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________________ ( ६९६ ) उ. गोयमा ! सवेदए वा होज्जा,अवेदए वा होज्जा। प. जइ अवेदए होज्जा किं उवसंतवेयए होज्जा, खीणवेयए होज्जा? उ. गोयमा ! नो उवसंतवेयए होज्जा, खीणवेयए होज्जा। प. जइ सवेयए होज्जा किं इत्थीवेयए होज्जा जाव पुरिसनपुंसगवेयए वा होज्जा? उ. गोयमा ! इत्थीवेयए वा होज्जा, पुरिसवेयए वा होज्जा, पुरिसनपुंसगवेयए वा होज्जा। प. से णं भंते ! सकसाई होज्जा अकसाई होज्जा? द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी होता है। प्र. यदि वह अवेदी होता है तो क्या उपशान्तवेदी होता है या क्षीणवेदी होता है? उ. गौतम ! वह उपशान्तवेदी नहीं होता है, किन्तु क्षीणवेदी होता है। प्र. भन्ते ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है, यावत् पुरुष-नपुंसकवेदी होता है? उ. गौतम ! वह स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी होता है और पुरुष-नपुंसकवेदी होता है। प्र. भन्ते ! वह अवधिज्ञानी सकषायी होता है या अकषायी होता है? उ. गौतम ! वह सकषायी भी होता है और अकषायी भी होता है। प्र. यदि वह अकषायी होता है तो क्या उपशान्तकषायी होता है या क्षीणकषायी होता है? उ. गौतम ! वह उपशान्तकषायी नहीं होता है, किन्तु क्षीणकषायी होता है। प्र. यदि वह सकषायी होता है तो कितने कषायों में होता है? उ. गोयमा ! सकसाई वा होज्जा,अकसाई वा होज्जा। प. जइ अकसाई होज्जा किं उवसंतकसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा? उ. गोयमा ! नो उवसंतकसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा। प. जइ सकसाई होज्जा से णं भंते ! कइसु कसाएसु होज्जा? उ. गोयमा ! चउसु वा, तिसु वा, दोसु वा, एक्कम्मि वा होज्जा। चउसु होज्जमाणेचउसु संजलणकोह-माण-माया-लोभेसु होज्जा, तिसु होज्जमाणेतिसु संजलणमाण-माया-लोभेसु होज्जा, दोसु होज्जमाणेदोसु संजलणमाथा-लोभेसु होज्जा, एक्कम्मि होज्जमाणे एक्कम्मि संजलणे लोभे होज्जा। प. तस्स णं भंते ! केवइया अज्झवसाणा पण्णता? उ. गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता। सेसं जहा असोच्चाए, तहेव जाव केवलवरणाण दंसण समुप्पज्जइ। प. से णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्म आघविज्जा, वा जाव उवदंसेज्ज वा परूविज्जा वा? उ. हता, गोयमा ! आघविज्जा वा जाव उवदंसेज्जा वा परूविज्जा वा। प. से णं भंते ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा? उ. गौतम ! वह चार कषायों में, तीन कषायों में, दो कषायों में अथवा एक कषाय में होता है। यदि वह चार कषायों में होता है, तो संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ में होता है। यदि तीन कषायों में होता है, तो संज्वलन मान, माया और लोभ में होता है। यदि दो कषायों में होता है, तो संज्वलन माया और लोभ में होता है, यदि वह एक कषाय में होता है, तो एक संज्वलन लोभ में होता है। प्र. भन्ते ! उस अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय बताए गए हैं? उ. गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं। शेष वर्णन असोच्चा के समान केवलवरज्ञान दर्शन की उत्पत्ति तक समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! वे केवलि-प्ररूपित धर्म का कथन करते हैं यावत् उदाहरण देकर समझाते हैं ? उ. हां, गौतम ! वे केवलि-प्ररूपित धर्म कहते हैं यावत् उदाहरण देकर समझाते हैं। प्र. भन्ते ! क्या वे किसी को प्रव्रजित भी करते हैं और मुण्डित भी करते हैं? उ. हाँ, गौतम ! वे प्रव्रजित भी करते हैं, और मुण्डित भी करते हैं। प्र. भन्ते ! क्या उनके शिष्य भी किसी को प्रव्रजित करते हैं और मुण्डित भी करते हैं ? उ. हता, गोयमा ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा। प. तस्स णं भंते ! सिस्सा वि पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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