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________________ क्रिया अध्ययन ८६. अणंतरोवनग चउवीसदंडएसुचउसमवसरण परूवणं प. अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया कि किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! किरियावाई वि जाव वेणइयवाई वि। प. सलेस्सा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! एवं चेव, एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तव्यया तहेव इह वि भाणियव्वा। णवरं-जं जस्स अस्थि अणंतरोववन्नगाणं नेरइयाणं तं तस्स भाणियव्वं। एवं सव्व जीवाणं जाव वेमाणियाणं। णवरं-अणंतरोववन्नगाणं जहिं जं अस्थि तहिं तं भाणियव्यं। -विया. स.३०,उ. २, सु.१-४ ८७. किरियावाईआइ अणंतरोववन्नगचउवीसदंडएसु भवसिद्धियत्त अभवसिद्धियत्त परूवणंप. किरियावाई णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धीया अभवसिद्धीया?, उ. गोयमा ! भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया। प. अकिरियावाई णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धीया अभवसिद्धीया? उ. गोयमा ! भवसिद्धीया वि,अभवसिद्धीया वि। एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। प. सलेस्सा णं भंते ! किरियावाई अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धीया अभवसिद्धीया? उ. गोयमा ! भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया। एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तव्यया भणिया। तहेव इह विभाणियव्वा जाव अणागारोवउत्त त्ति। एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं-जंजस्स अस्थि तं तस्स सव्वं भाणियव्यं । - ९८३ ) ८६. अनन्तरोपपन्नक-चौबीस दंडकों में चार समवसरण का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी हैं ? उ. गौतम ! वे क्रियावादी भी हैं यावत् विनयवादी भी हैं। प्र. भंते ! क्या सलेश्यी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। जिस प्रकार प्रथम उद्देशक में नैरयिकों का कथन किया है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिए। विशेष-अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों के जो दो स्थान हैं वे ही कहने चाहिए। इसी प्रकार सब जीवों का वैमानिकों पर्यन्त कथन करना चाहिए। विशेष-अनन्तरोपपन्नक जीवों में जहां जो सम्भव हो वहां वह कहना चाहिए। ८७. क्रियावादी आदि अनन्तरोपपन्नक चौबीसदंडकों में भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक का प्ररूपणप्र. भंते ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी क्या भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं? उ. गौतम ! भवसिद्धिक हैं किन्तु अभवसिद्धिक नहीं हैं। प्र. भंते ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिक अक्रियावादी क्या भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? उ. गौतम ! भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी हैं। इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी भी जानना चाहिए। प्र. भंते ! सलेश्य अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी क्या भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? उ. गौतम ! भवसिद्धिक हैं किन्तु अभवसिद्धिक नहीं हैं। इसी प्रकार इस अभिलाप से जिस प्रकार औधिक उद्देशक में नैरयिकों का कथन किया है। उसी प्रकार यहां भी अनाकारोपयुक्त पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-उनमें जिसके जो स्थान हैं उसके वे सभी स्थान कहने चाहिए। उनके ये लक्षण हैं- जो क्रियावादी शुक्लपाक्षिक और सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं वे सब भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं हैं। शेष सब भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी हैं। इमं से लक्खणं-जे किरियावाई सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छद्दिट्ठी य एए सब्वे भवसिद्धीया, णो अभवसिद्धीया। सेसा सव्वे भवसिद्धीया वि, अभवसिद्धीया वि। -विया.स.३०, उ.२,सु.११-१६ ८८. परंपरोववन्नगचउवीसदंडएसु चउसमवसरणाइ परूवणं ८८. परंपरोपपन्नक चौबीस दंडकों में चार समवसरणादि का प्ररूपण- प्र. भंते ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी हैं ? प. परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं किरियावाई जाव वेणइयवाई?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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