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________________ ६८० द्रव्यानुयोग-(१)) उ. गोयमा ! णो इणढे समढे, सोच्चा जाणइ पासइ, पमाणओवा। प. से किं तं सोच्चा? उ. सोच्चा णं केवलिस्स वा, केवलिसावयस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तपक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगस्स वा,तप्पक्खियउवासियाए वा। से तं सोच्चा। प. से किं तं पमाणे? उ. गोयमा ! पमाणे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १.पच्चक्खे,२.अणुमाणे,३.ओवम्मे, ४.आगमे। जहा अणुओगहारे तहाणेयव्वं पमाणं जाव तेण परं नो अत्तागमे, नो अणंतरागमे, परंपरागमे। प. केवली णं भंते ! चरमकम्मं वा, चरमनिज्जरं वा जाणइ पासइ? उ. हंता, गोयमा ! जाणइ, पासइ। प. जहा णं भंते ! केवली चरमकम्मं वा, चरमनिज्जरं वा जाणइ पासइ, तहा णं छउमत्थे वि चरिमकम्मं वा चरिमनिज्जरं वा जाणइ, पासइ? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे, सोच्चा जाणइ पमाणओ ज. गौतम ! यह शक्य नहीं है, किन्तु छद्मस्थ मनुष्य किसी से सुनकर अथवा प्रमाण द्वारा अन्तकर और अन्तिमशरीरी को जानता-देखता है। प्र. भन्ते ! सुनकर का क्या अर्थ है ? उ. गौतम ! केवली से, केवली के श्रावक से, केवली की श्राविका से, केवली के उपासक से, केवली की उपासिका से, केवली-पाक्षिक से, केवली-पाक्षिक के श्रावक से, केवली-पाक्षिक की श्राविका से, केवली पाक्षिक के उपासक से अथवा केवली पाक्षिक की उपासिका से, इसमें से किसी के द्वारा “सुनकर" जानता और देखता है। यह “सुनकर" का स्वरूप है। प्र. भन्ते ! प्रमाण का क्या अर्थ है ? उ. गौतम ! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. प्रत्यक्ष, २. अनुमान, ३. औपम्य, ४. आगम। (इनमें से किसी भी प्रमाण के द्वारा जानता व देखता है।) जिस प्रकार से प्रमाण भेदों का अनुयोगद्वार में वर्णन किया गया है उसी प्रकार यहां पर भी आत्मागम नहीं, अनंतरागम नहीं किन्तु परंपरागम है पर्यन्त कथन करना चाहिए। . प्र. भन्ते ! क्या केवली चरमकर्म को अथवा चरमनिर्जरा को जानता-देखता है? उ. हां, गौतम ! वह जानता-देखता है। प्र. भन्ते ! जिस प्रकार केवली चरमकर्म को या चरमनिर्जरा को जानता-देखता है, क्या उसी तरह छद्मस्थ भी चरमकर्म या चरमनिर्जरा को जानता-देखता है ? उ. गौतम ! यह शक्य नहीं है। किन्तु किसी से सुनकर या प्रमाण द्वारा जानता-देखता है। शेष सम्पूर्ण वर्णन अन्तकर (सिद्ध) के आलापक के समान चरमकर्म का भी जानना चाहिए। १०२. केवली एवं सिद्धों में जानने-देखने के सामर्थ्य का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? उ. हॉ, गौतम ! जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! जिस प्रकार केवलज्ञानी, छद्मस्थ को जानते-देखते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भी छदमस्थ को जानते-देखते हैं ? उ. हॉ, गौतम ! जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! क्या केवलज्ञानी, आधोवधिक (प्रतिनियत क्षेत्र विषयक अवधिज्ञान वाले) को जानते-देखते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी प्रकार परमावधिज्ञानी को भी जानते-देखते हैं। इसी प्रकार केवलज्ञानी को भी जानते-देखते हैं। इसी प्रकार सिद्धों के लिए भी कहना चाहिए यावत्प्र. भन्ते ! जिस प्रकार केवलज्ञानी सिद्ध को जानते-देखते हैं क्या उसी प्रकार सिद्ध भी (दूसरे) सिद्ध को जानते-देखते हैं ? उ. हॉ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं। वा। सेसं जहा अंतकरेण आलावगो तहा चरिमकम्मेण वि अपरिसेसिओणेयब्वो। -विया. स. ५, उ.४, सु. २५-२८ १०२. कैवलि-सिद्धाणं जाणण-पासण सामत्थ परूवणं प. केवली णं भंते ! छउमत्थं जाणइ, पासइ? उ. हंता,गोयमा !जाणइ, पासइ। प. जहा णं भंते ! केवली छउमत्थं जाणइ पासइ, तहा णं सिद्धे वि छउमत्थं जाणइ पासइ? उ. हता,गोयमा !जाणइ, पासइ। प. केवली णं भंते ! आहोहियं जाणइ पासइ? उ. गोयमा ! एवं चेय। एवं परमाहोहियं। एवं केवलिं। एवं सिद्ध जावप. जहा णं भंते ! केवली सिद्ध जाणइ पासइ, तहा णं सिद्धे वि सिद्धं जाणइ पासइ? उ. हंता, गोयमा !जाणइ, पासइ। -विया.स.१४, उ.१०,सु.१-६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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