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________________ __ द्रव्यानुयोग-(१) २. अज्ञानी में प्रारम्भ के दोनों भंगों का अन्तर नहीं है, सादि-सपर्यवसित का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त का, उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक छासठ सागरोपम का है। प्र. १. भन्ते ! आभिनिबोधिकज्ञान का अन्तर कितने काल ( ७१४ । ७१४ २.अन्नाणिस्स दोण्ह वि आइल्लाणं नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावटिट्ठ सागरोवमा साइरेगाई। -जीवा. पडि.९, सु.२३३ प. १. आभिणिबोहियनाणिस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंत कालं जाव अवड्ढं पोग्गल परियट्ट देसूणं। २. एवं सुयनाणिस्स वि,३.ओहिनाणिस्स वि, ४.मणपज्जवनाणिस्स वि। प. ५.केवलनाणिस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतर। प. ६.मइ अन्नाणिस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! अणाईयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं अणाईयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं छावठ्ठि सागरोवमाइं साइरेगाई। ७.एवं सुय अन्नाणिस्स वि। प. ८.विभंगनाणिस्सणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। -जीवा. पडि. ९, सु. २५४ १९. अप्पबहुत्तदारप. एएसिणं भंते ! नाणीणं, अन्नाणीण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा नाणी, २.अन्नाणी अणंतगुणा। -जीवा. पडि. ९, सु. २३३ प. एएसि णं भन्ते ! जीवाणं १. आभिणिबोहियणाणीणं, २. सुयणाणीणं, ३. ओहिणाणीणं, ४. मणपज्जवणाणीणं, ५. केवलणाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी, २.ओहिणाणी असंखेज्जगुणा, ३-४. आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी. दो वि तुल्ला विसेसाहिया, ५.केवलणाणी अणंतगुणा। प. एएसि णं भन्ते ! जीवाणं मइअण्णाणीणं, सुयअण्णाणीणं विभंगणाणीण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा जीवा विभंगणाणी, २-३. मइअण्णाणी, सुयअण्णाणी दो वि तुल्ला अणंतगुणा३। उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्त काल यावत् कुछ कम अपार्द्ध पुद्गल परावर्तन का है। २. इसी प्रकार श्रुतज्ञानी का भी, ३. अवधिज्ञानी का भी और ४. मनःपर्यवज्ञानी का भी अन्तर है। प्र. ५. भन्ते ! केवलज्ञानी का अन्तर कितने काल का है? उ. गौतम ! सादि-अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं है। प्र. ६.भन्ते ! मति-अज्ञानी का अन्तर कितने काल का है? उ. गौतम ! अनादि अपर्यवसित का अन्तर नहीं है, अनादि सपर्यवसित का भी अन्तर नहीं है। सादि सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त का, उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम का है। ७. इसी प्रकार श्रुत-अज्ञानी का अन्तर है। प्र. ८. भन्ते ! विभंगज्ञानी का अन्तर कितने काल का है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त का, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। १९. अल्प बहुत्व द्वारप्र. भन्ते ! इन ज्ञानी और अज्ञानी में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प ज्ञानी है, २.(उनसे) अज्ञानी अनन्तगुणे हैं। प्र. भन्ते ! इन १. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी, ४. मनःपर्यवज्ञानी और ५. केवलज्ञानी इन जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प जीव मनःपर्यवज्ञानी हैं, २. (उनसे) अवधिज्ञानी असंख्यातगुणे हैं, ३-४.(उनसे) आभिनिबोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी ये दोनों तुल्य हैं और विशेषाधिक हैं। ५. (उनसे) केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं। प्र. भन्ते ! इन १. मति-अज्ञानी, २. श्रुत-अज्ञानी और ३. विभंगज्ञानी जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प विभंगज्ञानी हैं, २-३. (उनसे) मति-अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी दोनों तुल्य हैं और अनन्तगुणे हैं। १. जीवा.पडि.९,सु.२५० २. विया.स.८,उ.२,सु. १५४ ३. (क) जीवा. पडि.९,सु.२५४ (ख) विया.स.८,उ.२,सु.१५५ (ग) जीवा. पडि.९,सु.२५०
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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