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________________ ज्ञान अध्ययन प. एएणं धन्नमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? उ. एएणं धन्नमाणप्पमाणेणं-मुत्तोली-मुरव-इड्डर-आलिंद अपवारिसंसियाणं धण्णाणं धण्णमाणप्पमाणनिव्वित्ति लक्खणं भवइ। से तं धनमाणप्पमाणे। -अणु.सु.३१८-३११ रसमाणप्पमाणेप. (ख) से किं तं रसमाणप्पमाणे? उ. रसमाणप्पमाणे-धन्नमाणप्पमाणाओ चउभागविवढिए अभिंतरसिहाजुए रसमाणप्पमाणे विहिज्जइ,तं जहा४.चउसट्ठिया ८. बत्तीसिया, १६.सोलसिया, ३२.अट्ठभाइया, ६४. चउभाइया, १२८.अद्धमाणी, २५६. माणी। दो चउसट्ठियाओ बत्तीसिया, दो बत्तीसियाओ सोलसिया, दो सोलसियाओ अट्ठभाइया, दो अट्ठभाइयाओ चउभाइया, दो चउभाइयाओ अद्धमाणी, दो अद्धमाणीओ माणी। प. एएणं रसमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? उ. एएणं रसमाणप्पमाणेणं वारग-घडग-करग-किक्किरि दइय-करोडि-कुंडिय-संसियाणं रसाणं रसमाणप्पमाणनिव्यित्तिलक्खणं भवइ। - ७६९ ) प्र. इस धान्यमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? उ. इस धान्यमानप्रमाण के द्वारा मुक्तोली (कोठी), मुरव (बोरी), इड्डर (छोटी बोरी), अलिंद (धान भरने का बर्तन) और अपचारि (जमीन के अन्दर की कोठी) में रखे हुए धान्य के प्रमाण का परिज्ञान होता है। यह धान्यमानप्रमाण है। प्रवाही पदार्थ मापने के प्रमाणप्र. (ख) रसमानप्रमाण क्या है? उ. रसमानप्रमाण धान्यमानप्रमाण से चतुर्भाग अधिक और आभ्यन्तर शिखायुक्त होता है, यथा४. चार पल की एक चतुःषष्ठिका होती है। ८. आठ पलप्रमाण द्वात्रिंशिका, १६. सोलह पलप्रमाण षोडशिका, ३२. बत्तीस पलप्रमाण अष्टभागिका, . ६४. चौंसठ पलप्रमाण चतुर्भागिका, १२८. एक सौ अट्ठाईस पलप्रमाण "अर्धमानी", २५६. दो सौ छप्पन पलप्रमाण "मानी" कही जाती है। दो चतुःषष्ठिका की एक द्वात्रिंशिका, दो द्वात्रिंशिका की एक षोडशिका, दो षोडशिकाओं की एक अष्टभागिका, दो अष्टभागिकाओं की एक चतुर्भागिका, दो चतुर्भागिकाओं की एक अर्धमानी दो अर्धमानियों की एक मानी होती है। प्र. इस रसमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है? उ. इस रसमानप्रमाण से बारक (छोटा घड़ा), घट-कलश, करक (घड़ा), किक्किरि (भांडा), दृति (कुप्पा), करोडिका (चौड़ा बर्तन), कुंडिका (कुंडी) आदि में भरे हुए रसों के परिमाण का ज्ञान होता है। यह रसमानप्रमोण है। यह मानप्रमाण है। शक्कर आदि मापने के प्रमाणप्र. (२) उन्मानप्रमाण क्या है ? उ. जिसका उन्मान किया जाए अथवा जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है, उसे उन्मानप्रमाण कहते हैं, यथा१.अर्धकर्ष, २. कर्ष,३. अर्धपल, ४. पल, ५. अर्धतुला, ६.तुला,७. अर्धभार, ८.भार। (इन प्रमाणों की निष्पत्ति इस प्रकार होती है-) दो अर्धकर्षों का एक कर्ष, दो कर्षों का एक अर्धपल, दो अर्धपलों का एक पल, एक सौ पांच पल अथवा पांच सौ पलों का एक तुला, दस तुला का एक अर्धभार और . बीस तुला का एक भार होता है। से तं रसमाणप्पमाणे। से तं माणे। -अणु.सु.३२०-३२१ खंडाइणं माणप्पाणेप. (२) से किं तं उम्माणे? उ. उम्माणे-जण्णं उम्मिणिज्जइ,तं जहा १. अद्धकरिसो, २. करिसो, ३. अद्धपल, ४. पल, ५. अद्धतुला, ६. तुला,७. अद्धभारो, ८.भारो। दो अद्धकरिसा करिसो, दो करिसा अद्धपलं, दो अद्धपलाई पलं, पंचुत्तरपलसइया पंचपलसइया तुला, दस तुलाओ अद्धभारो, वीसं तुलाओ भारो।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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