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________________ पृष्ठांक २७५ २७८ २६३ २६३ विषय पृष्ठांक | सूत्र विषय १४३. सूक्ष्म और बादर जीवों का अल्पबहुत्व, २४३ २. शीतादि योनिक जीवों का अल्पबहुत्व, १४४. सूक्ष्म-बादर की विवक्षा से षड्कायिक जीवों . ३. सचित्तादि योनि भेद और चौबीसदंडकों में का अल्पबहुत्व, २४३-२५४ प्ररूपण, २७५-२७६ १४५. विस्तार से सकायिक-अकायिक जीवों का ४. सचित्तादि योनिकों का अल्पबहुत्व, २७६ अल्पबहुत्व, २५४-२५६ . ५. संवृतादि योनि भेद और चौबीसदंडकों में १४६. त्रस और स्थावरों का अल्पबहुत्व, २५६ प्ररूपण, २७६-२७७ १४७. परीतादि जीवों का अल्पबहुत्व, २५६ ६. संवृतादि योनिक जीवों का अल्पबहुत्व, २७७ १४८. भवसिद्धिकादि जीवों का अल्पबहुत्व, २५६-२५७ ७. मनुष्यों की तीन प्रकार की योनियाँ, २७७ १४९. त्रसादि जीवों का अल्पबहुत्व, २५७ ८. शाली आदि की योनियों की संस्थिति का १५०. पर्याप्तकादि जीवों का अल्पबहुत्व, २५७ प्ररूपण, २७७ १५१. नवविध विवक्षा से एकेन्द्रियादि जीवों का ९. कलमसूरादि की योनियों की संस्थिति का अल्पबहुत्व, २५७ प्ररूपण, २७८ १५२. प्रथमाप्रथमसमय की विवक्षा से एकेन्द्रियादिकों १०. अलसी आदि की योनियों की संस्थिति का का अल्पबहत्व, २५७-२५८ प्ररूपण, २७८ १५३. निगोदों का द्रव्यार्थादि की अपेक्षा अल्पबहुत्व, २५८-२६१ ११. आठ प्रकार का योनि-संग्रह, २७८ १२. स्थलचर-जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों ८. प्रथम-अप्रथम अध्ययन के योनि-संग्रह का प्ररूपण, १. प्रथम-अप्रथम का लक्षण, १३. योनि कुल कोटियों का प्ररूपण, २७९-२८० २. जीव-चौबीसदंडक और सिद्धों में चौदह द्वारों द्वारा प्रथमाप्रथमत्व का प्ररूपण, ११. संज्ञा अध्ययन २६३ १. जीव द्वार, १. सामान्य से संज्ञा का प्ररूपण, २८२ २. आहार द्वार, २६३-२६४ २. चार प्रकार की संज्ञायें और उनकी उत्पत्ति के ३. भवसिद्धिक द्वार, कारण, ४. संज्ञी द्वार, २६४ ५. लेश्या द्वार, २६४-२६५ ३. संज्ञाओं के अगुरुलघुत्व का प्ररूपण, ६. दृष्टि द्वार, २६५ ४. संज्ञा निवृत्ति के भेद और चौबीसदंडकों में ७. संयत द्वार, २६५-२६६ प्ररूपण, ८. कषाय द्वार, २६६ ५. संज्ञाकरण के भेद और चौबीसदंडकों में ९. ज्ञान द्वार, २६६-२६७ प्ररूपण, १०. जोग द्वार, २६७ ६. संज्ञाओं में बंध भेद और चौबीसदंडकों में ११. उपयोग द्वार, २६७-२६८ प्ररूपण, १२. वेद द्वार, २६८ ७. चार गतियों में चतुःसंज्ञोपयुक्तत्व और उनका १३. शरीर द्वार, २६८-२६९ अल्पबहुत्व, २८३-२८४ १४. पर्याप्त द्वार, २६९ ८. दस प्रकार की संज्ञाओं का प्ररूपण, २८४ ९.संज्ञी अध्ययन ९. चौबीसदंडकों में दस संज्ञाओं का प्ररूपण, २८४ १. जीव-चौबीसदंडकों और सिद्धों में संज्ञी आदि १२. स्थिति अध्ययन का प्ररूपण, २७१ २. सम्मूर्छिम-गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों और ६. स्थिति के भेद, २८७ मनुष्यों के संज्ञी आदि का प्ररूपण, २७२ २. त्रस-स्थावर की विवक्षा से जीवों की स्थिति, २८७ ३. संज्ञी आदि की कायस्थिति का प्ररूपण, २७२ ३. सूक्ष्म बादर की विवक्षा से जीवों की स्थिति, ४. संज्ञी आदि के अन्तरकाल का प्ररूपण, २७२ ४. स्त्री-पुरुष-नपुंसक की विवक्षा से जीवों की ५. संज्ञी आदि का अल्पबहुत्व, २७२ स्थिति, २८७-२८९ १०. योनि अध्ययन १. नैरयिक १. शीतादि योनि भेद और चौबीसदंडकों में ५. सामान्यतः नैरयिकों की स्थिति, २८९ प्ररूपण, २७४-२७५ ६. रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति, २९० २६४ २८३ २८३ २८७ (७९)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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