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________________ द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! क्रियावादी भी है यावत् विनयवादी भी है। इसी प्रकार शुक्ललेश्या पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या अलेश्य जीव क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी हैं ? उ. गौतम ! वे क्रियावादी हैं, किन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी या विनयवादी नहीं हैं। ३. प्र. भंते ! क्या कृष्णपाक्षिक जीव क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी ( ९८०) ९८० उ. गोयमा ! किरियावाई विजाव वेणइयवाई वि। एवं जाव सुक्कलेस्सा। प. अलेस्सा णं भंते ! जीवा किं किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! किरियावाई, नो अकिरियावाई, नो अन्नाणियवाई,नो वेणइयवाई।। ३.प्र. कण्हपक्खिया णं भंते ! जीवा किं किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! नो किरियावाई, अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। ४. सम्मद्दिहि जहा अलेस्सा। मिच्छद्दिट्टि जहा कण्हपक्खिया। प. सम्ममिच्छद्दिट्ठीणं भंते ! जीवा किं किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! नो किरियावाई, नो अकिरियावाई, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। ५. णाणी जाव केवलनाणी जहा अलेस्सा। ६. अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। ७. आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसनोवउत्ता जहा सलेस्सा। नो सन्नोउवत्ता जहा अलेस्सा। ८. सवेयगाजाव नपुंसगवेयगा जहा सलेस्सा। अवेयगा जहा अलेस्सा। ९. सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा। उ. गौतम ! क्रियावादी नहीं हैं, किन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी हैं। शुक्लपाक्षिक जीवों का कथन सलेश्य जीवों के समान है। ४. सम्यग्दृष्टि जीव अलेश्य जीवों के समान हैं। मिथ्यादृष्टि जीव कृष्णपाक्षिक जीवों के समान हैं। प्र. भंते ! क्या सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव क्रियावादी हैं यावत् विनयवादी हैं? उ. गौतम ! वे क्रियावादी और अक्रियावादी नहीं हैं, किन्तु वे अज्ञानवादी और विनयवादी हैं। ५. ज्ञानी से केवलज्ञानी पर्यन्त अलेश्य जीवों के समान है। ६. अज्ञानी से विभंगज्ञानी पर्यन्त कृष्णपाक्षिक जीवों के समान हैं। ७. आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त जीव सलेश्य जीवों के समान हैं। नो संज्ञोपयुक्त जीव अलेश्य जीवों के समान हैं। ८. सवेदी से नपुसंकवेदी पर्यन्त जीव सलेश्य जीवों के समान हैं। अवेदी जीव अलेश्यी जीवों के समान हैं। ९. सकषायी से लोभकषायी पर्यन्त जीवों का कथन सलेश्य जीवों के समान हैं। अकषायी जीव अलेश्य जीवों के समान हैं। १०. सयोगी से काययोगी पर्यन्त जीव सलेश्य जीवों के समान हैं। अयोगी जीव अलेश्यी जीवों के समान हैं। ११. साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव सलेश्य जीवों के समान हैं। ८४. चौबीस दंडकों में ग्यारह स्थानों द्वारा क्रियावादी आदि समवसरणों का प्ररूपणप्र. दं. १. भंते ! क्या नैरयिक क्रियावादी होते हैं यावत् विनयवादी होते हैं? उ. गौतम ! वे क्रियावादी भी होते हैं यावत् विनयवादी भी अकसायी जहा अलेस्सा। १०. सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा। अजोगी जहा अलेस्सा। ११. सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता य जहासलेस्सा। -विया. स.३०, उ.१, सु.२-२१ ८४. चउवीसदंडएसु एक्कारसठाणेहि किरियावाईआइ समोसरण परूवणंप. द. १. नेरइया णं भंते ! किं किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! किरियावाई विजाव वेणइयवाई वि। होते हैं। प. सलेस्सा णं भंते ! नेरइया कि किरियावाई जाव वेणइयवाई? उ. गोयमा ! किरियावाई विजाव वेणइयवाई वि। प्र. भंते ! क्या सलेश्यी नैरयिक क्रियावादी होते हैं यावत् विनयवादी होते हैं? उ. गौतम ! वे क्रियावादी भी होते हैं यावत् विनयवादी भी होते हैं। इसी प्रकार कापोतलेश्यी नैरयिक पर्यन्त जानना चाहिए। कृष्णपाक्षिक नैरयिक क्रियावादी नहीं है। एवं जाव काउलेस्सा। कण्हपक्खिया किरियाविवज्जिया।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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