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________________ ८६९ यथा-तेजोलेश्या, पद्मलेश्या या शुक्ललेश्या वालों में। लेश्या अध्ययन तं जहा-तेउलेसेसुवा, पम्हलेसेसुवा, सुक्कलेसेसुवा। -विया. स.३, उ.४,सु. १२-१४ २८. सलेस्सेसुनेरइएसु उववज्जणंप. से नूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति? उ. हंता, गोयमा ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति। प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति? उ. गोयमा ! लेस्सट्ठाणेसु संकिलिस्समाणेसु संकिलिस्समाणेसु कण्हलेस्सं परिणमंति कण्हलेस्सं परिणमित्ता कण्हलेस्सेसुनेरइएसु उववज्जंति, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति।' प. से नूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसुनेरइएसु उववज्जति? उ. हंता, गोयमा ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसुनेरइएसु उववज्जंति। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति?" उ. गोयमा ! लेस्सट्ठाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा, विसुज्झमाणेसु वा, नीललेस्सं परिणमंति नीललेस्सं परिणमित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववति । २८. सलेश्य नैरयिकों में उत्पत्तिप्र. भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी कृष्णलेश्यी वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? उ. हां, गौतम ! कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी, कृष्णलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी कृष्णलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? उ. गौतम ! उनके लेश्या स्थान संक्लेश को प्राप्त होते-होते कृष्णलेश्या के रूप में परिणत हो जाते हैं और कृष्णलेश्या के रूप में परिणत होने पर वे जीव कृष्णलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी कृष्णलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं।" प्र. भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी जीव पुनः नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? उ. हा, गौतम ! कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी जीव नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी जीव नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? उ. गौतम ! लेश्या के स्थान उत्तरोत्तर संक्लेश को प्राप्त होते-होते तथा विशुद्ध होते-होते नीललेश्या के रूप में परिणत हो जाते हैं और नीललेश्या के रूप में परिणत होने पर वे जीव नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी जीव नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं।" प्र. भंते ! वास्तव में क्या कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी जीव कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार नीललेश्या के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार कापोतलेश्या के विषय में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी जीव कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ?" उ. गौतम ! जिस प्रकार नीललेश्या के विषय में कहा गया है उसी प्रकार कापोतलेश्या के विषय में भी कहना चाहिये। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होने पर भी जीव कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं।" से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति।" प. से नूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता काउलेस्सेसु नेरइएसु उववजंति? उ. गोयमा ! एवं जहा नीललेस्साए तहा काउलेस्साए वि भाणियव्वा। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता काउलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति? उ. गोयमा ! एवं जहा नीललेस्साए तहा काउलेस्साए वि भाणियव्वा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता काउलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति।" -विया. स. १३, उ.१,सु. २८-३०
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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