SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्रव अध्ययन ९८९ १६.वोरमणं, १७.परभवसंकामकारओ, १८.दुग्गइप्पवाओ, १९. पावकोवो य, २०. पावलोभो, २१. छविच्छेओ, २२. जीवियंतकरणो, २३. भयंकरो, २४. अणकरो य, २५. वज्जो, २६. परितार्वणअण्हओ, २७. विणासो, २८. निज्जवणा,२९. लुंपणा,३०.गुणाणं विराहण त्ति विय तस्स एवमाईणि णामधेज्जाणि होति तीसं, पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल-देसगाई ॥ -पण्ह. सु.१, आ.१, सु.३ ६. पाणवह कारगा तं च पुण करेंति केइ पावा, असंजया, अविरया, अणिहुयपरिणामदुप्पओगा, पाणवह, भयंकरं बहुविहं, बहुप्पगारं, परदुक्खुप्पायणपसत्ता इमेहिं तस-थावरेंहि जीवेहिं पडिनिविट्ठा। -पण्ह. आ.१, सु.४ ७. जलयर जीववग्गो प. किं ते ? उ. पाठीण-तिमि-तिमिंगल-अणेगझस-विविहजातिमंडुक्क दुविह कच्छभ-णक्क-मगदुविह-मुसंढ-विविहगाहदिलिवेढय मंडुय-सीमागार-पुलक-सुंसुमार बहुप्पगारा जलयर विहाणा-कए य एवमादी। -पण्ह.आ.१.सु.५ १६. व्युपरमण-प्राण वियोग, १७. परभवसंक्रमणकारक, १८. दुर्गतिप्रपात-दुर्गति की प्राप्ति का हेतु, १९. पापकोप, २०. पापलोभ, २१. छविच्छेद-अंगोपांग छेदन, २२. जीवितअंतकरण-जीवन का अंत-कारक,२३. भयंकर, २४. ऋणकरपापकर्म रूप ऋण का कर्ता, २५. वज्र, २६. परितापन आश्रव, २७. विनाश,२८. निर्यापन-नष्ट करना, २९.लुपन-लुप्त करना, ३०.गुणों का विराधक इत्यादि प्राणवध-रूप कलुष के कटुक फल निर्देशक ये तीस नाम हैं। ६. प्राणवध करने वाले कितने ही पातकी-पापी, असंयत, अविरत, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काय के व्यापार दुष्प्रयुक्त है, जो दूसरों को दुःख देने में तत्पर रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों के प्रति द्वेषभाव रखते हैं, वे अनेक रूपों में विविध भेद-प्रभेदों से भयंकर प्राणवध-हिंसा किया करते हैं। ७. जलचर-जीवों का वर्ग प्र. वे किनकी हिंसा करते हैं? उ. पाठीन एक विशेष प्रकार की मछली, तिमि बड़े मत्स्य, तिमिंगल-महामत्स्य, अनेक प्रकार की मछलियाँ, विविध जाति के मेंढक, दो प्रकार के कच्छप-अस्थिकच्छप और माँसकच्छप, सुंडामगर एवं मत्स्यमगर के भेद से दो प्रकार के मगर, मूढसढ-मत्स्य विशेष, विविध प्रकार के ग्राह, दिन्निवेष्ट-पूँछ से लपेटने वाला जलीय जन्तु, मंडूक, सीमाकार, पुलक आदि ग्राह के प्रकार, सुंसुमार इत्यादि अनेकानेक प्रकार के जलचर जीवों की घात करते हैं। ८. स्थलचर जीवों का वर्ग कुरंग और रुरु जाति के हिरण, सरभ-अष्टापद, चमर-नील गाय, संबर-सांभर, उरभ्र-मेंढा, शशक-खरगोश, पसय-प्रशय-वन्य पशु विशेष, गोण-बैल, रोहित-पशुविशेष, घोड़ा, हाथी, गधा, करभ-ऊँट, खड्ग-गेंडा, वानर, गवय, रोझ, वृक-भेड़िया, शृगाल-सियार, कोल-शूकर, मार्जार-बिल्ली, कोलशुनक-जंगली शूकर, श्रीकंदलक एवं आवर्त नामक खुर वाले पशु, कोकन्तिकलोमड़ी, गोकर्ण-दो खुर वाला विशिष्ट जानवर, मृग, मैंसा, व्याघ्र, बकरा, द्वीपिक-तेंदुआ श्वान-जंगली कुत्ता, तरक्ष-जरख, रीछ-भालू, शार्दूल सिंह, सिंह केसरीसिंह, चित्तल अथवा हिरण की आकृति वाला पशुविशेष इत्यादि चतुष्पाद प्राणियों की पूर्वोक्त पापी मनुष्य हिंसा करते हैं। (क) उरपरिसर्प जीवों का वर्गअजगर, गोणस-बिना फन का सर्पविशेष, वराहि-दृष्टिविष-सर्प, मुकुली-फनवाला सांप, काउदर-काकोदर, दब्भपुष्फ-दर्वीकर सर्प, आसालिक, महोरग-विशालकाय सर्प, इन सब और इस प्रकार के अन्य उरपरिसर्प जीवों का पापी जन वध करते हैं। (ख) भुजपरिसर्प जीवों का वर्गक्षीरल-भुजाओं के सहारे चलने वाला प्राणी, शरम्ब, सेह-सेही बड़ेबड़े काले सफेद रंग के काँटों वाले शरीरधारी प्राणी, शल्यक, गोह, उन्दर-चूहा, नकुल-नेवला, शरट-गिरगिट, जाहक-कांटों से ढंका ८. थलयर जीव वग्गो कुरंग-रूरू-सरह-चमर-संबह-उरब्भ-ससय-पसय-गोणरोहिय-हय-गय-खर-करभ-खग्गी-वानर-गवय-विग-सियालकोल-मज्जार-कोलसुणग-सिरियंदलगावत्त-कोकंतिय-गोकन्नमिय-महिस-वियग्घ-छगल-दीविय-साण-तरच्छ-अच्छ-भल्ल-स दूल-सीह-चिल्लल-चउप्पयविहाणाकए य एवमादी। -पण्ह.आ.१,सु.६ रोहित-शक-खरगोश, पद, चमर-नील गाय, (क) उरपरिसप्पवग्गोअयगर-गोणस-वराहि-मउलि-काओदर-दब्भपुप्फ-आसालियमहोरगोरगविहाणाकए य एवमादी। -पण्ह. आ.१, सु.७ (ख) भुज-परिसप्पवग्गोछीरल-सरंब-सेह-सेल्लग-गोधा-उंदर-णउल-सरड-जाहग
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy