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________________ ज्ञान अध्ययन जे जीवे जोणी जम्मण निक्खते इमेणं चेव सरीरसमुस्सएणं आदत्तएणं जिणोवइट्टेणं भावेणं "सुए" इ पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ,ण ताव सिक्खइ। प. जहा को दिट्ठतो? उ. अयं महुकुंभे भविस्सइ,अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वसुयं। प. से किं तं जाणयसरीर-भवियसरीरवइरित्तं दव्वसुर्य ? उ. जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं पत्तयपोत्थयलिहियं। अहवा सुत्तं पंचविहं पण्णत्तं,तं जहा १.अंडयं,२.बोंडयं,३.कीडयं,४.वालयं, ५. वक्कयं। प. से किं तं अंडयं? उ. अंडयं हंसगब्भादि। सेतं अंडयं। प. से किं तं बोंडयं? उ. बोंडयं फलिहमादि। से तंबोंडयं। प. से किं तं कीडयं? उ. कीडयं पंचविहं पण्णत्तं,तं जहा १. पट्टे,२. मलए,३.अंसुए,४.चीणंसुए,५.किमिरागे। सेतं कीडयं। प. से किं तं वालयं? उ. वालयं पंचविहं पण्णत्तं,तं जहा १. उण्णिए, २. उट्टिए, ३. मियलोमिए, ४. कुतवे, ५.किट्टिसे। से तं वालय। प. से किं तं वक्कयं? उ. वक्कयं सणमाई। से तं वक्कयं। से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं दव्वसुयं। से तं नो आगमओ दव्यसुर्य। से तं दव्यसुर्य। -अणु.सु.३४-४५ ७७. भावसुय निक्खेवो प. से किं तं भावसुयं? उ. भावसुयं दुविहं पण्णत्तं,तं जहा १.आगमओ य,२.नो आगमओ य। प. से किं तं आगमओ भावसुयं? उ. आगमओ भावसुयं जाणए उवउत्ते। समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर-द्रव्यश्रुत है। प्र. इसका दृष्टान्त क्या है? उ. “यह मधुघट होगा, यह घृतघट होगा ऐसा कहा जाता है। यह भव्यशरीर-द्रव्यश्रुत है। प्र. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्यश्रुत क्या है? उ. ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में अथवा वस्त्रखण्डों पर लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत है। अथवा सूत्र पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. अंडज, २. बोंडज, ३. कीटज, ४. वालज, ५. बल्कज। प्र. अंडज सूत्र किसे कहते हैं? उ. हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं। यह अंडज सूत्र है। प्र. बोंडज सूत्र किसे कहते हैं ? उ. कपास या रूई से बनाए गए सूत्र को बौडज कहते हैं। यह बोंडज सूत्र है। प्र. कीटज सूत्र किसे कहते हैं? उ. कीटज सूत्र पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. पट्ट, २. मलय, ३. अंशुक, ४. चीनांशुक, ५. कृमिराग। यह कीटज सूत्र है। प्र. वालज सूत्र किसे कहते हैं? . उ. वालज सूत्र पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. और्णिक, २. औष्ट्रिक, ३. मृगलोमिक, ४. कौतव, ५. किट्टिस। यह वालज सूत्र है। प्र. बल्कज सूत्र किसे कहते हैं? उ. सन आदि से निर्मित सूत्र को बल्कज कहते हैं। यह बल्कज सूत्र है। इस प्रकार यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्यश्रुत है। यह नो आगमद्रव्यश्रुत है। यह द्रव्यश्रुत है। ७७. भावश्रुत का निक्षेप प्र. भावश्रुत क्या है? उ. भावश्रुत दो प्रकार का कहा गया है, यथा १.आगमभावश्रुत, २. नो आगमभावश्रुत। प्र. आगमभावश्रुत क्या है? उ. जो श्रुत का ज्ञाता होने के साथ उसके उपयोग से भी सहित हो, वह आगम भावश्रुत है। यह आगम भावश्रुत का स्वरूप है। प्र. नो आगमभावश्रुत क्या है? से तं आगमओ भावसुयं। प. से किं तं नो आगमओ भावसुयं?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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