हय-पोंडरिय-करक-चीरल्ल-सेण-वायस-विहग-भिणासिचास वग्गुलिचम्मट्ठिल- विततपक्सी-समुग्गपक्खी खयहरविहाणाकए य एवमादी । - पण्ह. आ. १, सु. ९ १०. एगिंदयाइ पंचेंदिय पज्जंत तिरिक्खाणं वह कारणाणि जल-थल - खगचारिणो उ पंचेंदिए पसुगणे बिय-तिय-चउरिदिए विविहे जीवे पियजीविए मरणदुक्खपडिकूले बराए हति बहुसंकिलिट्ठ-कम्मा इमेहिं विविहेहिं कारणेहिं । प. किते ? उ. चम्म-वसा-मंस-मेय-सोणिय - जग- फिम्फिस-मत्थुलुंगहिय-पंत- पित्त-फोफस दंतट्ठा अठि- मिंज नह- नयणकण्ण-व्हारूणि नक्कथमणि- सिंगदादि पिच्छ विसाण-वालहेऊं हिंसंति य । विस भमर- मधुकरिगणे रसेसु गिद्धा । तव तेइंदिए सरीरोवकरणट्ठयाए किवणे । बेइदिए बहवे त्योहर परिमंडणट्ठा। अण्णेहिं य एवमाइएहिं बहूहिं कारणसएहिं अबुहा इह हिंसंति तसे पाणे इमे य एगिंदिए बहवे वराए तस्से य अणे तदस्सिए चेव तणुसरीरे समारंभंति । द्रव्यानुयोग - (२) जीव, मंगुस - गिलहरी, खाड़हिल-छुछुन्दर चातुष्पदिक घिरोलिका छिपकली इत्यादि अनेक प्रकार के भुजपरिसर्प जीवों का वध करते हैं। ९. खेचर जीवों का वर्ग कादम्बक - विशेष प्रकार का हंस, बक- बगुला, बलाका, सारस, आडी, सेतीक- जलपक्षी विशेष, कुलल-हंस विशेष, वजुल-खंजन पक्षी, पारिप्लव, कीर-तोता, शकुन तीतर दीपिका- एक प्रकार की काली चिड़िया, हंस-श्वेत हंस, धार्तराष्ट्र-काले मुख एवं पैरों वाला हंसविशेष, भास-बासक, कुटीकोश, क्रोंच, दगतुंडक जलकूकड़ी, ढेणिकाल - जलचर पक्षी, शूचीमुख- सुधरी, कपिल, पिंगलाक्ष, कारंडक, चक्रवाक-चकवा, उक्कोस-गरुड़, पिंगुल-लाल रंग का तोता, शुक-तोता, वरहिन मयूर, मदनशालिका मैना, नन्दीमुख, नन्दमानक-पक्षी विशेष कोरंग, श्रृंगारक- भिंगोड़ी, कुमालक जीवजीवक चातक, तीतर, वर्तक- बतख, लावक, कपिंजल, कपोत- कबूतर, पारावत - विशिष्ट प्रकार का कपोत, परेवा, चटक-चिड़िया, डिंग, कुक्कुट मुर्गा, बेसर, मयूरक-मयूर चतुर्ग-चकोर, हदपुण्डरीक जलीय पक्षी, करक, चीरल्ल-चील, श्येन - बाज, वायस - काक, विहग-एक विशिष्ट जाति का पक्षी, श्वेत चास, वल्गुली, चमगादड़ विततपक्षी और समुद्गपक्षी - अढाई द्वीप से बाहर के पक्षी विशेष इत्यादि पक्षियों की अनेकानेक जातियों की हिंसक जीव हिंसा करते हैं। १०. एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पर्यन्त तिर्यञ्च जीवों के वध के कारण 7 इस प्रकार, जल, स्थल और आकाश में विचरण करने वाले पंचेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तिर्यञ्च प्राणी जो अनेकानेक प्रकार के हैं उन सभी को जीवन प्रिय है, मरण व दुःख प्रतिकूल है फिर भी अत्यन्त संक्लिष्टकर्मा-क्लेश उत्पन्न करने की प्रवृत्ति वाले पापी पुरुष, इन बेचारे दीन-हीन प्राणियों का इन विविध प्रयोजनों से वथ करते हैं। " प्र. वे प्रयोजन क्या हैं ? उ. चमड़ा, चर्बी, माँस, मेद, रक्त, यकृत, फेफड़ा, हृदय, आंत, पित्ताशय, फोफस शरीर का एक अवयव, दाँत, अस्थि, हड्डी, मज्जा, नाखून, नेत्र, कान, स्नायु नाक, धमनी, सींग, दाढ, पिच्छ, विष, विषाण- हाथी दाँत तथा शूकरदंत और बालों के लिए हिंसक जन जीवों की हिंसा करते हैं। रसासक्त मनुष्य मधु के लिए भ्रमर-मधुमक्खियों का हनन करते हैं। शारीरिक सुख अथवा शरीर एवं उपकरणों को शृंगारित व संस्कारित करने के लिए तुच्छ त्रीन्द्रिय-दयनीय खटमल आदि त्रीन्द्रिय जीवों का वध करते हैं। वस्त्रादि का प्रसाधन करने व गृहादि को सुशोभित करने के लिए अनेक डीन्द्रिय कीड़ों आदि का घात करते हैं। इसी प्रकार के पूर्वोक्त तथा अन्य अनेकानेक प्रयोजनों से बुद्धिहीन अज्ञानी पापी जन त्रस जीवों का घात करते हैं तथा बहुत-से एकेन्द्रिय जीवों का व उनके आश्रय में रहे हुए अन्य सूक्ष्म शरीर वाले स जीवों का समारम्भ करते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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