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________________ ७२६ द्रव्यानुयोग-(१) १. छउमत्थे णं मणुस्से एगचक्खू २. देवे बिचक्खू, १. छद्मस्थ मनुष्य एक चक्षु होते हैं। २.देव द्विचक्षु होते हैं। ३. तहारूवे समणे वा, माहणे वा उप्पण्णणाणदसणधरे ३. अतिशायी ज्ञान दर्शन को धारण करने वाला तथारूप श्रमण तिचक्खूत्ति वत्तव्वं सिया। -ठाणं. अ.३, सु.२१२ . माहन त्रिचक्षु होता है। १३८. णाय भेयप्पभेय परूवणं १३८. ज्ञात (उदाहरण) के भेद-प्रभेदों का प्ररूपणचउविहे णाए पण्णत्ते,तं जहा ज्ञात (उदाहरण) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. आहरणे, १. आहरण-सामान्य उदाहरण २. आहरणतडेसे, २. आहरण तद्देश-एकदेशीय उदाहरण, ३. आहरणतद्दोसे, ३. आहरण तद्दोष-साध्यविकल आदि उदाहरण, ४. उवन्नासोवणए। ४. उपन्यासोपनय-प्रतिवादी द्वारा किया जाने वाला विरुद्धार्थक उपनय। (१) आहरणे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा (१) आहरण चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अवाए, १. अपाय-हेयधर्म का ज्ञापक दृष्टान्त, २. उवाए, २. उपाय-ग्राह्य वस्तु के उपाय बताने वाला दृष्टान्त, ३. ठवणाकम्मे, ३. स्थापनाकर्म-स्वमत की स्थापना के लिए प्रयुक्त दृष्टान्त, ४. पडुप्पन्नविणासी। ४. प्रत्युत्पन्नविनाशी-तत्काल उत्पन्न दूषण का निराकरण करने के लिए प्रयुक्त दृष्टान्त। (२) आहरणतद्देसे चउविहे पण्णत्ते,तं जहा (२) आहरण तद्देश चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अणुसिट्ठी, १. अनुशिष्टि-प्रतिवादी के मंतव्य के उचित अंश को स्वीकार कर अनुचित का निरसन करना। २. उवालंभे, २. उपालंभ-दूसरे के मत को उसकी ही मान्यता से दूषित करना। ३. पुच्छा , ३. पृच्छा-प्रश्न प्रतिप्रश्नों में ही परमत को असिद्ध कर देना। ४. निस्सावयणे। ४. निःश्रावचन-अन्य के बहाने अन्य को शिक्षा देना। (३) आहरणतद्दोसे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा (३) आहरणतद्दोष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अधम्मजुत्ते, १. अधर्मयुक्त-अधर्मबुद्धि उत्पन्न करने वाला दृष्टांत। २. पडिलोमे, २. प्रतिलोम-अपसिद्धान्त का प्रतिपादक दृष्टांत। ३. अत्तोवणीए, ३. आत्मोपनीत-परमत दूषक दृष्टांत द्वारा स्वमत का भी दूषित हो जाना। ४. दुरोवणीए। ४. दुरुपनीत-दोषपूर्ण निगमन वाला दृष्टांत। (४) उवन्नासोवणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा (४) उपन्यासोपनय चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. तव्वत्थुए, १. तद्वस्तुक-वादी के हेतु द्वारा उसी का निरसन करना। २. तदनवत्थुए, २. तदन्यवस्तुक-उपन्यस्तवस्तु से अन्य में भी प्रतिवादी की बात को पकड़कर उसे हरा देना।। ३. पडिणिभे, ३. प्रतिनिभ-वादी के सदृश हेतु बनाकर उसके हेतु को असिद्ध कर देना। ४. हेऊ। -ठाणं.अ.४, उ.३,सु.३३५ ४. हेतु-उदाहरण बताकर अन्य के प्रश्न का समाधान कर देना। १३९. कव्व पगारा चउव्विहे कव्वे पण्णत्ते,तं जहा१. गज्जे, २. पज्जे, ३. कत्थे, ४. गेए -ठाणं.अ.४, उ.४,सु.३७९ १३९. काव्य के प्रकार काव्य चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. गद्य, २. पद्य, ३. कथ्य, ४. गेय।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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