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________________ क्रिया अध्ययन ९७७ कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सात भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो आठ भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो नौ भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो दश भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो ग्यारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तेरह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.७, सु.२३ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम.८,सु.१८ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे नवहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.९, सु.२० संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे दसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.१०,सु.२५ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एक्कारसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम.११,सु.१६ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बारसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सिंति। -सम.सम.१२, सु.२० संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तेरसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम.१३, सु.१७ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे चउद्दसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.१४,सु.१८ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे पण्णरसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.१५, सु.१६ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सोलसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.१६, सु.१६ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तरसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम.१७, सु.२१ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठारसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम.१८,सु.१८ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एगूणवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम. १९, सु.१५ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम. सम.२०, सु. १७ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एक्कवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाघ सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। -सम.सम.२१.सु.१४ कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौदह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो पन्द्रह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सोलह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सत्तरह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो अठारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो उन्नीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो इक्कीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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