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________________ ज्ञान अध्ययन ६८१ प. केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढविं "रयणप्पभ पुढवी"त्ति जाणइ, पासइ? उ. हंता, गोयमा ! जाणइ, पासइ। प. जहा णं भंते ! केवली इमं रयणप्पभं पुढविं “रयणप्पभपुढवी"त्ति जाणइ पासइ? तहा णं सिद्धे वि इमं रयणप्पभं पुढविं “रयणप्पभ पुढवी "त्ति जाणइ पासइ? उ. हंता, गोयमा ! जाणइ, पासइ। प. केवली णं भंते ! सक्करप्पभं पुढविं सक्करप्पभपुढवी त्ति जाणइ पासइ? उ. हंता, गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव अहेसत्तमा प. केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं, सोहम्मकप्पे त्ति जाणइ पासइ? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं ईसाणं। एवं जाव अच्चुयं। प. केवली णं भंते ! गेवेज्जविमाणे-गेवेज्जविमाणे ति जाणइ पासइ? उ. गोयमा ! एवं चेव। ___ एवं अणुत्तरविमाणे वि। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी इस रत्नप्रभापृथ्वी को यह "रलप्रभापृथ्वी है" इस प्रकार जानते-देखते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! जिस प्रकार केवली इस रत्नप्रभापृथ्वी को “यह रत्नप्रभापृथ्वी है" इस प्रकार जानते देखते हैं ? क्या उसी प्रकार सिद्ध भी इस रत्नप्रभापृथ्वी को “यह रत्नप्रभापृथ्वी है" इस प्रकार जानते-देखते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी शर्कराप्रभापृथ्वी को “यह शर्कराप्रभापृथ्वी है" इस प्रकार जानते-देखते हैं ? उ. हाँ. गौतम ! उसी प्रकार (केवली और सिद्ध दोनों के विषय में पूर्ववत्) समझना चाहिए। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी सौधर्मकल्प को यह सौधर्मकल्प है इस प्रकार जानते देखते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी प्रकार ईशान देवलोक के विषय में भी जानना चाहिए। इसी प्रकार अच्युतकल्प पर्यन्त के लिए कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी प्रैवेयकविमान को "ग्रैवेयकविमान ___है" इस प्रकार जानते देखते हैं? उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। इसी प्रकार (पांच) अनुत्तर विमानों के विषय में कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारापृथ्वी को "ईषत्प्राग्भारापृथ्वी है" इस प्रकार जानते देखते हैं? उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी परमाणुपुद्गल को यह "परमाणुपुद्गल है" इस प्रकार जानते-देखते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी समझना चाहिए, इसी प्रकार यावत्प्र. भन्ते ! जैसे केवली अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को “यह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है" इस प्रकार जानते-देखते हैं क्या वैसे ही सिद्ध भी “अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध" को अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है इस प्रकार जानते-देखते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं। प. केवली णं भंते ! ईसिपब्भारं पुढविं ___"ईसीपब्भारपुढवी"त्ति जाणइ पासइ? उ. गोयमा ! एवं चेव। प. केवली णं भंते ! परमाणुपोग्गलं परमाणुपोग्गले त्ति जाणइ पासइ? उ. गोयमा !एवं चेव। एवं दुपदेसियं खधं एवं जाव प. जहा णं भंते ! केवली अणंतपदेसियं खंधे "अणंतपदेसिए खंधे" त्ति जाणइ पासइ, तहा णं सिद्धे वि अणंतपदेसियं जाणइ, पासइ। उ. हंता, गोयमा ! जाणइ, पासइ। -विया. स.१४, उ. १०,सु. १२-२४ १०३. केवलि-सिद्धेसु भासणाइ परूवणं प. केवली णं भंते ! भासेज्ज वा वागरेज्ज वा? उ. हंता, गोयमा ! भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा। १०३. केवली और सिद्धों में भाषा आदि का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी बोलते हैं या प्रश्न का उत्तर देते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! वे बोलते भी हैं और प्रश्न का उत्तर भी देते हैं। प्र. भन्ते ! जिस प्रकार केवली बोलते हैं या प्रश्न का उत्तर देते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं? प. जहाणं भंते ! केवली भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा, तहा णं सिद्धे वि भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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