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________________ 9 . ज्ञान अध्ययन ६७१ काले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइयव्यो खेत्तवुड्ढीए। अवधिज्ञान में काल की वृद्धि होने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव चारों की वृद्धि होती है। क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल की वृद्धि में भजना है। अर्थात् किसी के काल की वृद्धि होती है और किसी के नहीं होती है। वुड्ढीए दव्व-पज्जव भइयव्वा खेत्त-काला उ॥५१॥ अवधिज्ञान में द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल में वृद्धि की भजना होती है अर्थात् क्षेत्रकाल वृद्धि पाते भी है और नहीं भी पाते हैं क्योंकि सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहमयरं हवइ खेत्तं। काल सूक्ष्म होता है किन्तु क्षेत्र उससे भी सूक्ष्मतर होता है इसका अंगुलसेढिमेत्ते ओसप्पिणिओ असंखेज्जा ॥५२॥ कारण यह है कि एक अंगुल प्रथम श्रेणीरूप क्षेत्र में असंख्यात -नंदी.सु.१४ अवसर्पिणियों जितने समय होते हैं। ८९. ओहिनाणस्स सामित्त परूवणं ८९. अवधिज्ञान के स्वामी का कथनणेरइए-देव-तित्थंकरा य,ओहिस्स बाहिरा होति। नारक, देव एवं तीर्थंकर अवधिज्ञान से अबाह्य (युक्त) ही होते हैं पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पासंति ॥५४॥ और वे सब दिशाओं और विदिशाओं को देखते हैं। शेष मनुष्य एवं तिर्यञ्च एक देश से देखते हैं। से तं ओहिनाणं। -नंदी. सु.२७ यह अवधिज्ञान का स्वरूप हैं। ९०. ओहिनाणभेयस्स उवसंहारो ९०. अवधिज्ञान के भेदों का उपसंहारओही भवपच्चइओ, गुणपच्चइओ य वण्णिओ एसो। अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक और गुणप्रत्ययिक दो प्रकार का कहा तस्स य बहू विगप्पा, दव्वे खेत्ते य काले य॥५३॥ गया है और उसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से बहुत से -नंदी.सु.२६ विकल्प कहे गए हैं। ९१. ओहिनाणस्स अंतो बाहिरदार परूवणं ९१. अवधिज्ञान के आभ्यन्तर-बाह्य द्वार का प्ररूपण-. प. दं.१.णेरइया णं भन्ते ! ओहिस्स किं अंतो बाहिँ ? प्र. दं. १. भन्ते ! क्या नारक अवधिज्ञान के अन्दर है या बाहर है? उ. गोयमा ! अंतो, नो बाहिं। उ. गौतम ! वे अवधिज्ञान के अन्दर है, बाहर नहीं है। दं.२-११. एवं जाव थणियकुमारा। द.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प. दं.२०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भन्ते ! ओहिस्स किं प्र. दं. २०. भन्ते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक अवधिज्ञान के अंतो बाहिं? अन्दर है या बाहर है? उ. गोयमा ! नो अंतो, बाहिं। उ. गौतम ! वे अन्दर नहीं, बाहर है। प. दं.२१. मणूसाणं भन्ते ! ओहिस्स किं अंतो बाहिं ? प्र. द.२१. भन्ते ! मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर है या बाहर है ? उ. गोयमा ! अंतो वि, बाहिं वि। उ. गौतम ! वे अन्दर भी है और बाहर भी है। दं. २२-२४. वाणमन्तर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा द. २२-२४. वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिकदेवों का रइयाणं। -पण्ण. प.३३,सु.२०१७-२०२१ कथन नैरयिकों के समान है। ९२. चउवीसदंडएसु देसोहि सव्वोही परूवणं ९२. चौबीस दण्डकों में देशावधि-सर्वावधि का प्ररूपणप. दं.१.णेरइया णं भन्ते ! किं देसोही सव्वोही? प्र. दं. १. भंते! नारकों का अवधिज्ञान देशावधि है या सर्वावधि है? उ. गोयमा ! देसोही, णो सव्वोही। उ. गौतम ! उनका अवधिज्ञान देशावधि है, सर्वावधि नहीं है। दं.२-११. एवं जाव थणियकुमाराणं। द.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प. दं. २०. पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं भन्ते ! किं देसोही प्र. दं. २०. भन्ते ! पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों का अवधिज्ञान सव्वोही? देशावधि है या सर्वावधि है? उ. गोयमा ! देसोही,णो सव्वोही। उ. गौतम! उनका अवधिज्ञान देशावधि है, सर्वावधि नहीं है। प. दं.२१. मणूसाणं भन्ते ! किं देसोही सव्वोही? प्र. द. २१. भंते! मनुष्यों का अवधिज्ञान देशावधि है या सर्वावधि है? उ. गोयमा ! देसोही वि, सव्वोही वि। उ. गौतम! उनका अवधिज्ञान देशावधि भी है, सर्वावधि भी है। १. राय. सु.२४१ २. जो अवधिज्ञानी अपनी जगह से चारों दिशाओं में देखता जानता है तो वह अवधिज्ञानी के अन्दर है। जो अवधिज्ञानी अपनी जगह से एक ही दिशा में देखता जानता है तो वह अवधिज्ञानी के बाहर है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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