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________________ ज्ञान अध्ययन ७२७ १४०. वज्ज-नट्ट गीय-आभिणयाणं चउविहत्त परूवणं चउव्विहे वज्जे पण्णत्ते,तं जहा१. तए, २. वियए, ३. घणे, ४. झुसिरे। चउव्विहे नट्टे पण्णत्ते, तं जहा१. अंचिए, २. रिभिए, ३. आरभटे, ४. भसोले। चउबिहे गेए पण्णत्ते,तं जहा१. उक्खित्तए, २. पत्तए, ३. मंदए, ४. रोविंदए। चउव्विहे अभिणए पण्णत्ते,तं जहा१. दिट्ठइए, २. पाडिसुए, ३. सामण्णओविणिवाइयं ४. लोगमज्झावसिए। -ठाण. अ.४,उ.४,सु.३७४ १४१. मल्लालंकाराणं चउव्विहत्त परूवणं चउव्विहे मल्ले पण्णत्ते,तं जहा१. गंथिमे, २. वेढिमे, ३. पूरिमे, ४. संघाइमे। चउव्विहे अलंकारे पण्णत्ते,तं जहा१. केसालंकारे, २. वत्थालंकारे, ३. मल्लालंकारे, ४. आभरणालंकारे। __-ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३७४ -: णाणज्झयणस्स अणुओग-पकरणं : १४०. वाघ-नृत्य-गीत-अभिनय के चतुर्विधत्व का प्ररूपण वाध चार प्रकार के कहे गए है, यथा१. तत-वीणा आदि, २. वितत-ढोल आदि, ३. घन-कास्य ताल आदि, ४. झुषिर-बांसुरी आदि। नाट्य चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अंचित, (धीरे-धीरे नाचना), २. रिभि, (गीत की संज्ञा से नाचना), ३. आरभट, (गाते हुए नाचना), ४. भषोल, (चेष्टाएं प्रदर्शित करते हुए नाचना)। गेय (गीत) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. उत्क्षिप्तक, (आरंभ में धीमे स्वर से गाना), २. पत्रक, (मध्य में ऊँचे स्वर में गाना) ३. मंद्रक, (मन्द स्वर से गीत को उतारना) ४. रोविन्दक (धीमे स्वर में पूर्ण कर गाना) अभिनय चार प्रकार के कहे गए है, यथा१. दार्टान्तिक, २. प्रातिश्रुत, ३. सामान्यतोविनिपातिक, ४. लोकमध्यावसित। १४१. माला और अलंकारों के चतुर्विधत्व का प्ररूपण मालायें चार प्रकार की कही गई है, यथा१. ग्रन्थिम-गुंथी हुई, २. वेष्टिम-फूलों को लपेटी हुई, ३. पूरिम-पूरी हुई, ४. संघातिम-एक से दूसरे पुष्प को जोड़कर बनाई हुई। अलंकार चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. केशालंकार, २. वस्त्रालंकार, ३. माल्यालंकार, ४. आभरणालंकार। -: ज्ञान अध्ययन का अनुयोग प्रकरण : १४२. आवस्सगाणुओगपइण्णा तत्थ चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिज्जाई, णो उद्दिस्संति, णो समुद्दिस्संति, णो अणुण्णविज्जति, सूत्र १४२. आवश्यक के अनुयोग की प्रतिज्ञा पांच ज्ञानों में से चार ज्ञान (१. मतिज्ञान, २. अवधिज्ञान, ३. मनःपर्यवज्ञान, ४. केवलज्ञान व्यवहार योग्य न होने से) स्थाप्य हैं एवं स्थापनीय हैं। (क्योंकि इन चार ज्ञानों का उद्देश) मूल पाठ का वांचन नहीं होता है। समुद्देश (स्थिरिकरण) नहीं किया जाता है। अनुज्ञा (अध्यापन की आज्ञा) नहीं दी जाती है (और जिसके उद्देश, समुद्देश अनुज्ञा नहीं होती है उसका अनुयोग भी नहीं होता है।) किन्तु श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होते हैं। २. राय. सु. १०९ सुयणाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ। १. राय. सु. १०७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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