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________________ ७६० खमतीति खमणो, तपतीति तपणो, जलतीति जलणो, पवतीति पवणो। से तंगोण्णे। प. (२) से किं तं नो गोण्णे? उ. नो गोण्णे अकुंतो सकुंतो, अमुग्गो समुग्गो, अमुद्दो समुद्दो, अलालंपलालं। अकुलिया सकुलिया, नो पलं असतीति पलासो, अमातृवाइए मातिवाहए, अबीयवावए बीयवावए, नो इंदं गोवयतीति इंदगोवए। द्रव्यानुयोग-(१) जो क्षमागुण से युक्त हो उसको "क्षमण" कहना, जो तपे उसे “तपन" कहना, जो प्रज्वलित हो उसे “ज्वलन" कहना, जो पवे अर्थात् बहे उसे “पवन" कहना। यह गौणनाम है। प्र. (२) नो गौणनाम क्या है? उ. नो गौणनाम इस प्रकार है अकुन्त अर्थात् भाले से रहित पक्षी को भी "सकुन्त" कहना, अमुद्ग अर्थात् मूंग धान्य से रहित डिब्बीया को भी "समुद्ग" कहना, अमुद्रा अर्थात् अंगूठी से रहित सागर को भी "समुद्र" कहना, अलाल अर्थात् लार से रहित घास को भी “पलाल" कहना। अकुलिका अर्थात् भित्ति से रहित होने पर भी पक्षिणी को "सकुलिका" कहना, पल अर्थात् मांस का आहार न करने पर भी वृक्ष-विशेष को "पलाश" कहना, माता को कन्धों पर वहन न करने पर भी विकलेन्द्रिय जीवविशेष को “मातृवाहक" नाम से कहना, बीज को नहीं बोने वाले जीवविशेष को "बीजवापक" कहना, इन्द्र की गाय का पालन न करने पर भी कीटविशेष को "इन्द्रगोप" कहना। ये नो गौणनाम का स्वरूप है। प्र. (३) आदानपदनिष्पन्ननाम क्या है? उ. आदानपदनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार है-आवंती, चातुरंगिज्ज, अहातथिज्जं, अद्दइज्ज, जण्णइज्ज, पुरिसइज्ज, एलइज्ज, बीरियं, धम्मो मग्गो समोसरणं - जमईयं आदि। यह आदानपदनिष्पन्ननाम हैं। प्र. (४) प्रतिपक्षपद से निष्पन्ननाम क्या है? उ. प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम इस प्रकार है-नवीन ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संबाह और सन्निवेश आदि में निवास करने पर अथवा बसाए जाने पर अशिवा (शियारनी) को “शिवा” शब्द से उच्चारित करना। अग्नि को शीतल और विष को मधुर, कलाल के घर में "आम्ल" के स्थान पर “स्वादु" शब्द का व्यवहार होना। इसी प्रकार रक्त वर्ण का हो उसे अलक्तक, लाबु को अलाबु, सुंभक को कुसुंभक और विपरीतभाषक को "अभाषक" कहना। ये प्रतिपक्षपदनिष्पन्ननाम है। प्र. (५) प्रधानपदनिष्पन्ननाम क्या है? उ. प्रधानपदनिष्पन्ननाम इस प्रकार है, यथा-अशोकवन, सप्तपर्णवन, चंपकवन, आम्रवन, नागवन, पुन्नागवन, इक्षुवन, द्राक्षावन, सालवन। से तं नो गोण्णे। प. (३) से किं तं आयाणपदेणं? उ. आयाणपदेणं आवंती, चातुरंगिज्ज, अहातत्थिज्ज अदइज्जं, असंखयं, जण्णइज्ज, पुरिसइज्ज, एलइज्जं, वीरियं,धम्मो,मग्गो,समोसरणं जमईयं। सेतं आयाणपदेणं। प. (४) से किं तं पडिपक्खपदेणं? उ. पडिपक्खपदेणं णवेसु गामा-5ऽगर-णगर-खेड-कब्बड मडंब - दोणमुह - पट्टणाऽसम - संवाह - सन्निवेसेसु निविस्समाणेसु असिवा सिवा, अग्गी सीयलो, विसं महुरं, कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं, जे लत्तए से अलत्तए,जे लाउए से अलाउए, जे सुभए से कुसुभए, आलवंते विवरीयभासए। से तं पडिपक्खपदेणं। प. (५) से किं तं पाहण्णयाए? उ. पाहण्णयाए असोगवणे, सत्तवण्णवणे, चंपकवणे, चूयवणे, नागवणे, पुन्नागवणे, उच्छुवणे, दक्खवणे, सालवणे।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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