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________________ ८६२ तं ३. सम्ममिच्छद्दिट्ठी। १. तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. असंजया य, २. संजयासंजया य। क. तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसिंणं तिण्णि किरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरम्भिया, २. परिग्गहिया, ३. मायावत्तिया। ख. तत्थ णं जे ते असंजया तेसिं णं चत्तारि किरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरंभिया, २. परिग्गहिया, ३. मायावत्तिया, ४. अपच्चक्खाणकिरिया। २. तत्थ णं जे ते मिच्छद्दिट्ठी जे य सम्मामिच्छद्दिट्ठि तेसिं णियइयाओ पंच किरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरंभिया जाव ५. मिच्छादसणवत्तिया। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइसलेस्सा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णो सव्वे समकिरिया।" [ द्रव्यानुयोग-(२)) ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि। १. उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. असंयत, २. संयतासंयत। क. उनमें से जो संयतासंयत हैं, वे तीन क्रियाएं करते हैं, यथा१. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया। ख. उनमें जो असंयत हैं, वे चार क्रियाएं करते हैं, यथा प. दं. २१ सलेस्सा मणुस्सा णं भंते ! सव्वे समाहारा सव्वे समसरीरा सव्वे समुस्सासणिस्सासा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "सलेस्सा मणुस्सा णो सव्वे समाहारा, णो सव्वे समसरीरा, णो सव्वे समुस्सासणिस्सासा? उ. गोयमा ! सलेस्सा मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. महासरीरा य, २. अप्पसरीराय। १. तत्थ णं जे ते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति, आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उस्ससंति, आहच्च नीससंति। १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४. अप्रत्याख्यानाक्रिया। २. उनमें जो मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं वे नियमतः पांच क्रियाएं करते हैं, यथा१. आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी सलेश्य पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक समक्रिया वाले नहीं हैं।" प. द.२१ भंते ! क्या सभी सलेश्य मनुष्य समान आहार वाले, सभी समान शरीर वाले तथा सभी समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी सलेश्य मनुष्य समान आहार वाले नहीं हैं, सभी समान शरीर वाले नहीं हैं और सभी समान उच्छ्वास निःश्वास वाले नहीं हैं।" उ. गौतम ! सलेश्य मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. महाशरीर वाले, २. अल्पशरीर वाले, १. उनमें से जो महाशरीर वाले मनुष्य हैं, वे बहुत अधिक पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत अधिक पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुत अधिक पुद्गलों का उच्छ्वास लेते हैं और बहुत अधिक पुद्गलों का नि:श्वास छोड़ते हैं। वे कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् पुद्गलों का परिणमन करते हैं, कदाचित् उच्छ्वसन करते हैं, कदाचित् निःश्वसन करते हैं। २. उनमें से जो अल्प शरीर वाले हैं, वे अल्प पुद्गलों का आहार करते हैं, अल्प पुद्गलों का परिणमन करते हैं, अल्प पुद्गलों का उच्छ्वास लेते हैं और अल्प पुद्गलों का निःश्वास छोड़ते हैं। वे बार-बार आहार करते हैं, बार-बार पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बार-बार उच्छ्वसन करते हैं और बार-बार निःश्वसन करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी सलेश्य मनुष्य समान आहार वाले नहीं है, समान शरीर वाले नहीं हैं और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं हैं।" २. तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले नीससंति। अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति, अभिक्खणं नीससंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सलेस्सा मणुस्सा णो सब्वे समाहारा, णो सव्वे समसरीरा,णो सव्वे समुस्सासणिस्सासा।"
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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