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________________ ९६४ से तेणठेणं जयंति ! एवं वुच्चइ 'अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू।" प. बलियत्तं भंते ! साहू, दुब्बलियत्तं साहू ? उ. जयंति ! अत्थेगइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "अत्थेगइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू ?" उ. जयंति !जे इमे जीवा अहम्मिया जाव अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरति एएसिणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। एएणं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुब्बलियस्स वत्तव्यया भाणियव्वा। बलियस्स जहा जागरस्स तहा भाणियव्वं जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं बलियत्तं साहू। से तेणठेणं जयंति! एवं वुच्चइ'अत्थेगइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू।' प. दक्खत्तं भंते ! साहू, आलसियत्तं साहू ? । उ. जयंति ! अत्थेगइयाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "अत्थेगइयाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू"? उ. जयंति ! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं आलसियत्तं साहू, एए णं जीवा अलसा समाणा नो बहूणं जहा सुत्ता तहा अलसा भाणियव्वा। जहा जागरा तहा दक्खा भाणियव्वा जाव संजोएत्तारो भवंति। एएणं जीवा दक्खा समाणा बहूहि१. आयरियवेयावच्चेहिं, २. उवज्झायवेयावच्चेहि, ३. थेरवेयावच्चेहिं, ४. तवस्सीवेयावच्चेहिं, ५. गिलाणवेयावच्चेहिं, ६. सेहवेयावच्चेहि, ७. कुलवेयावच्चेहिं, ८. गणवेयावच्चेहि, ९. संघवेयावच्चेहि, १०. साहम्मियवेयावच्चेहि, अत्ताणं संजोएत्तारो भवंति। एएसिणं जीवाणं दक्खत्तं साहू। से तेणट्टेणं जयंति ! एवं वुच्चइ"अत्थेगइयाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू।"-विया. स. १२, उ. २, सु. १८-२० द्रव्यानुयोग-(२) इस कारण से जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि“कई जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कई जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है।" प्र. भंते ! जीवों की सबलता अच्छी है या दुर्बलता अच्छी है? उ. जयन्ती ! कुछ जीवों की सबलता अच्छी है और कुछ जीवों की दुर्बलता अच्छी है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "कुछ जीवों की सबलता अच्छी है और कुछ जीवों की दुर्बलता अच्छी है?" उ, जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक यावत् अधर्म से ही आजीविका करते हैं, उन जीवों की दुर्बलता अच्छी है। जिस प्रकार जीवों के सुप्तपन का कथन किया है उसी प्रकार दुर्बलता का भी कथन करना चाहिए। जाग्रत के समान सबलता का कथन धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते हैं पर्यन्त कहना चाहिए। ऐसे (धार्मिक) जीवों की सबलता अच्छी है। इस कारण से जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि"कुछ जीवों की सबलता अच्छी है और कुछ जीवों की निर्बलता अच्छी है।" प्र. भंते ! जीवों का दक्षत्व अच्छा है या आलसीपना अच्छा है ? उ. जयंती ! कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपना अच्छा है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "कुछ जीवों का दक्षपना अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपना अच्छा है?" उ. जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक यावत् अधर्म से ही आजीविका करते हैं उन जीवों का आलसीपन अच्छा है। इन जीवों के आलसी होने पर सुप्त के समान आलसीपने का कथन करना चाहिए। जागृत के कथन के समान दक्षता का धर्म के साथ संयोजित करने वाले होते हैं पर्यन्त कथन कहना चाहिए। ये जीव दक्ष हों तो १. आचार्य वैयावृत्य, २. उपाध्याय वैयावृत्य, ३. स्थविर वैयावृत्य, ४. तपस्वी वैयावृत्य, ५. ग्लान (रुग्ण) वैयावृत्य,६. शैक्ष (नवदीक्षित) वैयावृत्य, ७. कुल वैयावृत्य, ८. गण वैयावृत्य, ९. संघ वैयावृत्य और १०. साधर्मिक वैयावृत्य (सेवा) से अपने आपको संयोजित (संलग्न) करने वाले होते हैं। इसलिए इन जीवों की दक्षता अच्छी है। इस कारण से जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि"कुछ जीवों का दक्षत्व (उद्यमीपन) अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है।"
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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