SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रिया अध्ययन १.जस्स, २.जं समयं, ३.जं देसं, ४.जं पदेसं।' ९०५ ॥ १. जिस जीव के, २. जिस समय, ३. जिस देश में और ४. जिस प्रदेश में। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। ११. आरंभिकी आदि पांच क्रियाएं प्र. भंते ! क्रियाएं कितनी कही गई हैं ? उ. गौतम ! क्रियाएं पांच कही गई हैं, यथा १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया ४. अप्रत्याख्यानक्रिया ५. मिथ्यादर्शन-प्रत्यया। दं.१-२४ एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं। -पण्ण. प.२२,सु. १६१७-१६१९ ११. आरंभियाइ पंच किरियाओ प. कइ णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा १.आरंभिया २.पारिग्गहिया ३. मायावत्तिया ४.अपच्चक्खाणकिरिया ५.मिच्छादसणवत्तिया। -पण्ण.प. २२,सु.१६२१ १२. आरंभियाइ किरियासामित्त परूवणं प. आरंभिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जइ? उ. गोयमा ! अण्णयरस्सावि पमत्तसंजयस्स। प. पारिग्गहिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जइ ? उ. गोयमा ! अण्णयरस्सावि संजयासंजयस्स। प. मायावत्तिया णं भन्ते ! किरिया कस्स कज्जइ? उ. गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपमत्तसंजयस्स। प. अप्पच्चक्खाणकिरिया णं भंते ! कस्स कज्जइ? उ. गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपच्चक्खाणिस्स। प. मिच्छादसणवत्तिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जइ? उ. गोयमा ! अण्णयरस्सावि मिच्छादंसणिस्स। -पण्ण. प. २२, सु.१६२२-१६२६ १३. चउवीसदंडएसु आरंभियाइ पंचकिरियाओ प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! कइ किरियाओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ,तं जहा १.आरंभिया जाव ५.मिच्छादसणवत्तिया। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणियाणं।-पण्ण. प. २२,सु.१६२७ १२. आरंभिकी आदि क्रियाओं के स्वामित्व का प्ररूपण प्र. भंते ! आरम्भिकी क्रिया किसके होती है? उ. गौतम ! किसी एक प्रमत्तसंयत के होती है। प्र. भंते ! पारिग्रहिकी क्रिया किसके होती है? उ. गौतम ! किसी एक संयतासंयत के होती है। प्र. भंते ! मायाप्रत्यया क्रिया किसके होती है? उ. गौतम ! किसी एक अप्रमत्तसंयत के होती है। प्र. भंते ! अप्रत्याख्यानक्रिया किसके होती है? उ. गौतम ! किसी एक अप्रत्याख्यानी के होती है। प्र. भंते ! मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया किसके होती है? उ. गौतम ! किसी एक मिथ्यादर्शनी के होती है। १४. पावट्ठाणविरयजीवेसु आरंभियाइ किरियाभेय परूवणं प. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! पाणाइवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ। प. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ? उ. गोयमा ! सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ। प. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अप्पच्चक्वाण वत्तिया किरिया कज्जइ? १३. चौबीस दंडकों में आरंभिकी आदि पांच क्रियाएं प्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों में कितनी क्रियाएं कही गई हैं ? उ. गौतम ! पांच क्रियाएं कही गई हैं, यथा १.आरम्भिकी यावत् ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त पांचों क्रियाएं कहनी चाहिए। १४. पापस्थानों से विरत जीवों में आरंभिकी आदि क्रिया भेदों का प्ररूपणप्र. भंते ! प्राणातिपात से विरत जीव क्या आरम्भिकी क्रिया करता है? उ. गौतम ! प्राणातिपात से विरत जीव आरम्भिकी क्रिया कदाचित् करता भी है और कदाचित् नहीं भी करता है। प्र. भंते ! प्राणातिपात से विरत जीव क्या पारिग्रहिकी क्रिया करता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! प्राणातिपात से विरत जीव मायाप्रत्यया क्रिया करता है? उ. गौतम ! कदाचित् करता है और कदाचित् नहीं करता है। प्र. भंते ! प्राणातिपात से विरत जीव क्या अप्रत्याख्यान-प्रत्यया क्रिया करता है? १. ठाणं अ.५,उ.२,सु.४१९
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy