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________________ लेश्या अध्ययन ८७३ प. दं. १४ से नूणं भंते ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से तेउक्काइए, कण्हलेस्सेसु णीललेस्सेसु काउलेस्सेसु तेउक्काइएसु उववज्जइ ? कण्हलेसे णीललेसे काउलेसे उव्वट्टइ? जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ? उ. हंता गोयमा ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से तेउक्काइए कण्हलेसेसु णीललेसेसु काउलेसेसु तेउक्काइएसु उववज्जइ, सिय कण्हलेसे उव्वट्टइ, सिय णीललेसे उव्वट्टइ, सिय काउलेसे उव्वट्टइ, सिय जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ। दं. १५, १७-१९ एवं वाउक्काइया, बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदिया विभाणियव्या। प. दं. २० से नूणं भंते ! कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे पंचेंदियतिरिक्खजोणिए, कण्हलेसेसु जाव सुक्कलेसेसु पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ? कण्हलेसेसु उववट्टइ जाव सुक्कलेसेसु उव्वट्टइ जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ? प्र. दं.१४ . भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक, कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में उत्पन्न होता है? क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला होकर उद्वर्तन करता है जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, क्या उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है? उ. हां, गौतम ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक, कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में उत्पन्न होता है, कदाचित् कृष्णलेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् नीललेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् कापोतलेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है। दं. १५, १७-१९ इसी प्रकार वायुकायिक तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में कहना चाहिए। प्र. दं.२०. भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होता है ? क्या कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या में उद्वर्तन करता है? (अर्थात्) जिस लेश्या में उत्पन्न होता है क्या उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है? उ. हां, गौतम ! कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होता है। कदाचित् कृष्णलेश्यी होकर उद्वर्तन करता है यावत् कदाचित् शुक्ललेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है। दं. २१ इसी प्रकार मनुष्य का भी उत्पाद-उद्वर्तन कहना चाहिए। दं.२२ वाणव्यन्तर का उत्पाद-उद्वर्तन असुरकुमार के समान कहना चाहिए। दं.२३-२४ ज्योतिष्क और वैमानिक का उत्पाद-उद्वर्तन इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष-जिसमें जितनी लेश्याएं हों, उतनी लेश्याओं का कथन करना चाहिए। दोनों के लिए उद्वर्तन के स्थान में च्यवन शब्द कहना चाहिए। उ. हंता . गोयमा ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से पंचेंदियतिरिक्खजोणिए, कण्हलेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेसु पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ, सिय कण्हलेस्से उव्वट्टइ जाव सिय सुक्कलेस्से उव्वट्टइ, सिय जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ। दं.२१ एवं मणूसे वि। दं.२२ वाणमंतरे जहा असुरकुमारे। दं.२३-२४ जोइसिय-वेमाणिया वि एवं चेव। णवरं-जस्स जल्लेसा, तस्स तल्लेसा, दोण्ह वि चयणं ति भाणियव्यं।' -पण्ण. प. १७, उ.३, सु. १२०८-१२१४ ३३. सलेस्स जीवाणं कया परभवगमण परूवणं लेसाहिं सव्वाहिं पढमे,समयम्मि परिणयाहिं तु। न वि कस्सवि उव्वाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ लेसाहिं सव्वाहिं चरमे,समयम्मि परिणयाहिं तु। नवि कस्सवि उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ १. विया. स. ४, उ. ९, सु.१ ३३. सलेश्य जीवों के परभव गमन का प्ररूपण प्रथम समय में परिणत सभी लेश्याओं से कोई भी जीव दूसरे भव में उत्पन्न नहीं होता है। अन्तिम समय में परिणत सभी लेश्याओं से भी कोई जीव दूसरे भव में उत्पन्न नहीं होता है।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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