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________________ ७४६ १६२. छनाम विवक्खया उदयाइ छब्भावाणं वित्थरओ परूवणं- नाम! प. से किं तंछनामे? उ. छनामे छविहे पण्णत्ते,तं जहा १.उदइए, २.उवसमिए, ३. खइए, ४.खओवसमिए, ५.पारिणामिए,६.सन्निवाइए। -अणु. सु. २३३ १. उदइए भावेप. से किं तं उदइए? उ. उदइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १.उदए य,२.उदयनिष्फण्णे य। प. से किं तं उदए? उ. उदए अट्ठण्हं कम्मपगडीणं उदएणं, से तं उदए। प. से किं तं उदयनिप्फण्णे? उ. उदयनिष्फण्णे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.जीवोदयनिष्फन्ने य,२.अजीवोदयनिष्फन्ने य। प. से किं तंजीवोदयनिष्फन्ने? उ. जीवोदयनिष्फन्ने अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा णेरइए, तिरिक्खजोणिए, मणुस्से, देवे, पुढविकाइए जाव वणस्सइकाइए, तसकाइए, कोहकसायी जाव लोहकसायी, इत्थीवेदए, पुरिसवेदए,णपुंसगवेदए, कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे, मिच्छादिट्ठी, अविरए, अण्णाणी, आहारए, छउमत्थे, सजोगी,संसारत्थे,असिद्धे। सेतं जीवोदयनिष्फन्ने। प. से किं तं अजीवोदयनिप्फन्ने? . उ. अजीवोदयनिष्फन्ने चोद्देसविहे पण्णत्ते,तं जहा १-२ ओरालियं वा सरीरं, ओरालियसरीर पयोगपरिणामियं वा दव्वं, ३-४ वेउव्वियं वा सरीरं, वेउव्वियसरीरपयोगपरिणामियं वा दव्वं, एवं ५-६ आहारगं सरीरं ७-८ तेयगं सरीरं ९-१० कम्मगं सरीरंच भाणियव्वं। पयोगपरिणामिए वण्णे, गंधे, रसे, फासे। द्रव्यानुयोग-(१) ) १६२. षड्नाम की विवक्षा से उदयादि छहभावों का विस्तार से प्ररूपणप्र. छहनाम क्या है? उ. छहनाम छह प्रकार के कहे गये हैं, यथा १.औदयिक, २. औपशमिक, ३. क्षायिक, ४. क्षायोपशमिक, ५. पारिणामिक, ६. सान्निपातिक। १. औदयिक भावप्र. औदयिकभाव क्या है? उ. औदयिकभाव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १.औदयिक, २. उदयनिष्पन्न। प्र. औदयिक क्या है? उ. ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। प्र. उदयनिष्पन्न क्या है? उ. उदयनिष्पन्न दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १.जीवोदयनिष्पन्न, २. अजीवोदयनिष्पन्न। प्र. जीवोदयनिष्यन्न (औदयिकभाव) क्या है? उ. जीवोदयनिष्पन्न अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, देव, पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी, मिथ्यादृष्टि, अविरत, अज्ञानी, आहारक, छद्मस्थ, सयोगी, संसारस्थ, असिद्ध। यह जीवोदयनिष्पन्न है। प्र. अजीवोदयनिष्पन्न (औदयिकभाव) क्या है? उ. अजीवोदयनिष्पन्न चौदह प्रकार के कहे गये है, यथा १-२ औदारिकशरीर, औदारिकशरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य। ३-४ वैक्रियशरीर, वैयिक्रशरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य, इसी प्रकार ५-६ आहारकशरीर ७-८ तैजसूशरीर और ९-१० कार्मणशरीर के भी दो दो विकल्प जानने चाहिए। पांचो शरीरों के व्यापार से परिणामित वर्ण, गंध, रस, स्पर्श द्रव्य। यह अजीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव है, यह उदयनिष्पन्न है, यह औदयिकभावों की प्ररूपणा हुई। २. औपशमिक भावप्र. औपशमिकभाव क्या है? उ. औपशमिकभाव दो प्रकार के कहे गये है, यथा १.उपशम २. उपशमनिष्पन्न। सेतं अजीवोदयनिष्फण्णे,सेतं उदयनिष्फण्णे,सेतं उदए। -अणु.सु.२३४-२३८ २. उवसमिए भावेप. से किं तं उवसमिए? उ. उवसमिए दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.उवसमे य,२.उवसमनिष्फण्णे य।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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