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________________ ज्ञान अध्ययन ७८१ १८४. आय-णिक्खेवो प्र. (३) से किं तं आए? उ. आए-चउविहे पण्णत्ते,तं जहा१. नामाए २. ठवणाए ३. दव्वाए ४. भावाए। नाम ठवणाओ पुव्वभणियाओ। प. से किं तं दव्वाए? उ. दव्वाए-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. आगमओय, २. नो आगमओय। प. से किं तं आगमओ दव्याए? उ. जस्स णं आए त्ति पयं सिक्खितं ठितं जाव अणुवओगो दव्वमिति कटु जाव जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइया ते दव्याया। सेतं आगमओ दव्वाए। प. से किं तं नो आगमओ दव्वाए? उ. नो आगमओ दव्वाए तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. जाणयसरीरदव्वाए, २. भवियसरीरदव्वाए, ३. जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए। प. से किं तं जाणयसरीरदव्वाए? उ. आयपयत्थाहिकारजाणगस्स जं सरीरगं ववगय-चुत चइय-चतदेह । सेसं जहा दब्वज्झयणे। ४. “आय" (प्राप्ति) का निक्षेप प्र. आय क्या है? उ. आय चार प्रकार की कही गई है, यथा १. नाम आय, २. स्थापना-आय, ३. द्रव्य-आय, ४. भाव-आय। नाम-आय और स्थापना-आय का वर्णन पूर्वोक्त नाम और स्थापना आवश्यक के अनुरूप है। प्र. द्रव्य-आय क्या है? उ. द्रव्य-आय दो प्रकार की कही गई है, यथा- ' १. आगम से, .. २. नो आगम से। प्र. आगम से द्रव्य आय क्या है? उ. जिसने “आय" यह पद सीख लिया है, स्थिर कर लिया है यावत् उपयोग रहित होने से द्रव्य है यावत् जितने उपयोग रहित हैं उतने ही आगम से द्रव्य आय है। यह आगम से द्रव्य-आय है। प्र. नो आगमद्रव्य-आय क्या है? उ. नो आगमद्रव्य-आय तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. ज्ञायकशरीरद्रव्य-आय, ____२. भव्यशरीरद्रव्य-आय. ३. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-आय। प्र. ज्ञायकशरीरद्रव्य-आय क्या है ? उ. "आय" पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित त्यक्त शरीर ज्ञायकशरीर-द्रव्य आय है शेष वर्णन द्रव्याध्ययन जैसा ही है। यह ज्ञायकशरीर नो आगमद्रव्य आय है। प्र. भव्यशरीरद्रव्य-आय क्या है?. उ. समय पूर्ण होने पर योनि से निकलकर जो जन्म को प्राप्त हुआ इत्यादि भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के वर्णन के समान भव्यशरीरद्रव्य-आय है। यह भव्यशरीर द्रव्य-आय है। प्र. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त-द्रव्य आय क्या है? उ. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त-द्रव्य आय तीन प्रकार . की कही गई है, यथा१. लौकिक, . २. कुप्रावचनिक, ३. लोकोत्तर। १८५. लौकिक द्रव्य आय (द्विपद चतुष्पद आदि की प्राप्ति) प्र. लौकिक द्रव्य-आय क्या है? उ. लौकिक द्रव्य-आय तीन प्रकार की कही गई है, यथा- १. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। प्र. सचित्त-लौकिक-आय क्या है ? उ. सचित्त-लौकिक-आय तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. द्विपद-आय, २. चतुष्पद-आय, ३. अपद-आय। से तं जाणयसरीरदव्वाए। प. से किं तं भवियसरीरदव्वाए? उ. जे जीवे जोणीयजम्मणणिक्खते-सेसंजहा दव्वज्झयणे। सेतं भवियसरीरदव्याए। प. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए? उ. जाणयसरीरभवियसरीरवइरिते दव्वाए तिविहे पण्णत्ते,तं जहा१. लोइए, २. कुप्पावयणिए, ३. लोगुत्तरिए। -अणु.सु.५५८-५६५ १८५. लोइय दव्याय प. से किं तं लोइए? उ. लोइए-तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सचित्ते, २. अचित्ते, ३. मीसएय। प. से किं तं सचित्ते? उ. सचित्ते-तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. दुपयाणं, २. चउप्पयाणं, ३. अपयाणं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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