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________________ ७३० द्रव्यानुयोग-(१)) यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्योपक्रम है। यह नो आगम-द्रव्योपक्रम है। यह द्रव्योपक्रम है। प्र. ४.क्षेत्रोपक्रम क्या है? उ. हल, कुलिक आदि के द्वारा जो क्षेत्र को उपक्रान्त किया जाता है। यह क्षेत्रोपक्रम है। प्र. ५. कालोपक्रम क्या है? उ. नालिका आदि के द्वारा काल का यथार्थ ज्ञान करना। से तंजाणयसरीर भवियसरीर वइरित्तेदव्योवक्कमे। सेतं नो आगमओदव्योवक्कमे।से तंदव्योवक्कमे। प. ४.से किं तं खेत्तोवक्कमे ? उ. खेत्तोवक्कमे जणं हल-कुलियादीहिं खेत्ताई उवक्कामिज्जति। सेतं खेतोवक्कमे। प. ५.से किं तं कालोवक्कमे? उ. कालोवक्कमे जं णं नालियादीहिं कालस्सोवक्कमणं कीरइ। सेतं कालोवक्कमे। प. ६.से किंतं भावोवक्कमे? उ. भावोवक्कमे-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.आगमओ य,२.नो आगमओय। प. से किंतं आगमओ भावोवक्कमे? उ. आगमओ भावोवक्कमे जाणए उवउत्ते। सेतं आगमओ भावोवक्कमे। प. से किं तं नो आगमओ भावोवक्कमे? उ. नो आगमो भावोवक्कमे-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.पसत्ये य,२.अपसत्ये य। प. से किं तं अपसत्थे भावोवक्कमे? उ. अपसत्ये भावोवक्कमे डोडिणि-गणियाऽमच्चाईणं। यह कालोपक्रम है। प्र. ६.भावोपक्रम क्या है? उ. भावोपक्रम दो प्रकार का कहा गया है, यथा १.आगमभावोपक्रम, २. नो आगमभावोपक्रम। प्र. आगमभावोपक्रम क्या है? उ. उपक्रम के अर्थ का ज्ञाता एवं उसके उपयोग से युक्त। यह आगमभावोपक्रम है। प्र. नो आगमभावोपक्रम क्या है? उ. नोआगमभावोपक्रम दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. प्रशस्त, २. अप्रशस्त । प्र. अप्रशस्त भावोपक्रम क्या है? उ. डोडणी, ब्राह्मणी, गणिका और अमात्यादि के द्वारा अन्य के भावों को जानना। यह अप्रशस्त (नो आगम) भावोपक्रम है। प्र. प्रशस्त भावोपक्रम क्या है? उ. गुरु आदि के अभिप्राय को यथावत् जानना। यह प्रशस्त (नो आगम) भावोपक्रम है। यह नो आगमभावोपक्रम है। यह भावोपक्रम है। १४५. उपक्रम के आनुपूर्वी आदि छःभेद अथवा उपक्रम छह प्रकार का कहा गया है, यथा१.आनुपूर्वी,२. नाम, ३. प्रमाण, ४. वक्तव्यता, ५. अर्थाधिकार, ६. समवतार। सेतं अपसत्ये भावोवक्कमे। प. से किं तं पसत्थे भावोवक्कमे? उ. पसत्ये भावोववकमे गुरुमादीण। से तं पसत्ये भावोवक्कमे। सेतं नो आगमओ भावोवक्कमे। से तंभावोबक्कमे। -अणु.सु.७६-९१ १४५. उवक्कमस्स आणुपुव्वी आईछ भेया अहवा उवक्कमे छविहे पण्णत्ते,तं जहा१.आणुपुव्यी,२. नाम,३. पमाणं, ४. वत्तव्यया, ५.अत्याहिगारे, ६.समोयारे। -अणु.सु. ९२ १४६. आणुपुब्बी उबक्कमस्स भेयाणं सलबो प. से कि त आणुपुयी? उ. आणुपुव्यी-दसविहा पण्णता,तं जहा १. नामाणुपुयी, २. ठयणाणुपुव्यी, ३. दव्याणुपुयी, ४. खेत्ताणुपुव्वी, ५. कालाणुपुव्वी, ६. उक्कित्तणाणुपुव्वी, ७. गणणाणुपुब्बी, ८. संठाणाणुपुव्वी, ९. सामायारियाणुपुव्वी,१०. भावाणुपुव्वी। १४६. आनुपूर्वी उपक्रम के भेदों का स्वरूप प्र. आनुपूर्वी क्या है? उ. आनुपूर्वी दस प्रकार की कही गई है, यथा १. नामानुपूर्वी, २. स्थापनानुपूर्वी, ३. द्रव्यानुपूर्वी, ४. क्षेत्रानुपूर्वी, ५. कालानुपूर्वी, ५. उत्कीर्तनानुपूर्वी, ७. गणनानुपूर्वी, ८. संस्थानानुपूर्वी, ९. सामाचार्यानुपूर्वी, १०. भावानुपूर्वी।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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