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________________ ७८० प. से किं तं दव्वज्झीणे? उ. दव्वज्झीणे-दुविहे पण्णते,तं जहा १. आगमओ य, २. नो आगमओ य। प. से किं तं आगमओ दव्वज्झीणे?. उ. आगमओ दव्वज्झीणे-जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं तं चेव जहा दव्यज्झयणे तहाभाणियव्यं। सेतं आगमओदव्यज्झीणे। प. से किं तं नो आगमओ दव्वज्झीणे? उ. नो आगमओ दव्वज्झीणे-तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. जाणयसरीरदव्वज्झीणे, २. भवियसरीरदव्वज्झीणे, ३. जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्यज्झीणे। प. से किं तं जाणयसरीरदव्यज्झीणे? उ. अज्झीणपयत्थाहिकारजाणयस्स जं सरीरयं ववगय चुत-चइत-चत्तदेहं जहा दव्यज्झयणे तहा भाणियव्वं। से तं जाणयसरीरदव्यज्झीणे। प. से किं तं भवियसरीरदव्वज्झीणे? उ. भवियसरीरदव्वज्झीणे-जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खते एवं जहा दव्यज्झयणे तहा भाणियव्यं । द्रव्यानुयोग-(१) प्र. द्रव्य-अक्षीण क्या है? उ. द्रव्य-अक्षीण दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा.. १. आगम से, २. नो आगम से। प्र. आगमद्रव्य-अक्षीण क्या है? उ. आगमद्रव्य-अक्षीण जिसने “अक्षीण" इस पद को सीख लिया है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है इत्यादि जैसा द्रव्य-अध्ययन के प्रसंग में कहा है, वैसा ही यहाँ कहना चाहिए। यह आगम से द्रव्य-अक्षीण है। प्र. नोआगम से द्रव्य-अक्षीण क्या है अर्थात् कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. नोआगमद्रव्य-अक्षीण तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा- १. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण, २. भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण, ३. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण। प्र. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण क्या है? उ. अक्षीण पद के अधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित, त्यक्तदेह आदि का वर्णन जैसा द्रव्य-अध्ययन में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। यह ज्ञायकशरीर-द्रव्य-अक्षीण है। प्र. भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण क्या है? .. उ. समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि का वर्णन जैसा भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन में कहा उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। यह भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण है। प्र. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण क्या है? उ. सर्वाकाश-श्रेणि। यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण है। यह नो आगम से द्रव्य-अक्षीण है। यह द्रव्य-अक्षीण है। प्र. भाव-अक्षीण क्या है? उ. भाव-अक्षीण दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. आगम से, २. नो आगम से। प्र. आगमभाव-अक्षीण क्या है? उ. जो जानता हो और उपयोग से युक्त हो वही आगम की अपेक्षा भाव-अक्षीण है। यह आगम से भाव-अक्षीण है। प्र. नो आगमभाव-अक्षीण क्या है? उ. नो आगमभाव-अक्षीण जैसे दीपक दूसरे सैकड़ों दीपकों को प्रज्वलित करके भी स्वयं प्रदीप्त रहता है, उसी प्रकार आचार्य भी दीपक (दीपकों) के समान स्वयं देदीप्यमान होते हैं और दूसरों को भी देदीप्यमान करते हैं। यह नो आगमभाव-अक्षीण है। यह भाव-अक्षीण है। यह अक्षीण है। सेतं भवियसरीरदव्वझीणे। प. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वझीणे? उ. सव्वागाससेढी। सेतं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्यज्झीणे। सेतं नो आगमओ दव्यज्झीणे। से तं दव्यज्झीणे। प. से किं तं भावज्झीणे? ..उ. भावज्झीणे-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. आगमओ य, २. नो आगमओ य। प. से किं तं आगमओ भावज्झीणे? उ. आगमओ भावज्झीणे-जाणए उवउत्ते। सेतं आगमओ भावज्झीणे। प. से किं तं नो आगमओ भावज्झीणे? उ. नो आगमओ भावज्झीणे जहा दीवा दीवसयं पइप्पए, दिप्पए य सो दीवो। दीवसमा आयरिया दिप्पंति,परं च दीवेंति ॥२६॥ सेतं नो आगमओ भावज्झीणे।सेतं भावज्झीणे। सेतं अज्झीणे। -अणु. सु. ५४७-५५७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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