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________________ ७४८ द्रव्यानुयोग-(१) खीणसुभनामे खीणासुभणामे अणामे निण्णामे खीणनामे सुभाऽसुभणामकम्मविप्पमुक्के, खीणउच्चागोए खीणणीयागोए अगोए निग्गोए खीणगोए सुभाऽसुभगोत्तकम्मविप्पमुक्के, खीणदाणंतराए, खीणलाभंतराए, खीणभोगतराए खीणउवभोगंतराए खीणविरियंतराए अणंतराए णिरंतराए खीणंतराए अंतराइयकम्मविप्पमुक्के, सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिव्वुए अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे। से तं खयनिष्फण्णे।से तंखइए। -अणु. सु. २४२-२४४ ४. खओवसमिए भावेप. से किं तं खओवसमिए? उ. खओवसमिए दुविहे पन्नते,तं जहा १. खओवसमे य, २. खओवसमनिष्फन्ने य। प. से किं तं खओवसमे? उ. खओवसमे णं चउण्डं घाइकम्माणं खओवसमेणं, तं जहा१. नाणावरणिज्जस्स, २. दंसणावरणिज्जस्स, ४. अंतराइयस्स। से तंखओवसमे। प. से किं तं खओवसमनिप्फन्ने? उ. खओवसमनिप्फन्ने अणेगविहे पण्णत्ते,तं जहा क्षीण-शुभनाम, क्षीणअशुभनाम, अनाम, निर्नाम, क्षीणनाम, शुभाशुभनामकर्मविप्रमुक्त, क्षीण-उच्च गोत्र, क्षीण नीच गोत्र, अगोत्र, निर्गोत्र, क्षीण गोत्र, शुभाशुभ गोत्र कर्म विप्रमुक्त । क्षीण दानान्तराय, क्षीण लाभान्तराय, क्षीण-भोगान्तराय, क्षीण-उपभोगान्तराय, क्षीणवीर्यान्तराय, अनन्तराय, निरंतराय, क्षीणान्तराय, अंतरायकर्मविप्रमुक्त, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त, अंतकृत सर्वदुःखप्रहीण। यह क्षयनिष्पन्न क्षायिकभाव है, यह क्षायिकभाव का कथन हुआ। ४. क्षायोपशमिक भावप्र. क्षायोपशमिकभाव क्या है? उ. क्षायोपशमिकभाव दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. क्षयोपशम, २. क्षयोपशमनिष्पन्न। प्र. क्षयोपशम क्या है? उ. चार घातिकर्मों के क्षयोपशम को क्षयोपशमभाव कहते हैं, यथा१. ज्ञानावरणीय, २. दर्शनावरणीय, ३. मोहनीय, ४. अन्तराय, यह क्षायोपशमिक भाव है। प्र. क्षयोपशमनिष्पन्न (क्षायोपशमिकभाव) क्या है? उ. क्षयोपशमनिष्पन्न क्षायोपशमिकभाव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथाक्षायोपशमिक आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि यावत् क्षायोपशमिक मनःपर्यवज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिक मति अज्ञान लब्धि,क्षायोपशमिक श्रुतअज्ञानलब्धि,क्षायोपशमिक विभंगज्ञान लब्धि, क्षायोपशमिक चक्षुदर्शनलब्धि इसी प्रकार अचक्षुदर्शनलब्धि, अवधिदर्शनलब्धि, सम्यग्दर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि, सम्यग्मिथ्यादर्शनलब्धि, क्षायोपशमिक सामायिक-चारित्रलब्धि, छेदोपस्थापनालब्धि, परिहारवि शुद्धिलब्धि, सुक्ष्मसंपरायिकलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, क्षायोपशमिक दान लब्धि यावत् क्षायोपशमिक वीर्यलब्धि, पंडितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि, बालपंडितवीर्यलब्धि, क्षायोपशमिक श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् क्षायोपशमिक स्पर्शनेन्द्रियलब्धि, खओवसमिया आभिनिबोहियणाणलद्धी जाव खओवसमिया मणपज्जवणाणलद्धी, खओवसमिया मइअण्णाणलद्धी, खओवसमिया सुयअण्णाणलद्धी, खओवसमिया विभंगणाणलद्धी, खओवसमिया चक्खुदंसणलद्धी एवं अचक्खुदंसणलद्धी, ओहिदसणलद्धी सम्मदंसणलद्धी मिच्छादसणलद्धी सम्मामिच्छादसणलद्धी, खओवसमिया सामाइय चरित्तलद्धी, छेओवट्ठावणलद्धी, परिहारविसुद्धियलद्धी, सुहुमसंपराइयलद्धी, चरित्ताचरित्तलद्धी, खओवसमिया दाणलद्धी जाव खओवसमिया वीरियलद्धी, पंडियवीरियलद्धी, बालवीरियलद्धी, बालपंडियवीरियलद्धी, खओवसमिया सोइंदियलद्धी जाव खओवसमिया फासिंदियलद्धी, खओवसमिए आयारधरे एवं सूयगडधरे, ठाणधरे, समवायधरे, विवाहपण्णत्तिधरे, नायाधम्मकहाधरे, उवासगदसाधरे, अंतगडदसाधरे, अणुत्तरोववाइयदसाधरे, पण्हावागरणधरे, खओवसमिए विवागसुयधरे, खओवसमिए दिट्ठिवायधरे, खओवसमिए णवपुव्वी जाव चोद्दसपुव्वी खओवसमिए गणी,खओवसमिए वायए। सेतं खओवसमनिष्फण्णे। से तं खओवसमिए। -अणु.सु.२४५-२४७ ५. पारिणामिए भावेप. से किं तं पारिणामिए? क्षायोपशमिक आचारांगधारी, इसी प्रकार सूत्रकृतांगधारी, स्थानांगधारी, समवायांगधारी, व्याख्याप्रज्ञप्तिधारी, ज्ञाताधर्मकथांगधारी, उपासकदशांगधारी, अन्तकृद्दशांगधारी, अनुत्तरोपपातिकदशांगधारी, प्रश्नव्याकरणधारी, क्षायोपशमिक विपाकश्रुतधारी, क्षायोपशमिक दृष्टिवादधारी, क्षायोपशमिक नवपूर्वधारी यावत् चौदहपूर्वधारी, क्षायोपशमिक गणी, क्षायोपशमिक वाचक, य क्षयोपशमनिष्पन्न भाव है। यह क्षायोपशमिक भाव है। ५. पारिणामिक भावप्र. पारिणामिकभाव क्या है?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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