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________________ द्रव्यानुयोग-(१) ( ७७० प. एएणं उम्माणपमाणेणं किं पयोयणं? उ. एएणं उम्माणपमाणेणं-पत्त-अगलु-तगर-चोयय-कुंकुम खंड-गुल-मच्छंडियादीणं दव्वाणं उम्माणपमाणणिव्वत्तिलक्खणं भवइ। से तं उम्माणपमाणे। -अणु.सु.३२२-३२३ गत्ताइमाणप्पमाणेप. (३) से किं तं ओमाणे? उ. ओमाणे-जण्णं ओमिणिज्जइ,तं जहा हत्थेण वा, दंडेण वा, धणुएण वा, जुगेण वा,णालियाए वा, अक्खेण वा, मुसलेण वा। दंडं धणू जुगंणालिया य अक्ख मुसलं च चउहत्थं। दसनालियं च रज्जु वियाण ओमाणसण्णाए ॥१३॥ वत्थुम्मि हत्थमिज्जं खित्ते दंडंधणुं च पंथम्मि। खायं च नालियाए वियाण ओमाणसण्णाए ॥१४॥ प. एएणं ओमाणपमाणेणं किं पओयणं? उ. एएणं ओमाणपमाणेणं-खाय-चिय-करगचित-कड-पड भित्ति-परिक्खेव-संसियाणं दव्याणं ओमाणप्पमाण व्वित्ति त्तिलक्खणं भवइ। प्र. उन्मानप्रमाण का क्या प्रयोजन है? उ. इस उन्मानप्रमाण से १. पत्र, २. अगर, ३. तगर, ४. चोयक, ५. कुंकुम, ६. खाण्ड, ७. गुड़,८. मिश्री आदि द्रव्यों के परिमाण का परिज्ञान होता है। यह उन्मानप्रमाण है। खड्डे आदि के मापने का प्रमाणप्र. (३) अवमान प्रमाण क्या है? उ. जिसके द्वारा अवमान किया जाए अथवा जिसका अवमान किया जाए, उसे अवमानप्रमाण कहते हैं, यथाहाथ से, दण्ड से, धनुष से, युग से, नालिका से, अक्ष से अथवा मूसल से नापा जाता है। दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मूसल चार हाथ प्रमाण होते हैं। दस नालिका की एक रज्जू होती है, ये सभी अवमान कहलाते हैं। वास्तु-गृहभूमि को हाथ द्वारा, मार्ग-रास्ते को धनुष द्वारा और खाई-कुआ आदि को नालिका द्वारा नापा जाता है। इन सबको अवमान इस नाम से जानना चाहिए। प्र. इस अवमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? उ. इस अवमानप्रमाण से खाई (कुआ), चित-ईंट, पत्थर आदि से निर्मित भवन, पीठ (चबूतरा) आदि, क्रकचित (आरो से खण्डित काष्ठ) आदि, कट, पट, वस्त्र, भींत, परिक्षेप अथवा नगर की परिखा आदि में संश्रित द्रव्यों की लम्बाईचौड़ाई, गहराई और ऊँचाई के प्रमाण का परिज्ञान होता है। यह अवमानप्रमाण का स्वरूप है। गणना करने के प्रमाणप्र. (४) गणिमप्रमाण क्या है? उ. जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए उसे गणिमप्रमाण कहते हैं, यथाएक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, करोड़ इत्यादि। प्र. इस गणिमप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? .. उ. इस गणिमप्रमाण से भृत्य-नौकर, कर्मचारी आदि की वृत्ति, भोजन, वेतन के आय-व्यय से सम्बन्धित द्रव्यों के प्रमाण की निष्पत्ति होती है। यह गणिमप्रमाण का स्वरूप है। सोना आदि मापने के प्रमाणप्र. (५) प्रतिमान प्रमाण क्या है? उ. जिसका और जिसके द्वारा प्रतिमान किया जाता है, उसे प्रतिमान कहते हैं, यथा१. गुंजा-रत्ती, २. काकणी, ३. निष्पाव, ४. कर्ममाषक, ५. मंडलक, ६. सुवर्ण। पांच गुंजाओं (रत्तियों) का एक कर्ममाष होता है। -अणु.सु.३२४-३२५ सेतं ओमाणे। गणणाप्पमाणेप. (४) से किं तं गणिमे? उ. गणिमे-जण्णं गणिज्जइ,तं जहा एक्को दसगं सतं सहस्सं दससहस्साई सयसहस्सं दससयसहस्साइंकोडी। प. एएणं गणिमप्पमाणेणं किं पयोअणं? उ. एएणं गणिमपमाणेणं-भितग-भित्ति-भत्त-वेयण-आय व्यय-निव्विसंसियाणं दव्वाणं गणिमप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं गणिमे। -अणु.सु.३२६-३२७ सुवण्णाइमाणप्पमाणेप. (५) से किं तं पडिमाणे? उ. पडिमाणे-जण्णं पडिमिणिज्जइ,तं जहा १. गुंजा २. कागणी ३. निप्फावो ४. कम्ममासओ ५.मंडलओ ६.सुवण्णो। पंच गुंजाओ कम्ममासओ,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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