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________________ ८९२ एवं दिसाकुमारा वि एवं थणियकुमारा वि । एवं नागकुमारा वि । सुवण्णकुमारा वि एवं चैव । विज्जुकुमारा वि एवं चैव बाउकुमारा वि एवं चैव । अग्गिकुमारा वि एवं चैव । - विया. स. १६, उ. १३, सु. १ -विया. स. १६, उ.१४, सु. १ - विया. स. १७, उ. १३, सु. १ - विया. स. १७, उ. १४, सु. १ विद्या. स. १७, ३.१५, पु. १ -विया. स. १७, उ. १६, सु. १ विया. स. १७, ७.१७. सु. १ ५०. सलेस्स जीव- चउवीसदंडएसु इड्ढि अप्पबहुत्तं प. एएसि णं भंते! जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अपिडिया या महिड्डिया वा ? उ. गोयमा ! १. कण्हलेस्सेहिंतो णीललेस्सा महिडिया, २. णीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महिड्ढिया, ३. काउलेस्सेहिंतो तेउलेस्सा महिडिया, ४. तेउलेस्सेहिंतो पम्हलेस्सा महिड्डिया ५. पम्हलेस्सेहिंतो सुक्कलेस्सा महिड्ढिया, ६. सव्यापिढिया जीवा कण्हलेस्सा, ७. सव्वमहिया जीवा सुकलेस्सा। " प. एएसि णं भंते ! णेरइयाणं कण्हलेस्साणं, णीललेस्साणं, काउलेस्साण य कपरे कयरेहिंतो अपिढिया या महिड्ढिया वा ? उ. गोयमा १. कण्हलेस्सेहिंतो णीललेस्सा महिड्ढिया, २. नीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महिढिया, ३. सव्वपिढिया गैरइया कण्हलेस्सा, ४. सव्यमहिद्रिया णेरड्या काउलेस्सा। प. एएसि णं भंते! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पिड्ढिया वा, महिदिया था ? उ. गोयमा ! जहा जीवा । १. कण्हलेस्सेहिंतो णीललेस्सा महिडिया, प. एएसि णं भंते! एगिंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण व कमरे कयरेहिंतो अपिडिया या महिड्ढिया वा ? उ. गोयमा । एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो २. णीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महिड्ढिया, ३. काउलेस्सेहिंतो तेउलेस्सा महिड्ढिया, ४. सव्वपिढिया एगिंदियतिरिक्ख जोणिया कण्हलेस्सा, ५. सव्यमहिया तेउलेस्सा। एवं पुढविक्वाइयाणवि । व्यानुयोग - (२) दिशाकुमारों का अल्प बहुत्व भी इसी प्रकार है। स्तनितकुमारों का अल्प बहुत्व भी इसी प्रकार है। नागकुमारों का अल्प बहुत्व भी इसी प्रकार है। सुवर्णकुमारों का अल्पबहुत्व भी इसी प्रकार है। विद्युतकुमारों का अल्पबहुत्व भी इसी प्रकार है। वायुकुमारों का अल्प बहुत्व भी इसी प्रकार है। अग्निकुमारों का अल्प बहुत्व भी इसी प्रकार है। ५०. सलेश्य जीव चौवीस दंडकों में ऋद्धि का अल्पबहुत्व प्र. इन कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले जीवों में से कौन, किससे अल्प ऋद्धि वाले या महाऋद्धि वाले हैं ? उ. गौतम ! १. कृष्णलेश्या वालों से नीललेश्या वाले महर्द्धिक हैं, २. नीललेश्या वालों से कापोतलेश्या वाले महर्द्धिक है. ३. कापोतलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले महर्द्धिक हैं, ४. तेजोलेश्या वालों से पद्मलेश्या वाले महर्द्धिक हैं, ५. पद्मलेश्या वालों से शुक्ललेश्या वाले महर्द्धिक हैं, ६. कृष्णलेश्या वाले जीव सबसे अल्प ऋद्धि वाले हैं, ७. शुक्ललेश्या वाले जीव सबसे महा ऋद्धि वाले हैं। प्र. भंते ! इन कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी नारकों में कौन, किससे अल्प ऋद्धि वाले या महाऋद्धि वाले हैं ? उ. गौतम ! १. कृष्णलेश्यी नारकों से नीललेश्वी नारक महर्द्धिक हैं, २. नीललेश्पी नारकों से कापोतलेश्यी नारक महर्दिक है, ३. कृष्णलेश्या वाले नारक सबसे अल्प ऋद्धि वाले हैं, ४. कापोतलेश्या वाले नारक सबसे महाऋद्धि वाले हैं। प्र. भंते ! इन कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिकों में से कौन किससे अल्प ऋद्धि वाले या महाऋद्धि वाले हैं ? उ. गौतम ! जैसे समुच्चय जीवों की अल्पऋद्धि महाऋद्धि कही है, उसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिकों की कहनी चाहिए। प्र. भंते ! कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से कौन किससे अल्पऋद्धि वाले या महाऋद्धि वाले है ? , उ. गौतम ! १. कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों की अपेक्षा नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय महर्द्धिक हैं, २. नीललेश्या वालों से कापोतलेश्या वाले महर्द्धिक हैं, ३. कापोतलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले महर्द्धिक है, ४. सबसे अपनद्धि वाले कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक हैं, ५. सबसे महाऋद्धि वाले तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं। इसी प्रकार पृथ्वीकायिकों की अल्पऋद्धि महाऋद्धि का अल्पबहुत्व कहना चाहिए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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