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________________ लेश्या अध्ययन सेसंजहा सलेस्सा नेरइयाणं। णवरं-किरियासु णाणत्तं। प. सलेस्सा मणुस्सा णं भंते ! सव्वे समकिरिया? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ___ "सलेस्सा मणुस्सा णो सव्वे समकिरिया ?" उ. गोयमा ! मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सम्पद्दिट्ठी, २. मिच्छद्दिट्ठी, ३. सम्ममिच्छद्दिट्ठी। तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. संजया, २. असंजया, ३. संजयासंजया। तत्थ णं जे ते संजया,ते दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सरागसंजया य, २. वीयरागसंजया य। तत्थ णं जे ते वीयरागसंजया ते णं अकिरिया। तत्थ णं जे ते सरागसंजया,ते दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. पमत्तसंजया य, २. अपमत्तसंजया य। तत्थ णं जे ते अपमत्तसंजया तेसिं एगा मायावत्तिया किरिया कज्जति, तत्थ णं जे ते पमत्त संजया तेसिं दो किरियाओ कज्जति, तं जहा१. आरंभिया, २. मायावत्तिया य। तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसिं तिण्णि किरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरंभिया, २. परिग्गहिया, ३. मायावत्तिया। तत्थ णं जे ते असंजया तेसिं चत्तारि किरियाओ कज्जति, तं जहा१. आरंभिया जाव ४. अपच्चक्खाणकिरिया। तत्थ णं जे ते मिच्छद्दिट्ठी जे य सम्मामिच्छदिट्ठी तेसिं णियइयाओ पंचकिरियाओ कज्जंति, तं जहा१. आरंभिया जाव ५. मिच्छादसणवत्तिया। दं.२२ सलेस्सा वाणमंतराणं जहा असुरकुमारा। शेष (वेदना द्वार तक) वर्णन सलेश्य नैरयिकों के समान जानना चाहिये। विशेष-क्रिया में भिन्नता है। प्र. भंते ! क्या सभी सलेश्य मनुष्य समान क्रिया वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी सलेश्य मनुष्य समान क्रिया वाले नहीं हैं?" उ. गौतम ! मनुष्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि, ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि। उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संयत, २. असंयत, ३. संयतासंयत। उनमें जो संयत हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सरागसंयत, २. वीतरागसंयत। उनमें जो वीतरागसंयत हैं, वे क्रियारहित हैं, उनमें जो सरागसंयत हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. प्रमत्तसंयत, २. अप्रमत्तसंयत। उनमें जो अप्रमत्तसंयत हैं, वे एक मायाप्रत्यया क्रिया करते हैं, उनमें जो प्रमत्तसंयत हैं, दो क्रियाएं करते हैं। यथा१. आरम्भिकी, २. मायाप्रत्यया। उनमें जो संयतासंयत हैं, वे तीन क्रियाएं करते हैं, यथा १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया। उनमें जो असंयत हैं वे चार क्रियाएं करते हैं, यथा दं.२३-२४ एवं सलेस्सा जोइसिया विवेमाणिया वि। १. आरम्भिकी यावत् ४. अप्रत्याख्यान क्रिया। उनमें जो मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं वे नियम से पांच क्रियाएं करते हैं, यथा१. आरम्भिकी यावत् ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया। दं. २२ सलेश्य वाणव्यन्तरों के सात द्वार असुरकुमारों के समान हैं। दं. २३-२४ सलेश्य ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के सातों द्वार भी इसी प्रकार हैं। विशेष-वेदना में भिन्नता है। प्र. भंते ! क्या सभी सलेश्य ज्योतिष्क और वैमानिक समान वेदना वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी सलेश्य ज्योतिष्क और वैमानिक समान वेदना वाले नहीं हैं? णवरं-वेयणाए णाणत्तं। प. सलेस्सा णं भंते ! जोइसिया वेमाणिया सव्वे समवेयणा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणठे णं भंते ! एवं वुच्चइ "सलेस्सा जोइसिया वेमाणिया णो सव्वे समवेयणा?"
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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