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________________ ९६० जे यावऽण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा कज्जति त ओ वि पडिविरया जावज्जीवाए। से जहाणामए अणगारा भगवंतो१. इरियासमिया, २. भासासमिया, ३. एसणासमिया, ४. आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिया, ५. उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिया१. मणसमिया, २. वइसमिया, ३. कायसमिया, १. मणगुत्ता, २. वइगुत्ता, ३. कायगुत्ता, गुत्ता, गुत्तिंदिया, गुत्तबंभयारी, अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिव्वुडा, अणासवा अगंथा छिन्नसोया निरुवलेवा१. कंसपाई व मुक्कतोया, २. संखो इव णिरंगणा, ३. जीवो इव अप्पडिहयगई, ४. गगणतलं पिव निरालंबणा, ५. वायुरिव अपडिबद्धा, ६. सारदसलिलं व सुद्धहियया, ७. पुक्खपत्तं व निरुवलेवा, ८. कुम्मो इव गुत्तिंदिया, ९. विहग इव विप्पमुक्का, १०. खग्गविसाणं व एगजाया, ११. भारंडपक्खी व अप्पमत्ता, १२. कुंजरा इव सोंडीरा, १३. वसभो इव जायत्थामा, १४. सीहो इव दुद्धरिसा, १५. मंदरो इव अप्पकंपा, १६. सागरो इव गंभीरा, १७. चंदो इव सोमलेसा, १८. सुरो इव दित्ततेया, १९. जच्चकणगं व जातरूवा, २०. वसुंधरा इव सव्वफासविसहा, २१. सुहुतहुयासणो विव तेयसा जलंता। णंत्थि णं तेसिं भगवंताणं कत्थवि पडिबंधे भवइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा१. अंडए इवा, २. पोयए इवा, ३. उग्गहे इवा, ४. पग्गहे इवा, जण्णं जण्णं दिसं इच्छंति तण्णं तण्णं दिसं अप्पडिबद्धा सुइब्भूया लहुब्भूया अप्पग्गंथा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति। द्रव्यानुयोग-(२) जो इस प्रकार के अन्य सावध, अबोधि करने वाले, दूसरे प्राणियों को परितप्त करने वाले कर्म-व्यवहार किए जाते हैं उनसे भी वे यावज्जीवन प्रतिविरत होते हैं। जैसे अनगार भगवन्त१. चलने में समित २. बोलने में समित. ३. आहार की एषणा में समित, ४. वस्त्र-पात्र लेने और रखने में समित, ५. उच्चार-प्रसवण-कफ श्लेष्म-मैल के उत्सर्ग में समित, १. मन से समित, २. वचन से समित, ३. शरीर से समित १. मन से गुप्त, २. वाणी से गुप्त, ३. शरीर से गुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय वाले, गुप्त ब्रह्मचर्य वाले, क्रोध-मान-माया और लोभ से मुक्त, शान्त, प्रशान्त-उपशान्त, परिनिर्वाण को प्राप्त। आश्रव से रहित, ग्रन्थि से रहित, शोक रहित और लेप रहित। १. अलिप्त कांसे की कटोरी की भांति स्नेहमुक्त, २. शंख की भांति रंगरहित. ३. जीव की भांति अप्रतिहत गति वाले, ४. गगन की भांति आलंबन रहित, ५. वायु की भांति स्वतंत्र, ६. शरद् ऋतु के जल की भांति शुद्ध हृदय वाले, ७. कमलपत्र की भांति निर्लेप, ८. कछुए की भांति गुप्त इन्द्रिय वाले, ९. पक्षी की भांति स्वतन्त्र विहारी, १०. गेंडे के सींग की भांति अकेले, ११. भारण्ड पक्षी की भांति अप्रमत्त, १२. हाथी की भांति पराक्रमी, १३. बैल की भांति भार के निर्वाह में समर्थ, १४. सिंह की भांति अपराजेय, १५. मंदर पर्वत की भांति अप्रकंप, १६. सागर की भांति गंभीर १७. चन्द्र की भांति सौम्य मनोवृत्ति वाले, १८. सूर्य की भांति दीप्ति तेजस्वी १९. शुद्ध स्वर्ण की भांति सहज सुन्दर, २०. पृथ्वी की भांति सब स्पर्शों को सहने वाले २१. धृत सिक्त अग्नि की भांति तेज से देदीप्यमान होते हैं उन भगवन्तों के कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। बह प्रतिबन्ध चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. अंडज, २. पोतज, ३. अवग्रह, ४. प्रग्रह। वे जिस-जिस दिशा में जाना चाहते हैं, उस-उस दिशा में अप्रतिबद्ध, शुचिभूत, धन-धान्य से रहित, अल्प उपधि वाले, अपरिग्रही रहते हुए, संयम और तप के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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