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________________ ( ८७२ । ८७२ प. द. २३. से नूणं भंते ! तेउलेस्से जोइसिए तेउलेस्सेसु जोइसिएसु उववज्जइ? उ. गोयमा !जहेव असुरकुमारा। दं.२४ एवं वेमाणिया वि। णवरं-दोण्ह वि चयंतीति अभिलावो। -पण्ण.प.१७,उ.३.सु.१२0१-१२०७ ३२. सलेस्सेसु चउवीसदंडएसु अविभागेणं उववाय-उव्वट्टण परूवणंप. द. १. से नूणं भंते ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णीललेस्सेसु काउलेस्सेसु णेरइएसु उववज्जइ? कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से उव्वट्टइ, जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ? उ. हंता, गोयमा ! कण्हलेस्स णीललेस्स काउलेस्सेसु उववज्जइ, जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ। प. दं. २-११ से नूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से असुरकुमारे, कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु असुरकुमारेसु उववज्जइ? कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से तेउलेस्से उव्वट्टइ द्रव्यानुयोग-(२) प्र. दं. २३. भंते ! वास्तव में क्या तेजोलेश्यी ज्योतिष्क देव तेजोलेश्यी ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! (तेजोलेश्यी) असुरकुमारों के समान कहना चाहिए। द. २४. इसी प्रकार वैमानिक देवों के (उत्पाद और उद्वर्तन के) विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-दोनों प्रकार के देवों का च्यवन होता है ऐसा अभिलाप करना चाहिए। ३२. सलेश्य चौबीस दण्डकों में अविभाग द्वारा उत्पाद-उद्वर्तन का प्ररूपणप्र. द. १. भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला नैरयिक कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है? क्या वह कृष्णलेश्या, नीललेश्या तथा कापोतलेश्या वाला होकर ही उद्वर्तन करता है (अर्थात्) जिस लेश्या में उत्पन्न होता है क्या उसी लेश्या में मरण करता है? उ. हां, गौतम ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न होता है। जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है। प्र. दं.२-११ भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाला असुरकुमार कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, क्या वह कृष्णलेश्या नील लेश्या कापोत लेश्या वाला होकर ही उद्वर्तन करता है। जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, क्या उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है? उ. हां, गौतम ! जैसे नैरयिक के उत्पाद-उवर्तन के सम्बन्ध म कहा, वैसे ही असुरकुमार से स्तनितकुमार पर्यन्त भी कहना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है, क्या वह कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाला होकर ही उद्वर्तन करता है, जिस लेश्या में उत्पन्न होता है क्या उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है ? उ. हां, गौतम ! कृष्णलेश्यी यावत् तेजोलेश्यी पृथ्वीकायिक कृष्ण लेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, कदाचित् कृष्णलेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् नीललेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् कापोतलेश्यी होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में उद्वर्तन करता है। तेजोलेश्या से युक्त होकर उत्पन्न तो होता है, किन्तु तेजोलेश्या वाला होकर उद्वर्तन नहीं करता है। दं. १३,१६. इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों के विषय में भी कहना चाहिए। जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ? उ. गोयमा ! एवं जहेव नेरइए तहा असुरकुमारे वि जाव थणियकुमारे वि। प. दं. १२ से नूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ? कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से उव्वट्टइ जल्लेसे उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ? उ. हंता, गोयमा ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जइ, सिय कण्हलेस्से उव्वट्टइ। सिय णीललेस्से उव्वट्टइ, सिय काउलेस्से उव्वट्टइ, सिय जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्टइ, तेउलेस्से उववज्जइ, णो चेवणं तेउलेस्से उव्वट्टइ। दं. १३, १६ एवं आउक्काइया वणस्सइकाइया वि भाणियव्वा।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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