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________________ ज्ञान अध्ययन - ७१३ ) १७. संचिट्ठणा काल द्वारप्र. भन्ते ! ज्ञानी जीव ज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सादि-अपर्यवसित, २. सादि-सपर्यवसित। इनमें से जो सादि-सर्पयवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, १७. संचिट्ठणा कालदारप. नाणी णं भंते ! नाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! नाणी दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. साईए वा अपज्जवसिए, २. साईए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई साइरेगाई। प. आभिणिबोहियनाणी णं भंते ! आभिणिबोहियनाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावळिं सागरोवमाई साइरेगाई। एवं सुयनाणी वि। ओहिनाणी वि एवं चेव। णवरं-जहण्णेणं एक्कं समयं। प. मणपज्जवनाणी णं भंते ! मणपज्जवनाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ? . उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं। प. केवलनाणी णं भंते ! केवलनाणी त्ति कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! साईए अपज्जवसिए। प. अन्नाणी-मइअन्नाणी-सुयअन्नाणी णं भंते ! अन्नाणी मइअन्नाणी-सुयअन्नाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी तिविहे पण्णत्ते,तं जहा१. अणाईए वा अपज्जवसिए, २. अणाईए वा सपज्जवसिए, ३. साईए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे ते साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि ओसिप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढे पोग्गलपरियटें देसूर्ण२। प. विभंगनाणी णं भंते ! विभंगनाणी त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियाई -विया. स.८, उ.२.सु.१५२-१५३ १८. अंतरदारं १.णाणिस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्द पोग्गलपरियट देसूणं, उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है। प्र. भन्ते ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी के लिए जानना चाहिए। अवधिज्ञानी का संस्थिति काल भी इतना ही है। विशेष-उसकी स्थिति जघन्य एक समय की है। प्र. भन्ते !मनःपर्यवज्ञानी मनःपर्यवज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक। प्र. भन्ते ! केवलज्ञानी केवलज्ञानी के रूप में कितने काल तक. रहता है? उ. गौतम ! वे सादि-अपर्यवसित होते हैं। प्र. भन्ते ! अज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी कितने काल तक अज्ञानी मतिअज्ञानी श्रुतअज्ञानी के रूप में रहते हैं ? उ. गौतम ! अज्ञानी, मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अनादि-अपर्यवसित, . २. अनादि-सपर्यवसित, ३. सादि-सपर्यवसित। उनमें से जो सादि-सपर्यवसित है, यह जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक अर्थात् काल की अपेक्षा से अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणियों तक, एवं क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्द्धपुद्गल-परावर्तन तक रहते हैं। प्र. भन्ते ! विभंगज्ञानी विभंगज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समयं, उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम तक विभंगज्ञानी के रूप में रहता है। १८. अन्तर द्वार १.ज्ञानी का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त का, उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल का यावत्देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्त तक रहता है। १. जीवा. पडि.९,सु.२३३ २. जीवा.पडि.९.स.२५० ३. (क) जीवा.पडि.९, सु.२५४ (ख) पण्ण.प.१८सु.१३४६-१३५३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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